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मनोरंजन कॆ लिए बुरी नहीं ‘दे दे प्यार दे’

इदरीस खत्री
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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निर्देशक अकीव अली की इस फिल्म में अदाकार अजय देवगन,रकुल प्रीत सिंह, तब्बू,आलोक नाथ,जावेद जाफरी और जिमी शेरगिल हैं। लेखन-लव रंजन, एवं तरुण जैन का है। संगीत-अमाल मलिक, रोचक कोहली,हितेश सोनिक ने दिया है।
फिल्म का समय १३५ मिनट है। कहानी कॆ अनुसार-एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति आशीष मेहरा(उम्र ५० साल,अजय देवगन)की मुलाकात आएशा खुराना (रकुल प्रीत,उम्र २६ साल) से होती है और मुलाकात मुहब्बत में तब्दील हो जाती है। कहानी में मोड़ तब आता है जब आशीष मेहरा अपनी प्रेमिका को घर लेकर पहुँचते हैं तो वहाँ उसकी बीवी मंजू(तब्बू),और बच्चे होते हैं,जो आएशा की उम्र के ही होते हैं लगभग। अब हमारा नायक दो औरतों में फंस जाता है एक बीवी दूसरी प्रेमिका।
यह परिस्थिति जन्य हास्य बनता है जो उम्दा है,उस पर संवाद भी कमाल तो हास्य तो भरपूर आना ही है। इस कड़ी में चार चांद लगाए जावेद जाफरी और जिमि शेरगिल ने।
अब नायक किसे मिलेगा और कैसे ?
इस सवाल के जवाब के लिए फ़िल्म देखना बनती है। फ़िल्म ने बड़ी सादगी से दो सामाजिक मुद्दों पर ध्यान खींचा-पहला तलाक,दूसरा लिव इन रिलेशनशिप। साथ ही फ़िल्म मानवीय रिश्तों का ताना-बाना भी बुनती है।
अदाकारी पर बात करें तो अजय देवगन वह सोना है जिसे आप चाहे जहां धारण कीजिये,वह अपनी चमक दिखाएगा ही। दोस्तों,अजय वह कलाकार है जो हर किरदार को पूरी तैयारी से पेश करते हैं यहां भी वही किया उन्होंने,’बोल बच्चन’ में पहलवान,’दृश्यम’ में जवान बेटी के पिता,’सिंघम’ में अकडू पुलिसवाला, ‘गोलमाल’ में गोपाल जैसे सभी किरदार दिल को छू जाते हैं।
तब्बू फ़िल्म जगत में एक हीरे की तरह है जो परिपूर्णता से भरी हुई है,राष्ट्रीय सम्मान से नवाज़ी अदाकारा है। रकुल प्रीत दक्षिण की कामयाब नायिका में शुमार होती है। साथ ही अजय,तब्बू के बीच में कहीं भी हल्की नहीं पड़ती है। उन्होंने अपना किरदार जिंदादिल होकर किया है।
जिमी शेरगिल,जावेद जाफरी,आलोक नाथ छोटे किरदारों में अपना सम्पूर्ण देते हैं।
इस फ़िल्म का पहला आधा हिस्सा कसा हुआ है,लेकिन दूसरे भाग को सम्पादित किया जा सकता था। दूसरे भाग में फ़िल्म पकड़ छोड़ती लगी,लेकिन तब्बू,आलोक नाथ,जिमी शेरगिल ने बहुत हद तक सम्भाल लिया।
संगीत में-‘एक गाना दिल रोये जाए’, अरिजीत का गया हुआ मधुर बन गया है। आप उसे याद रख पाएंगे,पर शेष गाने याद नहीं रहते। पार्श्व ध्वनि पर बात करते हैं तो कहीं-कहीं पर हितेश शोनीक ने बढ़िया काम किया है,खास तब्बू और रकुल के शीत युद्ध वाले दृश्य में।
इस फिल्म का बजट ७५ करोड़ है। ६० करोड़ निर्माण की लागत और १५ करोड़ विज्ञापन एवं वितरण में है।
फ़िल्म को भारत में ३४०० पर्दों पर प्रदर्शित किया गया है। फ़िल्म को सफल होने के लिए ७५ करोड़ की कमाई चाहिए,वहीं सुपरहिट के लिए १३० करोड़ की कमाई चाहिए।
फ़िल्म के पेड प्री-विव्यू शो रखे गए थे, उससे ४ करोड़ का कलेक्शन हुआ है। पहले दिन की एडवांस बुकिंग १३.८० करोड़ की हुई है।
फ़िल्म का विषय हट के है। दोहरी उम्र का नायक आधी उम्र की नायिका उनमें प्रेम, हॉलीवुड कोरिया में इन विषयों पर बहुत फिल्म आई,परन्तु भारत में पहला प्रयोग है।
फिल्म की मजबूत कड़ी है कहानी का बढ़िया होना। संवाद भी हास्य से भरपूर है। इधर,कमज़ोर कड़ी भी है। दूसरे भाग में आप फ़िल्म देखते-देखते समझने लगते हैं कि आगे क्या होगा। दूसरा भाग सम्पादित किया जा सकता था। १२-१५ मिनट की काट-छाँट की जा सकती थी
अंत में फ़िल्म मनोरंजन,हास्य से भरपूर पैसा वसूल है,इसलिए देखी जा सकती है। इस फ़िल्म को साढ़े ३ सितारे देना बेहतर होगा।

परिचय : इंदौर शहर के अभिनय जगत में १९९३ से सतत रंगकर्म में इदरीस खत्री सक्रिय हैं,इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग १३० नाटक और १००० से ज्यादा शो में काम किया है। देअविवि के नाट्य दल को बतौर निर्देशक ११ बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में देने के साथ ही लगभग ३५ कार्यशालाएं,१० लघु फिल्म और ३ हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। आप इसी शहर में ही रहकर अभिनय अकादमी संचालित करते हैं,जहाँ प्रशिक्षण देते हैं। करीब दस साल से एक नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं। फिलहाल श्री खत्री मुम्बई के एक प्रोडक्शन हाउस में अभिनय प्रशिक्षक हैंl आप टीवी धारावाहिकों तथा फ़िल्म लेखन में सक्रिय हैंl १९ लघु फिल्मों में अभिनय कर चुके श्री खत्री का निवास इसी शहर में हैl आप वर्तमान में एक दैनिक समाचार-पत्र एवं पोर्टल में फ़िल्म सम्पादक के रूप में कार्यरत हैंl