कुल पृष्ठ दर्शन : 268

भौंसला से सीखे सारा देश ‘जातियता’

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
**********************************************************************
हरियाणा में जींद के पास एक गांव है,भौंसला। इस गांव में आस-पास के २४ गांवों की एक पंचायत हुई। यह सर्वजातिय खेड़ा खाप पंचायत हुई। इसमें सभी गांवों के सरपंचों ने सर्वसम्मति से एक फैसला किया। यह फैसला ऐसा है,जो हमारी संसद को,सभी विधानसभाओं को और देश की सभी पंचायतों को भी करना चाहिए। आजादी के बाद इतना क्रांतिकारी फैसला भारत की किसी पंचायत ने शायद नहीं किया है। हमारे पड़ौस में कुछ बौद्ध और इस्लामी देश हैं,जो यह फैसला आसानी से कर सकते हैं लेकिन उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। क्या है यह फैसला ? यह है,अपने अपने नाम के साथ इन गांवों के लोग अब अपना जातिय उपनाम और गौत्र उपनाम नहीं लगाएंगे। सिर्फ अपना पहला नाम लिखेंगे। जैसे सिर्फ बंसीलाल,सिर्फ भजनलाल,सिर्फ देवीलाल। वे अपने मकानों, दुकानों,वाहनों पर से भी जातिय उपनाम हटाएंगे। मैं कहता हूँ कि पाठशालाओं,महाविद्यालयों,अस्पतालों,धर्मशालाओं,प्याऊ आदि पर से जातिय नाम क्यों नहीं हटाए जाएं ? जन्मना जातिय संगठनों पर भी प्रतिबंध लगना चाहिए। जातिय भेदभाव खत्म करने के लिए अब सारे देश को तैयार होना होगा। कुछ वर्ष पहले जब मनमोहनसिंह सरकार ने जातिय जन-गणना शुरु करवाई तो मैंने ‘मेरी जाति हिंदुस्तानी’ आंदोलन चलाया था। देश की सभी पार्टियों ने इस आंदोलन का समर्थन किया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के हस्तक्षेप से वह जातिय जन-गणना रोक दी गई थी। यदि देश से जातियता खत्म करनी है तो जातिय उपनाम आदि हटाना तो बस एक शुरुआत भर है। ज्यादा जरुरी है कि जातिय आधार पर नौकरियों में आरक्षण को तत्काल खत्म किया जाए। आरक्षण जरुर दिया जाए लेकिन सिर्फ शिक्षा में और उन्हें जो आर्थिक दृष्टि से कमजोर हों। विवाह करते समय वर-वधू की जात देखना बंद करें,उनके गुण,कर्म और स्वभाव को ही कुंजी बनाएं। जाति-प्रथा ने भारत-जैसे महान राष्ट्र को पंगु बना दिया है। यह हिंदू समाज का सबसे भयंकर अभिशाप है। इस सर्प ने हमारे मुसलमानों,बौद्धों, ईसाइयों,सिखों और जैनियों को भी डस लिया है। जातिवाद के विरुद्ध आर्यसमाज के प्रणेता महर्षि दयानंद ने जो मंत्र डेढ़ सौ साल पहले फूंका था,उसने हरियाणा में अपना रंग दिखाया है। इस मंत्र की प्रतिध्वनि सिर्फ भारत में ही नहीं,हमारे पड़ौसी देशों में भी हो। कुछ समाजसेवी,कुछ समाज सुधारक,कुछ साधु-संन्यासी और डाॅ.लोहिया-जैसे कुछ महान नेता उठें और दक्षिण एशिया के इन पौने दो अरब लोगों की जिंदगी में नई जान फूंक दें।

परिचय-डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

Leave a Reply