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भ्रष्टाचार की सफाई का संकल्प

ललित गर्ग
दिल्ली

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उत्तर प्रदेश में योगी सरकार का भ्रष्टाचार पर सशक्त वार भ्रष्टाचार और पेशेवर कदाचार के आरोप में लिप्त अधिकारियों के ठिकानों पर सीबीआई की दस्तक एक नई भोर का आगाज है। ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों पर लगातार प्रहार के लिए केन्द्र और राज्य सरकार के संकल्प की सराहना की जानी चाहिए। बुलंदशहर के जिलाधिकारी और कौशल विकास निगम के प्रबंध निदेशक के अलावा कई अन्य बड़े अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई इस बात का प्रबल संकेत है कि केन्द्र और राज्य सरकार भ्रष्टाचारमुक्त प्रशासन के लिये प्रतिबद्ध है। अरबों रुपयों के खनन घोटाले में इससे पहले कई सफेदपोशों और अधिकारियों को जेल भेजा जा चुका है।
भ्रष्टाचार एवं आचरणहीनता भारत की प्रशासनिक व्यवस्था के बदनुमा दाग हैं,जिन्हें धोने एवं पवित्र करने के स्वर आजादी के बाद से गूंज रहे हैं, लेकिन किसी भी सरकार ने इस दिशा में कड़े कदम उठाने का साहस नहीं किया। काम कम हो,माफ किया जा सकता है,पर आचारहीनता तो सोची- समझी गलती है-उसे माफ नहीं किया जा सकता। तंत्र की रोग मुक्ति, स्वस्थ समाज का आधार होगा। राष्ट्रीय चरित्र एवं सामाजिक चरित्र निर्माण के लिए व्यक्ति को नैतिकता एवं चारित्रिक मूल्यों से बांधना ही होगा। मोदी एवं योगी सरकार इस दिशा में नये इतिहास का सृजन करते हुए जो कदम उठा रही है,उससे भ्रष्टाचार,रिश्वतखोरी,आचारहीनता एवं आर्थिक अराजकता पर काबू पाने की दिशा में अवश्य ही सफलता मिलेगी। ऐसी ही उम्मीदों की संभावनाओं को देखते हुए गत लोकसभा चुनाव में भाजपा को भारी बहुमत से जीत मिली थी। नोटबंदी और जीएसटी के कारण कठिनाई के बावजूद मतदाताओं ने भाजपा का इतनी मजबूती से समर्थन किया,उन्हें भाजपा सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी नीति में रोशनी दिखाई दी। सीबीआई छापों के जरिये जिस तरह की जानकारियां सामने आ रही हैं,उसके आधार पर यह समझना कठिन नहीं है कि सपा और बसपा के शासनकाल में भ्रष्टाचार किस बुलंदी पर पहुंच गया था। जांच एजेंसियों से यह अपेक्षा जरूर है कि,राजनीतिक नेतृत्व की मंशा के अनुरूप भ्रष्टाचार आरोपितों के साथ उसी तरह व्यवहार किया जाना चाहिए,जैसे ऐसे आरोपों में लिप्त किसी साधारण व्यक्ति के साथ अपेक्षित है। भ्रष्टाचार राष्ट्रद्रोह सरीखा अपराध है। यह कृत्य तय और संगीन हो जाता है,जब आरोपित व्यक्ति संवेदनशील पदाधिकारी हो।
प्रशासन को पारदर्शी बनाने के लिए हाल के वर्षों में भाजपा सरकार ने अनेक सार्थक कदम उठाये हैं। मोदी सरकार ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि न तो भ्रष्टाचार को बर्दाश्त किया जायेगा,और न ही भ्रष्ट अधिकारियों को बख्शा जायेगा। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश के इन भ्रष्ट अधिकारियों पर शिकंजा कसा गया है। पहली नजर में यह एक सामान्य-सी खबर ही है, मगर यह जरूरी कदम है,और सराहनीय भी। इन अधिकारियों के खिलाफ लगे आरोपों के विस्तार में जाएं,तो पता चलता है कि ये सारे मामले न सिर्फ गंभीर हैं,बल्कि पूरी व्यवस्था को खोखला करने वाले हैं।
