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कीर्तिशेषःयुग निर्माता स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरिजी

संदीप सृजन
उज्जैन (मध्यप्रदेश) 
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अध्यात्म,चेतना के प्रतीक भारतमाता मन्दिर के प्रतिष्ठापक ब्रम्हानिष्ठ स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि जी महाराज वर्तमान युग के विवेकानन्द थे। २६ वर्ष की अल्प आयु में ही शंकराचार्य पद पर सुशोभित हुए और दीन-दुखी,गिरिवासी, वनवासी,हरिजनों की सेवा और साम्प्रदायिक मतभेदों को दूर कर समन्वय,भावना का विश्व में प्रसार करने के लिए सनातन धर्म के महानतम पद को उन्होंने तिनके के समान त्याग भी दिया,जो वर्तमान समय की असामान्य घटना से कम नहीं थी।
स्वामी जी ने धार्मिक,सांस्कृतिक और राष्ट्रीय, चेतना के समन्वित दर्शन एवं भारत की विभिन्नता में भी एकता की प्रतीति के लिए पतित-पावनी गंगा के तट पर सात मन्जिला भारतमाता मन्दिर बनवाया,जो आपके मातृभूमि प्रेम व उत्सर्ग का अद्वितीय उदाहरण है। इस मन्दिर से देश-विदेश के लाखों लोग दर्शन कर आध्यात्म,संस्कृति,राष्ट्र और शिक्षा सम्बन्धी विचारों की चेतना और प्रेरणा प्राप्त कर रहे हैं।
सत्यमित्रानंदजी बाल्यावस्था से ही अध्ययनशील,चिंतक और निस्पृही व्यक्तित्व के धनी थे। महामंडलेश्वर स्वामी वेदव्यासानंदजी महाराज से उन्हें सत्यमित्र ब्रह्मचारी नाम मिला और साधना के विविध सोपान भी प्राप्त हुए। भानपुरा क्षेत्र में उन्होंने अतिनिर्धन लोगों के उत्थान की दिशा में अनेक कार्य किए।
स्वामी जी ने १९८८ में समन्वय सेवा फाउंडेशन की स्थापना की,जिसका उद्देश्य गरीब लोगों, पहाड़ी इलाकों में शिक्षा एवं सेवा के उपक्रम संचालित करना है। उन्होंने समन्वय परिवार, समन्वय कुटीर,कई आश्रम और कई अन्य सामाजिक एवं आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यक्रम भी स्थापित किए। पिछले पांच दशकों के दौरान कई देशों की यात्रा करके कईं देशों में शिक्षा और पूजा केन्द्र स्थापित किए थे।
उन्होंने सांस्कृतिक चेतना को जागृत कर मानव के नवनिर्माण का बीड़ा उठाया था। भारतीय वांग्मय के उद्घोष ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनाः’ के मंत्रों को आत्मसाध कर स्वामीजी उसी दिशा में अग्रसर रहे।
२५ जून २०१९ को ब्रह्म बेला में स्वामीजी अपने जीवन में विकास की अनगिनत उपलब्धियों को मनुष्य समाज को समर्पित करते हुए विदेही हो गए,लेकिन राष्ट्रीयता के उज्ज्वल इतिहास का स्वर्णिम पृष्ठ रहेंगे। आप सदैव जीवित रहेंगे भारतीय जन मानस में और एक युग निर्माता के रूप में इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों में। सादर नमन।

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