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बलात्कारियों को फांसी दी जाए

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में बकरवाल समुदाय की एक मुस्लिम लड़की के साथ पहले बलात्कार किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई। वह लड़की सिर्फ आठ साल की थी। उसे एक मंदिर में ले जाकर नशीली दवाइयां खिलाई गईं और फिर उक्त कुकर्म किया गया। उन अपराधियों पर विशेष मुकदमा चला और उनमें से तीन को उम्र-कैद हुई और तीन को पांच-पांच साल की सजा ! सिर्फ डेढ़ साल में यह फैसला आ गया,यह गनीमत है, लेकिन इस फैसले को नाकाफी मानता हूँ। पहली बात तो यह कि इस घोर राक्षसी मामले को सांप्रदायिक रुप दिया गया। एक हिंदू रक्षा मंच ने अपराधियों को बचाने की कोशिश की,क्योंकि वे हिंदू थे और वह बच्ची मुसलमान थी। इस मामले में भाजपा के दो मंत्रियों को अपनी बेवकूफी के कारण इस्तीफे भी देने पड़े। इसके लिए भाजपा-नेतृत्व बधाई का पात्र है लेकिन कितने शर्म की बात है कि यह जघन्य अपराध एक मंदिर में हुआ और उस मंदिर का पुजारी इस नृशंस अपराध का सूत्रधार था। मैं पूछता हूँ कि वह मंदिर क्या अब पूजा के लायक रह गया है ? वह किसी वेश्यालय से भी अधिक घृणित स्थान बन गया है। उस पर कठुआ के लोगों को ही बुलडोजर चला देना चाहिए। जहां तक तीन लोगों को उम्र-कैद का सवाल है,उसमें वह पुलिस अधिकारी भी है,जो बलात्कार में शामिल था और जिसने सारे मामले को रफा-दफा कराने की कोशिश की थी। जिन अन्य अपराधियों को पांच-पांच साल की सजा मिली है और जुर्माना भी ठोंका गया है,वे लोग इतने वीभत्स कांड में शामिल थे कि यह सजा उनके लिए सजा नहीं है,इनाम है। अब उनमें से आधे पूरी उम्रभर और आंधी पांच साल तक जेल में सुरक्षित रहेंगे,सरकारी रोटियां तोड़ेंगे और मौज करेंगे। कभी-कभी पेरोल पर छूटकर मटरगश्ती भी करेंगे। उनको मिली इस सजा का भावी अपराधियों पर क्या असर पड़ेगा ? यही न, कि पहले अपराध करो और फिर चैन से सरकारी रोटियां तोड़ते रहो। मेरी राय में इन सभी लोगों को न सिर्फ मौत की सजा मिलनी चाहिए बल्कि इन्हें लाल किले पर फांसी दी जानी चाहिए और इनके शव कुत्तों से घसीटवा कर यमुना में बहा दिया जाना चाहिए,ताकि इस तरह के संभावित अपराध करने वालों के मन में अपराध का विचार पैदा होते ही उनकी हड्डियों में कम्पकंपी दौड़ जाए। इस तरह की कठोर सजा नहीं होने का परिणाम यह है कि कठुआ-कांड के बाद उससे भी अधिक नृशंस दर्जनों घटनाएं देश में हो चुकी हैं,और आज भी मध्यप्रदेश से कठुआ-जैसी ही खबर आई है।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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