रत्ना बापुली
लखनऊ (उत्तरप्रदेश)
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हे देवों के देव महादेव, करो मेरा नमन स्वीकार,
दे दो आशीष मुझे ऐसा, महिमा लिखूँ मैं अपरम्पार।
हे सृष्टिकर्ता महादेव, गुण गाऊँ मैं बारम्बार,
रचित हुआ है तेरे हाथों, वैभवमय यह संसार।
तू ही जग का पालक और तू ही है संहारक,
देने सबको जीवन तू, बना शीश गंग धारक।
जल ही तो यह जीवन है, गिरि झरना व उपवन,
कैलाशवासी बनकर तू, बनाता दृढ़ मानव मन।
मानव प्रेम का हलाहल ले, बना तू जो विषधर है,
अर्घ तेरा स्वतः उदित बेल धतूरा व जंगली फल है।
तू ही एक पुरूष है भगवन् बाकी तो सब प्रकृति है,
उमा पार्वती व काली तेरी ही चिरकाल सहोदरी है।
डाकिन, योगिन व भूत-पिशाच सब तेरी ही माया है,
तिरस्कृत जो जग से है, वही तेरी बनी बस काया है।
तू ही शिव है, शिव ही सत्य, सत्य ही तो सुन्दर है,
इस जग में तेरे सिवा तो, नहीं कोई विश्वेश्वर है॥