सरोजिनी चौधरी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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कविता कहाँ से निकली है ?
यह प्रश्न अगर पूछे कोई
क्या उत्तर देना बताती हूँ,,
यह बात तुम्हें समझाती हूँ।
मन के अन्दर कुछ उमड़ रहा,
बाहर आने को मचल रहा
कैसे रच काव्य में ढाल रहा,
मन के भावों को निकाल रहा।
बात कभी दिल की कहती,
धीरे-धीरे कविता बढ़ती
बतलाती मन की पीड़ा का दर्द,
वह हृदय के भावों को जनती।
आगे की यात्रा अब शुरू होती,
कविता बढ़ कर अब बड़ी होती
मिलते जाते फिर शब्द कई नये,
सुर, लय और ताल पर खड़ी होती।
कहीं पर्वत और पहाड़ों का,
कहीं धरती और सितारों का
कहीं बाग-बगीचे, गलियों का,,
कहीं प्रेमी की रंगरलियों का।
कहीं सागर-सी गहराई का,
कहीं यौवन-सी तरुणाई का
कभी हर्ष, कभी क्रंदन भारी,
कविता रस की सच्चाई का।
बस भाव उसे मिलता जाता,
कवि आगे को बढ़ता जाता
कभी आँखों से मोती छलके,
कभी हृदय वाद्य बजता जाता।
तुलसी, रहीम, कबीर नहीं,
प्रेमचंद, कवि सूर नहीं
पर कुछ तो ज़िम्मेदारी है,
जिससे कवि को इन्कार नहीं।
साहित्य समाज का दर्पण है,
यह सोच के कदम बढ़ाना है।
क्या लिखना है, क्यों लिखना है
यह सोच के आगे चलना है॥