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बीत रहे दिन ऐसे

हीरा सिंह चाहिल ‘बिल्ले’
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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वर्ष माह सप्ताह में, बीत रहे दिन ऐसे।
देख रहे हों जीवन, नभ से प्रभु जैसे।

जेठ अषाढ़ में होता, ताप धरा में जितना।
सावन भादों में गिरें, जल बूंदें उतना।

सृष्टि में जीवन होता, सृष्टि है जीवन से।
कर्तव्य है जीवन का, हो रक्षा भी मन से।

मौसम क्वांर कार्तिक, में होते मन भावन।
पूस और अगहन, हों शीतल पावन।

माघ फागुन रंगों का, पर्व सजाते हैं प्यारा।
तब टेशू के फूलों से, मन रहता न्यारा।

ईश्वर की रचना है, प्रकृति और जीवन,
दोनों एक-दूसरे के, लिए हैं उपवन॥

परिचय–हीरा सिंह चाहिल का उपनाम ‘बिल्ले’ है। जन्म तारीख-१५ फरवरी १९५५ तथा जन्म स्थान-कोतमा जिला- शहडोल (वर्तमान-अनूपपुर म.प्र.)है। वर्तमान एवं स्थाई पता तिफरा,बिलासपुर (छत्तीसगढ़)है। हिन्दी,अँग्रेजी,पंजाबी और बंगाली भाषा का ज्ञान रखने वाले श्री चाहिल की शिक्षा-हायर सेकंडरी और विद्युत में डिप्लोमा है। आपका कार्यक्षेत्र- छत्तीसगढ़ और म.प्र. है। सामाजिक गतिविधि में व्यावहारिक मेल-जोल को प्रमुखता देने वाले बिल्ले की लेखन विधा-गीत,ग़ज़ल और लेख होने के साथ ही अभ्यासरत हैं। लिखने का उद्देश्य-रुचि है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-कवि नीरज हैं। प्रेरणापुंज-धर्मपत्नी श्रीमती शोभा चाहिल हैं। इनकी विशेषज्ञता-खेलकूद (फुटबॉल,वालीबाल,लान टेनिस)में है।