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बातचीत शुरु हो,तो आतंक के खात्मे पर हो

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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हमारी वायु सेना के विंग कमांडर पायलट अभिनंदन की सकुशल वापसी पर कौन भारतीय प्रसन्न नहीं होगा ? यह हमारा वह बहादुर पायलट है,जिसने अपनी जान की परवाह नहीं की और पाकिस्तानी सीमा में घुसकर उसके एफ-१६ युद्ध विमान को नष्ट कर दिया। अभिनंदन को सुरक्षित भारत लौटाना पाकिस्तान की जिम्मेदारी थी। किसी भी राष्ट्र पर यह जिम्मेदारी आती है,वियना अभिसमय पर दस्तखत करने की वजह से। पाकिस्तान यों तो इस अंतरराष्ट्रीय कानून का हस्ताक्षरकर्ता है,लेकिन उसने इस कानून को प्रायः तोड़कर ही इसका पालन किया है। उसने भारत के दर्जनों सैनिकों को पकड़े जाने के बाद भारत के हवाले करने के बदले सिर काटने का काम किया है,जबकि इस अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन करते हुए भारत ने १९७१ में ९० हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को सुरक्षित लौटाया है।
अब पाकिस्तान ने अभिनंदन को लौटाया है तो यह कोई बहुत बड़ा अजूबा नहीं है। १९९९ में नवाज़ शरीफ ने हमारे पायलट नचिकेता को भी लौटाया था लेकिन इस बार प्रधानमंत्री इमरान खान ने अभिनंदन को लौटाने के पहले सौदेबाजी करने की कोशिश की। वे चाहते थे कि अभिनंदन को लौटाने के बदले भारत बातचीत शुरु करे,लेकिन भारत सरकार ने स्पष्ट कर दिया कि वह इस सौदेबाजी में नहीं उलझेगी। इमरान चाहते तो सारा मामला काफी तूल पकड़ सकता था लेकिन उन्होंने मोदी के राजनीतिक चौके पर कूटनीतिक छक्का मार दिया। उन्होंने अभिनंदन को बिना किसी शर्त छोड़ने की घोषणा कर दी। पाकिस्तानी संसद में इस घोषणा पर जिस तरह तालियां बजीं और पाकिस्तानी नेताओं के चेहरे पर जैसी मुस्कराहट फैल गई,उसी से आप अंदाज लगा सकते हैं कि पाकिस्तानी क्या समझ रहे थे। वे हारी हुई बाजी जीत लेने का अहसास करवा रहे थे।
इसमें शक नहीं कि इमरान के इस कूटनीतिक दांव को सारी दुनिया में सराहा जाएगा लेकिन यह न भूलें कि मोदी सरकार ने आतंकी अड्डों को उड़ाने की जो पहल की है,वह वैसी ही है,जैसी इस्राइल या अमेरिका करता है। वह पहल गैर-फौजी थी। याने भारतीय फौज ने न तो किसी पाकिस्तानी फौजी ठिकाने पर और न ही किसी शहर के नागरिकों पर हमला किया। उसका निशाना पाकिस्तान नहीं था,उसके आतंकी थे,लेकिन मोदी की इस पहल ने पाकिस्तान के रोंगटे खड़े कर दिए। मोदी ने जैसी पहल की,वैसी आज तक किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री ने नहीं की।
पाकिस्तान को दूर-दूर तक यह आशंका भी नहीं थी कि भारत अचानक ऐसा हमला कर सकता है। ऐसा हमला भारत ने तब भी नहीं किया,जबकि उसकी संसद पर आतंकी आक्रमण हुआ था या मुंबई में बेकसूर लोग आतंकी वारदात में मारे गए थे। इसीलिए पाकिस्तान के प्रवक्ता यह प्रचार कर रहे कि,भारतीय जहाजों को सिर्फ तीन मिनिट में ही उन्होंने मार भगाया। बाद में उन्होंने और उनके कहने पर अमेरिकी और ब्रिटिश मीडिया ने भी भारत के इस दावे को मनघड़ंत बताया कि उसके जहाजों ने बालाकोट में ३०० आतंकियों को मार गिराया है। पाकिस्तानी प्रवक्ता का कहना था कि बालाकोट में सिर्फ एक आदमी मारा गया। भारतीय जहाज हड़बड़ी में लौटते हुए अपने एक हजार किलो के बम जंगल में गिरा गए।
यदि सचमुच ऐसा ही होता तो सारे पाकिस्तान में शर्म-शर्म के नारे क्यों लग रहे थे ? ‘भारत से बदला लो’ की चीख-चिल्लाहट क्यों हो रही थी ? यदि भारत के दावे फर्जी थे तो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री दूसरे देशों के नेताओं को फोन क्यों कर रहे थे ? अपनी फौज को आक्रामक मुद्रा में क्यों ला रहे थे ? जाहिर है कि हमारे इस गैर-फौजी हमले ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए थे। भारत और पाकिस्तान,दोनों की तरफ से बढ़-चढ़कर दावे किए जा रहे थे। दोनों देशों की जनता असमंजस में पड़ी हुई थी। टीवी चैनलों पर दोनों देशों के सेवा-निवृत्त फौजी और पत्रकार लोग अपनी-अपनी जनता को भड़काने की कोशिश कर रहे थे। यदि भारत के इस हमले से पाकिस्तान का कोई नुकसान नहीं हुआ तो उसे इतने भड़कने की जरुरत क्या थी ?
