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भारत-पाकःदोनों हुक्मरान से कुछ बेहतर की उम्मीद

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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इस्लामाबाद के भारतीय दूतावास में ऐसा क्या हो रहा था,जिसे नाकामयाब करने के लिए पाकिस्तानी फौज और गुप्तचर विभाग ने अपने जवानों को अड़ा दिया। वहां १ जून को और कुछ नहीं, बस एक इफ्तार पार्टी हो रही थी। न तो वहां कोई भारतीय स्वाधीनता का जलसा हो रहा था,न किसी भारतीय विदेश मंत्री की सम्मान-सभा हो रही थी,न कोई पाकिस्तान-विरोधी सम्मेलन हो रहा था। क्या इफ्तार पार्टी में भी अड़ंगा लगाना किसी इस्लामी राष्ट्र को शोभा देता है ? यह ठीक है कि पाकिस्तान के हुक्मरान भारत को एक ‘हिंदू राष्ट्र’ ही मानते हैं,जैसे पाकिस्तान को वे एक मुस्लिम राष्ट्र मानते हैं। यदि ऐसा है तो ‘हिंदू राष्ट्र’ के उच्चायुक्त अजय बिसारिया द्वारा आयोजित इफ्तार पार्टी का पाकिस्तान के हुक्मरानों को जोर-शोर से स्वागत करना चाहिए था,लेकिन वहां हुआ क्या ? वहां निमंत्रित लगभग ३०० अतिथियों को पाकिस्तानी पुलिस ने हद से ज्यादा तंग किया। ज्यादातर को अंदर जाने ही नहीं दिया गया। ये लोग कौन थे ? ये सब पाकिस्तान के गिने-चुने भद्र लोग थे। ये ऐरे-गैरे-नत्थू खेरे लोग नहीं थे। जब पाक सरकार की इस हरकत पर भारत की तरफ से एतराज़ जताया गया तो पाकिस्तान का जवाब था कि आपने भी २३ मार्च और २८ मई को यही किया था। २३ मार्च को पाकिस्तान-दिवस और २८ मई को इफ्तार पार्टी दिल्ली के पाक-उच्चायोग में जब मनाई गई तो भारतीय पुलिस ने भी यही किया था। याने जैसे को तैसा किया गया। सोचता हूँ कि दोनों देशों ने यह ठीक नहीं किया। यदि भारत ने आतंकवादी हमलों और चुनावी माहौल में वैसा कर भी दिया था तो पाकिस्तान सरकार,खास तौर से इमरान खान को अपनी ऊंचाई पर टिके रहने चाहिए था। शालीनता दिखाना हमेशा बड़े भाई के लिए जरुरी नहीं होता। छोटे भाई की शालीनता का जलवा तो और भी शानदार होता है। इमरान ने मोदी को जीत पर बधाई दी और उसके कई दिन पहले उन्होंने कहा था कि मोदी यदि जीत गए तो भारत-पाक संबंध सुधरने की काफी संभावना है लेकिन अब लगता है कि जैसे को तैसा की नीति पर यदि दोनों देश चलते रहे तो अगले चार-पांच साल में कई बालाकोट और भी होते रहेंगे। आप दोनों अपना-अपना दिल टटोलो और खुद से पूछो कि दोनों देशों के आपसी संबंध सुधारने के लिए क्या आप दोनों कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि जो आज तक दोनों देशों के सारे हुक्मरान नहीं कर सके।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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