प्रशासनिक क्षेत्र एवं सर्वोच्च नौकरशाही कितनी भ्रष्ट,अनैतिक,अराजक एवं चरित्रहीन है,इन अधिकारियों के कारनामों से सहज अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे मामलों को निपटाने में कई बरस लगते हैं,और न तो समय रहते सजा मिल पाती है,और न सजा बाकी लोगों के लिए सबक बन पाती है। भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए सबसे जरूरी यह है कि मामलों का निपटारा जल्दी हो और भ्रष्टाचारियों के लिए सजा की पक्की व्यवस्था बने।
आज हम अगर दायित्व स्वीकारने वाले समूह के लिए या सामूहिक तौर पर एक संहिता का निर्माण कर सकें,तो निश्चय ही प्रजातांत्रिक ढांचे को कायम रखते हुए एक मजबूत,शुद्ध व्यवस्था संचालन की प्रक्रिया बना सकते हैं। हाँ,तब प्रतिक्रिया व्यक्त करने वालों को मुखर करना पड़ेगा और चापलूसों को हताश,ताकि सबसे ऊपर अनुशासन और आचार संहिता स्थापित हो सके,अन्यथा भ्रष्टाचारमुक्ति का संकल्प एक दिवास्वप्न ही बना रहेगा। राष्ट्र केवल पहाड़ों,नदियों,खेतों,भवनों और कारखानों से ही नहीं बनता,यह बनता है उसमें रहने वाले लोगों के उच्च चरित्र से। हम केवल राष्ट्रीयता के खाने में भारतीय लिखने तक ही न जिएं,बल्कि एक महान राष्ट्रीयता यानि चरित्रयुक्त राष्ट्रीयता के प्रतीक बन कर जिएं।
चिंगारी को छोटी समझ कर दावानल की संभावना को नकार देने वाला जीवन कभी सुरक्षा नहीं पा सकता। बुराई कहीं भी हो,स्वयं में या समाज में,परिवार में अथवा देश में,शासन में या प्रशासन में,तत्काल हमें अंगुली निर्देश कर परिष्कार करना अपना दायित्व समझना चाहिए,क्योंकि एक स्वस्थ समाज,स्वस्थ राष्ट्र,स्वस्थ प्रशासन स्वस्थ जीवन की पहचान बनता है।
आज राष्ट्र पंजों के बल खड़ा नैतिकता एवं भ्रष्टाचारमुक्ति की प्रतीक्षा कर रहा है। कब होगा वह सूर्योदय,जिस दिन प्रशासन में ईमानदारी एवं पारदर्शिता स्थापित होगी। राष्ट्रीय एवं सामाजिक जीवन में विश्वास जगेगा। मूल्यों की राजनीति कहकर कीमत की राजनीति चलाने वाले राजनेता नकार दिये जायेंगे। भारतीय जीवन से नैतिकता इतनी जल्दी भाग रही है कि उसे थामकर रोक पाना किसी एक व्यक्ति के लिए सम्भव नहीं है। सामूहिक जागृति लानी होगी। यह सबसे कठिन है पर यह सबसे आवश्यक भी है। मोदी-योगी सरकार इस कठिन काम को अंजाम देने के लिये जुटें हैं तो उनको बल देना ही चाहिए।
यही इसका सबसे हठीला और उत्कृष्ट दौर है,क्योंकि सुधारवादी की लड़ाई सदैव रूढ़िवादी से है,तो फिर वहीं पर समझौता क्यों ? वहीं पर घुटना टेक क्यों ? रूढ़िवाद कहीं इतना ताकतवर नहीं बन जाए कि,सुधारवाद अप्रासंगिक हो जाए। सुधारवाद और सुधारवादी की मुखरता प्रभावशाली बनी रहे,तभी नया भारत बनेगा,सशक्त भारत बनेगा।

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