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मन मेरा भी नहीं,मन तेरा भी नहीं

गोलू सिंह
रोहतास(बिहार)
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मन मेरा भी नहीं,मन तेरा भी नहीं,
अब तो बस दोनों ओर से बहानों के तीर चलते हैंl

आज भी कभी तन्हाइयों में सुगबुगाहट होती है,
दिलों से होकर यादों के पीर चलते हैंl

कल संग थे,बहुत खुश थे,
आज अकेले हैं,होकर गंभीर चलते हैंl

चलो,सीख लिया बहुत कुछ,हम सबने छोड़ संग को,
याद अपनों की होती है,पर दिलों पर शमशीर चलते हैंl

हाँ,चाहत नहीं थी बदलने की,शायद मजबूर हो गए,
सबक जबसे मिला अकेले का,अब गिरकर भी चलते हैंl

जो उम्मीद बाकी थी,खत्म हो गई ‘एक होने की’,
तकदीर ने शहर की ओर रुख कर लिया
लकीर ने कहा-‘चलो,अब अपने घर चलते हैंl’

मन मेरा भी नहीं,मन तेरा भी नहीं,
तेरी जिंदगी में कर एक नया भोर,चलते हैंl

यादों की डोर में ढीली बनाए रखना,
क्योंकि,पकड़ अब उसका एक छोर चलते हैंl

तुम भी अपने घर को लौट जाना,
हम भी अपने घर चलते हैंll

परिचय-गोलू सिंह का जन्म १६ जनवरी १९९९ को मेदनीपुर में हुआ है। इनका उपनाम-गोलू एनजीथ्री है।lनिवास मेदनीपुर,जिला-रोहतास(बिहार) में है। यह हिंदी भाषा जानते हैं। बिहार निवासी श्री सिंह वर्तमान में कला विषय से स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। इनकी लेखन विधा-कविता ही है। लेखनी का मकसद समाज-देश में परिवर्तन लाना है। इनके पसंदीदा कवि-रामधारी सिंह `दिनकर` और प्रेरणा पुंज स्वामी विवेकानंद जी हैं।

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