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महापर्व है ‘गणतंत्र दिवस’

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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कहने को गणतंत्र, बँधे हैं तंत्र- मंत्र से,
फिर भी हम गणतंत्र रहते हैं स्वछंद से
व्यक्तिगत-धार्मिक कानून हैं गणतंत्र से,
संविधान धज्जी उड़ाते कहते गणतंत्र से।

बड़ी मेहनत, चिंतन, मंथन से बना गणतंत्र है,
इसकी हद में रहो तो जानो, हम गणतंत्र हैं
विधि-विधान को मानो, तब समझो यह गणतंत्र है,
डॉ. आम्बेडकर की सब मानो, तभी ये गणतंत्र है।

‘अपनी ढफली-अपना राग’ से व्यथित यह गणतंत्र है,
धार्मिक कट्टरता से क्रुद्ध मेरा यह गणतंत्र है
हर विधान से रस्सी बाँधो, तभी यह गणतंत्र है,
संविधान को सख्त करो, तभी यह गणतंत्र है।

आज़ादी के बाद से हर शख्स स्वछंद है,
शासन पर ही धर्म गुरुओं का स्वयं का हुड़दंग है
शासन और स्वयं का अनुशासन भी भंग है,
भारत है आज़ाद, यहाँ धर्म गुरुओं की उमंग है।

संविधान और गणतंत्र की महिमा तंग-तंग है,
विधान और न्याय प्रणाली कटी पतंग है
अंग्रेजी और अंग्रेजियत देख कर न्याय दंग है,
न्याय पर आज भी अन्यायी मजबूत दबंग है।

हर साल मनाते हम हैं दिवस यह गणतंत्र है,
कानूनी साम्राज्य के कब्जे में अर्थ तंत्र है
राम के ‘राम राज्य’ में अनुशासन ही मूल मंत्र है,
शासन में अनुशासन हो, तभी तो गणतंत्र है।

दिन ये ऐतिहासिक, भव्य राष्ट्रीय पर्व है,
तभी तिरंगे के साथ गणतंत्र पर गर्व है।
एक समान अधिकार का भाव सर्व है,
मेरे देश का ‘गणतंत्र दिवस’ महापर्व है॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”