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माँ याद तेरी जब आती है…

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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माँ क्या लिखूँ मैं तुम पर रब,
तुममें ही खुद को पाता हूँ
व्यक्तित्व तुम्हीं अस्तित्व सकल,
माँ ममतांचल सुख देता है।

माँ-माँ करता बीता जीवन,
विश्व प्रेम माँ दिल होता है
ईश्वर का दर्शन माँ आँचल,
घर ज़न्नत सुख पल होता है।

ममता समता महाशक्ति माँ,
करुणामय माँ तो होती है
सप्तसिन्धु पावन गंगा सम,
शीतल सुन्दर माँ होती है।

तुमसे अच्छा कौन है माँ जग,
यादें मधुर सुकूं दे जाती है
लोरी सुनने मचल रहा बचपन,
गुलज़ार हृदय माँ कर जाती है।

यदि माँ न होती सोच रहा मैं,
जन्म धरा क्या हो पाता है
अनुभूति अनोखी मनुज लोक,
कहॅं माँ ममतामृत मिलता है।

हो सच्ची दोस्त माँ जीवन,
मुस्कान अधर दे जाती है
तुम वाणी की प्रथम शिक्षिका,
ममतांचल दूध पिलाती है।

माँ याद तेरी जब आती है,
तेरी ममता मुझे सताती है।
स्नेहांचल छाया कल्पद्रुम,
सहलाती पूत सुलाती है।

मानसरोवर वात्सल्य भरी,
आजीवन क्लेशित रहती है
करुणार्द्र चित्त स्नेहाश्रु नयन,
वक्षस्थल दूध पिलाती है।

अभिलाष हृदय सन्तान सुखी,
कल्पित मन सुत प्रेममयी है
हर नब्ज समझ सुत मनोदशा,
हर वक्त पीठ सहलाती है।

जय माँ ममता वात्सल्य रूप,
बहु रूप रंग भुवि आती है
माँ बेटी बहना बहू विविध,
श्रंगार स्नेह बन जाती है।

गंगा सम पावन चित्त मधुर,
माँ जीवन परहित जीती है
वात्सल्य भाव परिवार सदा,
माता गृहिणी बन जाती है।

कर दमन नित्य दुःख अन्तस्थल,
सहनशीलता माँ होती है
त्याग शील गुण बन कर्म पथिक,
सन्तति ढाँढस बँधवाती है।

आलोक प्रीति प्रतिबिम्ब सकल,
विचलित सन्तति माँ होती है
जल सिन्धु तरंगें अन्तस्तल,
स्नेहांचल गीत सुनाती है।

माँ स्नेह सिन्धु शीतल शशि सम,
ममता समता वसुन्धरा है
समुदार शुद्ध नीलाभ विमल,
अरुणाभ भोर बन जाती है।

हे मातृशक्ति वात्सल्य मधुर,
माँ करुणार्द्र धरा होती है।
चाहत अनन्त सुख सन्तति निज,
द्रुम सरित घटा बन जाती है॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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