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भारतीयों के लिए गर्व की बात

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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ब्रिटेन की नई प्रधानमंत्री लिज ट्रस तीसरी महिला प्रधानमंत्री हैं। उन्होंने कंजर्वेटिव पार्टी के उम्मीदवार ऋषि सुनक को हराकर यह सर्वोच्च पद पाया है। वे पिछली बोरिस जाॅनसन सरकार में विदेश मंत्री रही हैं। ऋषि सुनक हारे जरुर हैंं, लेकिन उन्हें ४३ प्रतिशत मत मिल गए, जबकि ट्रस को ५७ प्रतिशत मिले। सुनक अंग्रेज नहीं हैं, भारतीय मूल के हैं। इसके बावजूद उन्हें ट्रस के ८१ हजार के मुकाबले ६० हजार मत मिल गए, यह अपनेे- आपमें भारतीयों के लिए गर्व की बात है। जिस अंग्रेज ने भारत पर लगभग २०० साल राज किया, उसी अंग्रेज के सिंहासन तक पहुंचने का अवसर एक भारतीय को मिल गया। सुनक का यह साहस ही था कि उन्होंने अपना इस्तीफा देकर बोरिस जाॅनसन की सरकार को गिरवा दिया। वित्तमंत्री के तौर पर उन्हें काफी सराहना मिली थी, लेकिन कई छोटे-मोटे विवादों ने उनकी छवि पर प्रश्न चिन्ह भी उछाल दिए थे। यदि वे जीत जाते तो २१ वीं सदी की वह उल्लेखनीय घटना बन जातीी, लेकिन हारने के बावजूद उन्होंने जो बयान दिया है, उसमें आप भारतीय उदारता और गरिमा की झलक देख सकते हैं। उन्होंने ट्रस को बधाई दी है और कंजर्वेटिव पार्टी को एक परिवार की तरह बताया है। लिज ट्रस कैसी प्रधानमंत्री साबित होंगी, यह कहना मुश्किल है। अगले २ साल तक उनकी कुर्सी को कोई हिला नहीं सकता लेकिन २०२४ के चुनाव में वे अपनी पार्टी को कैसे जिता पाएंगी, यह देखना है। बोरिस जाॅनसन का उन्हें पूरा सहयोग रहेगा, लेकिन उनकी हालत इस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ की तरह हो गई है। वे जिस वक्त में प्रधानमंत्री बनी हैं, वह ऐसा खराब है, जैसा पिछले कई दशकों में नहीं रहा है। ब्रिटेन में मंहगाई, बेरोजगारी, महामारी आदि की समस्याओं ने तो सिर उठा ही रखा है, उसकी अर्थव्यवस्था बिल्कुल डांवाडोल हो रही है। आम आदमी सरकारी
कर भरने से बेहद परेशान है। ट्रस का कहना है कि कर घटाने में वे कोताही नहीं करेंगी, लेकिन ब्रिटेन के कई मजदूर-संगठनों ने अभी से हड़तालों और प्रदर्शनों की घोषणा कर दी है। विदेश मंत्री के तौर पर उनके द्वारा दिए गए कई बयानों की ब्रिटिश अखबारों ने काफी मजाक उड़ाई है, लेकिन यूक्रेन के बारे में उनकी रूस-विरोधी नीति को काफी समर्थन मिला है। यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के संबंध को घनिष्ट बनाने के लिए भी वे कृतसंकल्प हैं। रूस-चीन की हिंद-प्रशांत नीति के विरोध में भी वे सक्रिय रहेंगी। रूस सरकार ने ट्रस के प्रधानमंत्रित्व का काफी मजाक उड़ाया है, लेकिन ऋषि सुनक की हार के बावजूद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रस का स्वागत किया है। कोई आश्चर्य नहीं कि, ट्रस-काल में ही भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौता हो जाए। विदेश मंत्री की हैसियत में वे २ बार भारत आ चुकी हैं। यह भी संभव है कि उनके मंत्रिमंडल में भारतीय मूल के कुछ नेताओं को महत्वपूर्ण विभाग सौंपे जाएं। ऋषि सुनक को पराजित करनेवाली अंग्रेज नेता को भारत के प्रति अतिरिक्त उदारता दिखाने में ही ज्यादा लाभ होगा।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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