डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)
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मातृ दिवस स्पर्धा विशेष…………
माँ के आँचल में सिमटी
सारी सल्तनत,सुकून भरी जिंदगी,
मान अपनी सुरक्षा का सुदृढ़ कवच
न केवल एससास,वरन विश्वास
अपने वजूद का इस लोक में,
अपनी सबलता और स्वाभिमान को
ममता और वात्सल्य की शीतल छाँव में
कर सुरक्षित,निश्चिन्त निरापद,निर्भीक,
परम शान्ति की अनुभूति से निमज्जित
अनवरत अनमोल स्नेहामृत दुलारलेपित,
जननी के सीने से चिपके कोई
और कोई उसके आगोश में सोये हुए,
निष्पन्द,निच्छल,माँ से लिपटी सन्तानें
जैसे उन्हें नसीब हुए हैं
सारे सुख-ऐशो-आराम-ज़न्नतें,
माँ की गोद में खिले सुरभित कुसुम
अपनापन,सारी खुशी जिंदगी की।
कोई भी क्यों न हो इस दुनिया में,
जन्म ले जो,चाहे पशु खगवृन्द हो या मनुज
माँ का अनन्त अविरल निच्छल हृदय
ममत्व करुणोद्रेक से होता संबलित,
समवत् निज कलेज़े के टुकड़ों के लिए
निःस्वार्थ अहर्निश तन-मन-धन समर्पित,
होती असह्य उसे तनिक भी
क्लेशित या शोकाकुल सन्तान पीड़ा,
ढाल बनकर समुद्यत सतत्
रक्षणार्थ अपनी ज़ान से बेपरवाह,
लुटा सारी सल्तनत और खुशियाँ
अपनी कोख़ के लालों को कर समर्पित,
ममतामयी भावोद्रेक के स्नेहाश्रुसिंचित
कलेजे़ से सटाई माँ आत्मज को निरत,
निष्कलुष निराकार अकिञ्चन कामधेनु
मुक्तिदायक सानन्द सुन्दर माँ का आँचल।
कृतज्ञ सविनीत सादर नमन उस अम्ब को
जिसने ज़ना,कर परिपुष्ट पालित,
अपनी छाती के दूध से बिन संकुचित…
उऋणता है असम्भव माँ! तेरे मातृ ऋण सेll
परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