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भज रे मन श्रीकृष्ण को

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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जन्माष्टमी विशेष……

नारायण कारा जनम,लिया कंस संहार।
असुर कर्म आतंक से,मुक्त किया संसार॥

नारायण अनुराग मन,पूत देवकी गेह।
भाद्र मास तिथि अष्टमी,वासुदेव नर देह॥

कृष्ण अमावश कालिमा,जात कृष्ण अभिराम।
कालिन्दी दे सुगम पथ,नंदलाल सुखधाम॥

लीलाधर षोडश कला,वासुदेव रच रास।
मिल राधा अठखेलियाँ,कर नटवर उल्लास॥

पीताम्बर घन श्याम तनु,मोरमुकुट नित भाल।
सुन्दरतम आनंदकर,यशुमति के गोपाल॥

वंशीधर मधुमाधवी,मधुवन बहे बयार।
नंदलाल गिरिधर मधुर,ग्वालसखा गलहार॥

शेषनाग शिर छत्र धर,मोर मुकुट अभिराम।
पद्मनाभ श्रीकृष्ण जग,चक्रपाणि सुखधाम॥

योगेश्वर शारङ्गधर,पीताम्बर घनश्याम।
वसुदेव देवकी तनय,नंदलाल हरि नाम॥

कमलनैन केशव मुदित,मुख लेपित नवनीत।
मगन यशोदा देख सुत,मुरलीधर संगीत॥

लीलाधर नित बालपन,ग्वाल बाल आनंद।
नेहामृत दे उलाहना,ग्वालिन मन मकरंद॥

बकासुर जग त्रासदी,मार किया जग त्राण।
पान पयोधर पूतना,वधकर जन कल्याण॥

हरे कृष्ण माधव भजो,जगन्नाथ गोपेश।
वृन्दावन राधारमण,दामोदर अखिलेश॥

पार्थ सखा गिरिधर परम,महावीर नीतीश।
रंगनाथ मथुरेश भज,मनमोहन जगदीश॥

रास बिहारी रुक्मिणी,राधा नैन चकोर।
गोपीवल्लभ कृष्ण नित,मीरा के चितचोर॥

गोकुलेश गोपाल नित,प्रीत मीत बन लोक।
रूप मनोहर चारुतम,नंदलाल हर शोक॥

यादवेन्द्र अनुराग नित,शरणागत हरि नाम।
जय मुकुन्द गोविन्द भज,यशुमति सुत अभिराम॥

वार्ष्णेय जगदीश जग,मधुसूदन अभिराम।
शान्तिदूत नित लोकहित,जनसीदन सुखधाम॥

पारिजात द्वारकेश हर,सत्यभाम आनंद।
जामवन्त जामातृ बन,प्रियतम मन मकरन्द॥

मीत सुदामा श्रेष्ठतर,सखा द्रौपदी मान।
नायक हरि कुरुक्षेत्र का,विराट रूप महान॥

मुरलीधर अच्युत मधुर,नटखट माखनचोर।
वल्लभ दाऊ साथ में,जगन्नाथ रणछोर॥

भज ‘निकुंज’ नित हरिचरण,यदुनंदन गोलोक।
दामोदर परित्राण नित,हरो रोग जग शोक॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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