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चुनौतियों से घबराएँ नहीं, सफलता के लिए सतत बढ़ते रहें

सत्यम सिंह बघेल
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)

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बहती हुई नदी को देखिये,ध्यान से देखें और चिंतन कीजिये। नदी बहुत तेजी के साथ अपने उदगम स्थल से बहना शुरू करती है। शुरुआत में बहुत छोटा रूप होता है,बिल्कुल छोटा-सा रूप। छोटी-सी धारा के साथ बहना शुरू करती है,जैसे-जैसे आगे बढ़ती है उसका रूप विस्तृत होता जाता है,वह विस्तार लेते जाती है। ऐसा क्यों ?, क्योंकि शुरुआत से ही उसका लक्ष्य अपनी मंजिल (सागर) को प्राप्त करना होता है।
ऐसा नहीं है कि उसे मंजिल (सागर) को पाना आसान होता है। बिल्कुल नहीं,उसके मार्ग में भी अनेक चुनौतियां होती हैं,अनेक कठिनाइयां होती हैं,किन्तु हजारों बाधाएं आने पर भी वह लगातार बहती रहती है,आगे बढ़ते जाती है,गतिमान रहती है। हाँ,यह जरूर होता है कि कुछ स्थानों (परिस्थितियों) पर उसकी गति धीमी हो जाती है,लेकिन वह रुकती कभी नहीं है। थकती कभी नहीं,थमती कभी नहीं,चलती रहती है,बढ़ती रहती है। बहते रहती है सुरीली आवाज के साथ,अपनी मंजिल की ओर लगातार बढ़ती रहती है और कितनी मुश्किलें क्यों न आएं। कितनी ही कठोर चट्टानें उसके मार्ग को रोकने का प्रयास क्यों न करें,वह सारी कठिनाइयों का सीना चीरते हुए अपना लक्ष्य प्राप्त करके ही रहती है।
सोचिये,विचार कीजिये,चिंतन कीजिये! यदि नदी बीच में ही बहना छोड़ दे तो क्या होगा ? उसका पानी ठहर जायेगा और वह कुछ ही दिनों में सूख कर नष्ट हो जाएगी। उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। हमारी ज़िंदगी में भी ऐसा ही होता है। यदि कुछ हासिल करना है,कुछ खास बनना है,जीवन में बेहतर करना है,कामयाबी के अम्बर को छूना है तो लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना होगा। निरंतर बढ़ना होगा,हर चुनौती को पार कर मुश्किलों का सीना चीरकर अनवरत आगे बढ़ते रहना होगा। तभी सफल होना सम्भव है और कहीं रुके तो असफलता निश्चित है।
चुनौतियां नदी के सामने भी आती हैं और हमारे सामने भी आती हैं। नदी की तरह आगे तभी बढ़ सकते हैं जब हमारे इरादे अटल हों और सफल होने का संकल्प दृढ़ हो। कर्मपथ में बाधाएं आती ही हैं,सभी के जीवन में आती हैं। बहुत-सी बाधाएं सामने मुँह फैलाए खड़ी मिलती हैं। यह बाधाएं हमें रोकने की पूरी कोशिश करती हैं। जो लोग मन से कमजोर होते हैं,जिन्हें खुद पर विश्वास नही होता,जो डरते हैं,भयभीत होते हैं। वे जरा-सी चुनौतियों के आगे झुक जाते हैं और असफलता को स्वीकार कर लेते हैं। फिर बाद में अपने भाग्य को कोसते हैं।
जो हिम्मती होते हैं,साहसी होते हैं,वीर लोग कठिन से कठिन चुनौती का सीना तान कर सामना करते हैं। आगे बढ़ते हैं,ऊंचाई पर पहुंचते हैं और संसार में अपनी एक खास पहचान बनाते हैं,महान कहलाते हैं। इसलिए सफल होना है तो अनवरत चलते रहिए। एक के बाद एक प्रयास निरंतर करते रहिए,एक दिन आप कामयाबी का अम्बर अवश्य ही छुएंगे।

परिचय-सत्यम सिंह बघेल का जन्म ५ अप्रैल १९९० को सिवनी (म.प्र.)में हुआ है। निवास लखनऊ (उ.प्र.)में है। स्नातक (कम्प्यूटर विज्ञान) तक शिक्षित श्री बघेल की लेखन विधा-आलेख(विशेष रूप से संपादकीय लेख), कविता तथा लघुकथा है। कईं अखबारों, वेब पोर्टल और स्मारिका में भी रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। १५ से अधिक पुस्तकों (कविता,लघुकथा,लेख,संस्मरण आदि साझा संकलनों) का सम्पादन भी कर चुके हैं। बतौर सम्प्रति फिलहाल आप एक प्रकाशन में संस्थापक, प्रकाशक,प्रबन्धक होने के साथ ही प्रेरणादायक वक्ता भी हैं। 

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