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‘भारत’ नाम विलक्षण संस्कृति का प्रतिनिधित्व

परिचर्चा…

पटना (बिहार)।

भारत नाम केवल एक राष्ट्र का नहीं है, यह एक विलक्षण संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। सारी दुनिया हमारी जिस अद्वितीय एकता की बात करती है, वह कोई जातिगत एकता नहीं है, बल्कि वह हमारी भारतीय संस्कृति की एकता है। अत: हमें उस दिन के स्वागत के लिए तत्पर रहना होगा जिस दिन ‘भारत’ आधिकारिक रूप से केवल और केवल भारत रह जाएगा, ‘इण्डिया’ नहीं।
यह विचार पर मुख्य अतिथि अपूर्व कुमार ने व्यक्त किए। अवसर रहा भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में कवि-कथाकार सिद्धेश्वर द्वारा आभासी तौर पर आयोजित परिचर्चा ‘भारत अब इंडिया नहीं’ का। इसका विषय प्रवर्तन करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि, संवैधानिक तौर पर हमारा देश अब ‘भारत’ नाम से जाना जाएगा ‘इंडिया’ नाम से नहीं। यह सुझाव हमने कई वर्ष पहले दिया था, मगर किसी सरकार में यह हिम्मत न थी, जो वर्तमान सरकार‌ में दिख रही है। क्या वे अंग्रेज भक्त रहे हैं या हिंदी शब्द विरोधी ? ‘हिंदी दिवस’ पर इसका पुरजोर स्वागत होना चाहिए। आजादी पाने के बाद के नेताओं ने जो भूल की, वह अब नहीं दोहराई जाए। यानी धीरे-धीरे हम अंग्रेजी के बंधनों से मुक्त हों और पूरी तरह से अपने देश को हिंदी के सिंहासन पर बैठा दें। उन्होंने यह भी कहा कि, यदि हमें हिंदी को मातृभाषा नहीं बल्कि देश की मातृभाषा बनाना है तो, अब एकमत की जरूरत नहीं, बल्कि बहुमत की जरूरत है।
अध्यक्षीय टिप्पणी में रजनी श्रीवास्तव ‘अनंता’ ने कहा कि, अंग्रेजों ने भारत को इंडिया बनाने की कोशिश की। इस कोशिश को हमने नाकाम नहीं किया। अच्छा है देर से ही सही, देश ने अपना नाम वापस पाया। इसी तरह हमें अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी को भी उसका सही स्थान देना होगा। जिस प्रकार कुछ विद्यालयों में हिंदी बोलने पर दंड का प्रावधान है, उसी प्रकार अंग्रेजी बोलने पर होना चाहिए।
कलाकार अविनाश बंधु ने कहा कि, भारत कल भी था, आज भी रहेगा।
मुख्य वक्ता डॉ.अनुज प्रभात ने कहा कि, देखा जाए तो ‘भारत’ हमारे देश का पूर्वकालिक नाम है। इस नाम को हम मौलिक कह सकते हैं अब इसे इंडिया, हिंदुस्तान, आर्यावर्त, हिंद, इंदुज आदि के नाम से बोलने वाले बोलते रहे हैं। एक बात और जब हमें अपने देश का जयघोष करना होता है तो, जय हिंद!, जय भारत! बोलते हैं और वह भी गर्व से। क्या किसी ने कभी, जय इंडिया बोला है..? कदापि नहीं, तो भारत को भारत बोलने में संकोच कैसा..?
सुधा पांडे ने कहा कि इतने अच्छे निर्णय पर विवाद तो होना ही नहीं चाहिए। राज प्रिया रानी ने कहा कि, भारत को भारत कहा जाना राजनीति नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखना है। हिंदी दिवस पर भी हम यह संकल्प ना लें तो यह हमारे लिए शर्मनाक स्थिति है। सपना चंद्रा सहित इंदु उपाध्याय, सुनील कुमार उपाध्याय, माधवी जैन, पुष्प रंजन एवं राजेंद्र राज आदि ने भी विचार प्रस्तुत किए।