इमरान खान यदि बढ़-चढ़कर भाषण नहीं देते तो पाकिस्तान में उनकी छवि चूर-चूर हो जाती। यह तो मानना पड़ेगा कि इमरान के वक्तव्य बड़े सधे हुए थे और उनमें काफी संजीदगी भी थी। हर बार वे शांति की अपील कर रहे थे और पुलवामा-कांड से पाकिस्तान के जुड़े होने के प्रमाण मांग रहे थे लेकिन हम यह न भूलें कि इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय जनमत भी बड़ा कारण था। पाकिस्तान के सभी सही और गलत कामों के दो बड़े समर्थक रहे हैं-अमेरिका और चीन। इस बार अमेरिका ने पाकिस्तान का बिल्कुल साथ नहीं दिया। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पहले इशारा दे दिया था कि पाकिस्तान इस बार अकड़ेगा नहीं। चीन ने भी सुरक्षा परिषद के भारत-समर्थक बयान पर दस्तखत कर दिए थे,हालांकि उसका विदेश मंत्रालय पाकिस्तान समर्थक बयान जारी करता रहा। अमेरिका,फ्रांस और ब्रिटेन अब सुरक्षा परषिद में मसूद अहजर और उसके संगठन जैश-ए-मुहम्मद को संयुक्त राष्ट्र की आतंकवादी काली सूची में डालने का प्रस्ताव ला रहे हैं।
दूसरे शब्दों में असली मुद्दा यह नहीं है कि,हमने पाकिस्तान के कितने जहाज गिराए और पाकिस्तान ने हमारे कितने हेलिकाॅप्टर गिराए। असली मुद्दा है-आतंकवाद का। पाकिस्तान को अब यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा कि आतंकवाद को वह भारत के विरुद्ध एक हथियार की तरह इस्तेमाल करना बंद करेगा या नहीं ? इस हमले ने पाकिस्तान और दुनिया को यह बता दिया है कि भारत परमाणु ब्लेकमेल से डरनेवाला नहीं है। यह शायद दुनिया की ऐसी पहली घटना है,जबकि एक परमाणु सम्पन्न राष्ट्र ने एक दूसरे परमाणु संपन्न राष्ट्र के आतंकी ठिकानों पर हमला किया है।
इमरान खान के वार्ता के प्रस्ताव को भारत ठुकराए यह ठीक नहीं है,लेकिन इमरान पहले यह बताए कि वे बात किस मुद्दे पर करना चाहते हैं ? खुशी है कि इमरान ने मोदी को फोन भी किया लेकिन शांति की हवाई बात करने से क्या फायदा है ? अभिनंदन को छोड़ दिया,यह अच्छा किया लेकिन क्या यही असली मुद्दा रहा है दोनों देशों के बीच! उनकी शांति की अपील में कितनी सच्चाई है,यह दिखाने के लिए भी तो इमरान को कोई ठोस कदम उठाना था। यदि वे दो-चार आतंकवादी सरगनाओं को पकड़कर तुरंत अंदर कर देते या भारत को सौंप देते तो माना जाता कि उन्होंने कुछ ठोस कदम उठाए हैं।
वास्तव में आतंकवाद के कारण पाकिस्तान की परेशानी भारत से कहीं ज्यादा है। सारी दुनिया में पाकिस्तान अपने आतंकवाद के कारण बदनाम हो चुका है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठन ने भी उसे काली सूची में डालने की चेतावनी दे दी है। पाकिस्तानी जनता आतंकी गतिविधियों के कारण बहुत त्रस्त है। दुनिया में पाकिस्तान अब आतंकवाद के कारण ‘गुंडा राज्य’ (रोग स्टेट) के नाम से जाना जाने लगा है। इमरान खान यदि ‘नया पाकिस्तान’ बनाना चाहते हैं तो उन्हें फौज को मनाना पड़ेगा कि वह आतंकियों का इस्तेमाल करना बंद करे। दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों ने अपनी संक्षिप्त और सीमित सैन्य कार्रवाई से अपनी-अपनी जनता के सामने अपनी छवि सुरक्षित कर ली है लेकिन अब यह सही समय है,जब वे बातचीत के द्वार खोलें और आतंकवाद को इतिहास की कूढ़ेदान के हवाले कर दें। अगर सार्थक बातचीत होगी तो कश्मीर समेत सभी समस्याओं का शांतिपूर्ण हल आसानी से निकल सकता है।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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