ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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वो नैन बसी प्यारी-प्यारी,
मुख सांवला-सलोना है।
महके रजनीगंधा बनकर,
मन का कोना-कोना है॥
तुम संग चाँद रजत रुपहली,
नथ मेरे नगीने लगे
पीत सूरज जुड़े पर मेरे,
फूल कनेर जैसे सजे।
तुम सँग हँसी के फूल झरते,
तुम बिन अंसुवन रोना है।
महके रजनीगंधा बनकर,
मन का कोना-कोना है…॥
उपवन खिलता चारों मौसम,
मन मधुकर गुन-गुन करते
तुम होते सावन ही सावन,
मन भीतर खुशी बरसते।
मीत साथ ही रहना हरदम,
प्रीत की बिरवा बोना है।
महके रजनीगंधा बनकर,
मन का कोना-कोना है॥
परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।