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मन में संजोकर रखने योग्य है `मन की अभिलाषा`

आरती सिंह ‘प्रियदर्शिनी’
गोरखपुर(उत्तरप्रदेश)
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बिहार की धरती में साहित्यकारों का उदभव कोई नई बात नहीं है। कहते हैं कि बिहार और साहित्य का अटूट नाता है। प्रखर गूँज प्रकाशन के सानिध्य में प्रकाशित इस एकल संग्रह मन की अभिलाषा के रचयिता डॉ.छेदीलाल केशरी भी इसका एक उदाहरण है। कैमूर बिहार के रहने वाले डॉ.केशरी का बचपन पिता के सख्त अनुशासन की छांव में बीता,फिर भी उनके मन में कविता को पुष्पित एवं पल्लवित होने से कोई रोक नहीं सका। मन से इतना कोमल व्यक्तित्व होते हुए भी डॉ.छेदीलाल ने चिकित्सक जैसे भावहीन कार्यक्षेत्र को अपनाया,परंतु उन्होंने माँ सरस्वती के इस उपहार को भी दिल में संजोकर रखा और वक्त आने पर इसे काव्य संग्रह के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है।


उनके इस संग्रह में कुछ ऐसी कविताएं भी संकलित हैं,जो उन्होंने अपने बाल्यावस्था में ही लिखी थी। लोभी दुनिया ऐसी ही एक कविता है। इस कविता में बड़े ही सरल शब्दों में उन्होंने समाज एवं रिश्तों की कटु सच्चाई को दर्शाया है।
“सब तुझको मिल यह कह देंगे
तू मर भी जा हम सह लेंगे
यह सुनकर के तू सोच जरा
इस दुनिया में है कौन तेरा”
इसके अतिरिक्त माँ सरस्वती की आराधना में भी उन्होंने अपने शब्दों के आँसू माँ शारदा के चरणों में अर्पित किए हैं।
“अंधे को दृग महा रंग को विश्व संपदा सारी
जेठ दुपहरी के मरुस्थल में तृषित पथिक को वारी”
अपनी पत्नी,बच्चे एवं परिवार के प्रति उनकी मनोभावनाएं भी इस संग्रह में अपना बराबर महत्व रखती है। अपनी जन्मदायिनी की ममता को वह मनुष्य का स्नेहमयी खेवनहार कहते हैं।
“माता तो ममता का गृह है
वह तो साकार स्नेहमयी है”
राजनीति ने सदैव से ही साहित्य के क्षेत्र को प्रभावित कर रखा है। छेदीलाल केशरी की रचनाएं भी राजनीति से अछूती नहीं है। उनकी कविता चुनाव की लहर तथा वाह मोदी जी! सामयिक एवं विचारणीय है।
नया भारत कविता में भी उन्होंने देश में होने वाली राजनीतिक हलचल पर नजर डाली है। कुछ कविताओं में उन्होंने देश के प्रति अपनी प्रेमभावना को भी लिखने का प्रयास किया है। आने वाला कल कविता में भारत की महानता का तुलनात्मक वर्णन बेहद खूबसूरत बन पड़ा है।
उन्होंने अपनी कविता प्रकृति में वह धरती की नैसर्गिक सुंदरता का वर्णन करते हैं,तो चिड़ा-चिड़ी में पक्षियों के माध्यम से पिता का संतान प्रेम की निस्वार्थ भावनाओं को दर्शाते हैं। चांद जी कविता के माध्यम से वह एक बार फिर धरती एवं आकाश की प्राकृतिक सुंदरता का गुणगान करते हैं।
“क्या स्वर्ग उतर आया था
फूलों की अठखेलियों से
भंवरे की गुंजन में
तितलियों के चुंबन से”
इसके अतिरिक्त इस संग्रह की कुछ अन्य कविताएं प्यासी जिंदगी,जीवन की ख्वाहिश,हृदय की वेदना,हिम्मत, कठपुतली क्यों तू बने,जीवन का सामना इत्यादि में उन्होंने मानव मन की गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास किया है,जो सही मायनों में इस संग्रह की शीर्षक को सार्थक बनाती है।
“अपना सपना अपनों से चूर कर
फूंक झोपड़ा देख दूर पर
पचताती हूँ, दुख पाती हूँ
अपने को क्यों मैं सताती हूँ”
उपरोक्त पंक्तियों में बहुत ही कम शब्दों में ही उन्होंने जीवन का सार कह डाला है।
सशक्त प्रकाशन एवं सम्पादन,सुंदर आवरण पृष्ठ तथा आकर्षक चित्रों से सुसज्जित यह पुस्तक पाठकों को अवश्य ही आकर्षित करेगी।

परिचय-आरती सिंह का साहित्यिक उपनाम-प्रियदर्शिनी हैl १५ फरवरी १९८१ को मुजफ्फरपुर में जन्मीं हैंl वर्तमान में गोरखपुर(उ.प्र.) में निवास है,तथा स्थाई पता भी यही हैl  आपको हिन्दी भाषा का ज्ञान हैl इनकी पूर्ण शिक्षा-स्नातकोत्तर(हिंदी) एवं रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा हैl कार्यक्षेत्र-गृहिणी का हैl आरती सिंह की लेखन विधा-कहानी एवं निबंध हैl विविध प्रादेशिक-राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कलम को स्थान मिला हैl प्रियदर्शिनी को `आनलाईन कविजयी सम्मेलन` में पुरस्कार प्राप्त हुआ है तो कहानी प्रतियोगिता में कहानी `सुनहरे पल` तथा `अपनी सौतन` के लिए सांत्वना पुरस्कार सहित `फैन आफ द मंथ`,`कथा गौरव` तथा `काव्य रश्मि` का सम्मान भी पाया है। आप ब्लॉग पर भी अपनी भावना प्रदर्शित करती हैंl इनकी लेखनी का उद्देश्य-आत्मिक संतुष्टि एवं अपनी रचनाओं के माध्यम से महिलाओं का हौंसला बढ़ाना हैl आपके लिए पसंदीदा हिन्दी लेखक-प्रेमचंद एवं महादेवी वर्मा हैंl  

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