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मानवता का ‘रतन’ चला गया…

अजय जैन ‘विकल्प’
इंदौर(मध्यप्रदेश)
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इंसान चाहे तो क्या नहीं कर सकता और इसमें आपकी अमीरी कहीं आड़े नहीं आती है, यह सीख सादगी और नेतृत्व की अद्भुत मिसाल एवं आदर्श रतन टाटा ने इस संसार से विदा लेकर सबको दी है। नि:संदेह ऐसा जीवन बहुत कम लोग जी पाते हैं, जो भारत के इस असली रत्न ने बिताया। मानवता के प्रबल पक्षधर और एक बेहतरीन इंसान रतन टाटा के जाने पर आज कोई यह नहीं कह रहा कि एक ‘अमीर’ आदमी चला गया। हर कोई यह बात ही कह रहा है कि एक ‘अच्छा’ आदमी चला गया। इस बात में बड़ा गहरा अर्थ और जीवन का अंतिम सत्य छिपा हुआ है। सबसे बड़ी बात यह है, कि जब आप अमीर होते हैं तो ऐसा मान यानी उपलब्धि हासिल करना बेहद दुर्लभ बात है।
दरअसल, ‘भारत रत्न’ (देश का हीरा) श्री टाटा भारत के ऐसे असली रतन बने, जिन्होंने अपने नाम को पूरा सार्थक किया। बाजारी चमक से दूर इस इंसान से हर व्यक्ति को सिर्फ़ एक चीज़ स्वीकारनी चाहिए कि “एक अच्छा इंसान बनना सीखें।”

१९३७ में मुम्बई में जन्मे रतन टाटा का पूरा जीवन ऐसा ईमानदार, मानवीयता एवं उसूलों वाला रहा कि यह हमेशा यादों में जिंदा रहेंगे।
‘पद्म विभूषण’ और पद्म भूषण से अलंकृत भारत के ‘रतन’ की मानवता और उच्च सोंच वाला एक वाकिया देखिए, जिससे उनका सुनहरा व्यक्तित्व झलकता है-मुम्बई के ताज होटल के हरे-भरे कैंपस में एक स्ट्रीट डॉग चैन की नींद सो रहा था। होटल के मेहमानों और कर्मचारियों के बीच उसकी मौजूदगी पर सवाल उठने लगे, लेकिन तभी एक ऐसा फैसला हुआ, जिसने सबको चौंका दिया। टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा ने साफ़ कह दिया कि इस कुत्ते को नहीं हटाया जाए। उन्होंने निर्देश दिए कि इसकी देख-रेख की जाए, कोई दुर्व्यवहार न हो। एक साधारण से गली के श्वान के प्रति आपकी यह संवेदनशीलता दिखाती है कि सच्चे नेतृत्वकर्ता बनने के लिए सिर्फ दौलत या प्रतिष्ठा नहीं, बल्कि बड़ा दिल चाहिए। रतन टाटा ने इस छोटे-से प्राणी में भी वही गरिमा देखी, जो इंसानों में होती है।
यह कहानी उन अनेक लोगों के लिए एक नसीहत है, जो इंसान एवं पशुओं से भी नफरत करते हैं। रतन टाटा ने पूरी दुनिया को सिखाया कि नेतृत्वशीलता केवल ऊँचाइयों में नहीं, बल्कि दयालुता और करुणा में भी होती है।
जानकर आश्चर्य होता है कि ८६ की उम्र में भी रतन टाटा देश के लिए जीए, देश के रहे और आम मध्यमवर्गीय इंसान की तरह सोंचा। यही कारण रहा कि निम्न और मध्यमवर्गीय व्यक्ति के लिए सस्ती व छोटी कार बनाई। इस बात से अमीरी-गरीबी के बारे में उनकी धारणा और विचार का पता लगता है।
कहना गलत नहीं होगा कि रतन टाटा एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व, एक ऐसा नाम है, जो भारतीय उद्योग जगत में न केवल अपनी सफलता के लिए जाना जाता है, बल्कि नैतिक मूल्यों, दूरदर्शिता और समाज के प्रति जिम्मेदारी के लिए भी सम्मानित हुए। व्यापार से अधिक आपकी असली पहचान विनम्र स्वभाव, समाजसेवा और उद्योग में योगदान से आज भी है।
प्रारंभिक जीवन में माता-पिता के अलगाव के कारण चुनौतियों से सीखने वाले रतन टाटा के पास पढ़ाई के बाद तकनीकी कौशल और प्रबंधन की गहरी समझ थी, जो जीवन पर्यन्त उनके नेतृत्व में काम आई।
१९९१ में रतन टाटा ने टाटा समूह की बागडोर संभाली और कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं। टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी प्रमुख कंपनियों को न सिर्फ और सशक्त किया, बल्कि वैश्विक नेतृत्व भी किया।
अमीर होने पर भी समाजसेवा और नैतिकता आपकी हर साँस में घुली रही एवं हर व्यवसाय को हमेशा नैतिकता के साथ जोड़ा। इसका प्रमाण समूह के मुनाफे का एक बड़ा हिस्सा समाजसेवा में खर्च किया जाना है। आपने समाज का होकर खुद को एक व्यापारिक नेतृत्वकर्ता से ज्यादा समाजसेवी माना। इसी कदम पर आपने शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण काम किए। उनकी दृष्टि हमेशा नवाचार और उद्यमिता पर रही। नए क्षेत्रों में भी नवाचार करने का सबूत ‘टाटा नैनो’ है, जो दुनिया की सबसे सस्ती कार मानी जाती है। इसका उद्देश्य था कि हर भारतीय परिवार के पास एक कार हो।
अपने निजी जीवन में बेहद सरल और विनम्र व्यक्ति रहे श्री टाटा की कभी भी भव्य जीवन-शैली या अनावश्यक दिखावे में दिलचस्पी नहीं रही। पशु प्रेमी श्री टाटा ने स्वयं को एक साधारण व्यक्ति मानते हुए हमेशा अपने निजी जीवन को सार्वजनिक जीवन से अलग रखा। यही कारण है कि उनके द्वारा स्थापित नैतिक मूल्यों और नेतृत्व के तरीकों ने उन्हें एक आदर्श व्यक्ति बनाया। उन्होंने यह साबित किया कि व्यवसाय में सफलता केवल मुनाफे से नहीं, बल्कि ईमानदारी और समाज को बेहतर बनाने से मापी जाती है।
वास्तव में रतन टाटा का जीवन एक प्रेरणा है। इससे सीखना चाहिए कि कैसे एक व्यक्ति अपने मूल्यों के प्रति ईमानदार रहकर न केवल व्यापार में सफल हो सकता है, बल्कि समाज को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है। उनकी दूरदर्शिता, नेतृत्व कौशल और समाजसेवा के प्रति उनकी इसी प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय उद्योग जगत के उच्च शिखर पर आसीन किया है। वाकई, आप हमेशा असली ‘रतन’ के रूप में हर मन में आलोकित होकर चमकते रहेंगे।