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भाव, भाषा और प्रस्तुति का सुन्दर समन्वय है गोविंद भारद्वाज की लघुकथाओं में

पटना (बिहार)।

भाव, भाषा और प्रस्तुति का सुन्दर समन्वय गोविंद भारद्वाज की लघुकथाओं में देखने को मिलता है। वस्तुत:, लघुकथा विस्तृत वर्णन या विवरण नहीं है, और न कोरा सन्देश है। यह जीवन के क्षण विशेष की गहन अनुभूति का सांकेतिक चित्रण है। लघुकथाकारों को काल दोष से बचना चाहिए।
यह बात अध्यक्षीय टिप्पणी में सुप्रसिद्ध लघुकथाकार डॉ. इंदु उपाध्याय ने कही। मौका रहा भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी माध्यम से लघुकथा सम्मेलन का। इसका संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि, हिंदी साहित्य में लघुकथा सृजन की प्रक्रिया अब कोई नई विधा नहीं रह गई है। आठवें दशक से ही लघुकथा ‘एक लघुकथा आंदोलन’ के रूप में विकसित होकर विश्व में इस तरह प्रसिद्ध हो गई है कि, आज यह एक साहित्यिक विधा भी है और हिंदी साहित्य के लिए धरोहर भी। छोटे आकार वाली लघुकथाओं के माध्यम से ही प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, खलील जिब्रान, मंटो आदि जैसे लेखकों ने पाठकों का ध्यान अपनी ओर विशेष रूप से खींचा। ऐसी ही छोटे आकार वाली लघुकथाओं से पाठकों का ध्यान अपनी ओर खींचने में गोविंद भारद्वाज काफ़ी आगे नजर आते हैं। कविता और लघुकथा के मायने से शब्दों की कंजूसी एक सफल लेखक की पहली पहचान बनती है। गोविंद भारद्वाज की लघुकथाओं को पढ़ने के बाद विश्वास के साथ हम कह सकते हैं कि, कम शब्दों में बड़ी बात कहना गोविंद भारद्वाज की लघुकथा की विशेषता है। इनकी लघुकथाएं जनमानस के हृदय की धड़़कन बनने में पूरी तरह सक्षम हैं।
मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित साहित्यकार गोविंद भारद्वाज ने कहा कि, लघुकथा में पैनी धार होनी चाहिए। कथ्य, शैली और कसावट लिए लघुकथा होनी चाहिए। शीर्षक बड़े न हों और शीर्षक के माध्यम से लघुकथा को खोले नहीं। एक से अधिक घटनाओं पर आधारित लघुकथा से बचना चाहिए। आधुनिक घटनाओं का समावेश लघुकथा में होना चाहिए।
श्री भारद्वाज ने एकल पाठ में ताजा-तरीन १२ लघुकथाओं का पाठ किया। सम्मेलन में देशभर के लघुकथाकारों ने जबरदस्त लघुकथाओं को प्रस्तुत कर सृजनात्मक विकास का उदाहरण प्रस्तुत किया। प्रस्तुति में प्रमुख इंदु उपाध्याय, मीना कुमारी परिहार, राज प्रिया रानी, ऋचा वर्मा व सपना चंद्रा आदि रहे। धन्यवाद ज्ञापन संस्था की सचिव ऋचा वर्मा ने दिया।