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कोरोना:जीतने के भाव से एकजुट होकर लड़ना होगा

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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कोरोना से जारी देशव्यापी महायुद्ध में जहां समाज इंसानियत और परस्पर मदद की कई मिसालें पेश कर रहा है,वहीं कोरोना युद्ध में जुटी मशीनरी और कोरोना योद्धाओं के बीच ही कर्कश मतभेद इस लड़ाई को न सिर्फ कमजोर कर रहे हैं,बल्कि पहले ही दहशत में जी रहे आम आदमी की हिम्मत भी तोड़ रहे हैं। कोरोना की दूसरी लहर के चरम पर आने के पहले ही तीसरी संभावित लहर आने की खबर ने और चिंताएं बढ़ा दी हैं। कोरोना से लड़ाई में शीर्ष अदालतें आए-दिन सरकार की खिंचाई कर रही हैं। बावजूद इसके उच्चतम न्यायालय का यह सवाल-अगर तीसरी कोरोना लहर ने बच्चों को भी घेर लिया तो उससे निपटने की सरकार के पास क्या कार्ययोजना है ?,इसका कोई ठोस जवाब किसी के पास नहीं है और यही हमारी सबसे बड़ी चिंता का सबब है। इस बार तो मोदी सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने ही यह चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कोरोना संक्रमण फैला है,उसे देखते हुए तीसरी लहर आना तय है।

कोरोना की तीसरी कब लहर आएगी और वह कितनी विनाशकारी होगी,इसके बारे में अभी केवल अनुमान ही लगाए जा रहे हैं। भारत में इस लहर के आने को लेकर विशेषज्ञ अभी एकमत नहीं हैं,लेकिन आना तय माना जा रहा है। वैसे दूसरी लहर आने की चेतावनी भी भारतीय वैज्ञानिकों और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हमें दी थी,लेकिन राजनेताओं को चुनाव लड़ने,सत्ता की शतरंजी चालें चलने और आत्ममुग्धता से ही फुर्सत नहीं थी। हर मामले में वो खुद को ही सर्वज्ञ मानते हैं। वो हालात अभी भी बहुत बदले हैं,ऐसा नहीं लगता। फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि केन्द्र व राज्य सरकारें दूसरी की तरह तीसरी लहर के मामले में गाफिल नहीं रहेगी। कोरोना सिर पर सवार हो जाने के बाद प्राणवायु सिलेंडर,वेंटीलेटर और अस्पताल बनाने की नहीं सोचेगी। तीसरी लहर से मुकाबले के लिए अभी हमारे पास ठोस रणनीति बनाने का वक्त है। इस पर काम तुरंत से शुरू हो जाना चाहिए। एक निश्चित गाइड लाइन तैयार होनी चाहिए,जो सभी राज्यों को भी मंजूर हो। अभी भी पूर्ण तालाबंदी लगाने,प्राणवायु उत्पादन व आपूर्ति,पर्याप्त ऑक्सीजन युक्त बिस्तर उपलब्ध कराने तथा संभावित लहर के मद्देनजर पर्याप्त चिकित्सा अमला उपलब्ध कराने की तैयारी अभी से शुरू हो जानी चाहिए। केन्द्र सरकार ने कुछ कदम उठाए हैं,लेकिन कोरोना के सम्बन्धित किसी भी काम के मामले में राजनीति पर १ साल के लिए ताले डाल देने चाहिए,क्योंकि सत्ता की छीना-झपटी और एक-दूसरे को नीचा दिखाने से ज्यादा नागरिकों की जान कीमती है।

माना जा रहा है कि,कोरोना की पहली लहर बुजुर्गों पर भारी थी,तो दूसरी युवाओं पर भारी पड़ रही है। तीसरी अगर बच्चों पर भी बड़े पैमाने पर हमला करने वाली होगी,तो हम क्या करेंगे ?,यह प्रश्न भी रूह कंपाने वाला है। ऐसी स्थिति बनी तो निपटने के लिए हमारी तैयारी क्या है ? यह बात भी उठ रही है कि देश में अब १८ साल से कम उम्र के बच्चों का टीकाकरण शुरू कर ‍देना चाहिए,पर बच्चों के लिए कौन-सा टीका हो,वह कैसे उपलब्ध होगा,कहां से आएगा,इतने बड़े पैमाने पर कैसे बनेगा ? देश में छोटे बच्चों की संख्या भी करीब २५ करोड़ हैं। बच्चों की सुरक्षा इसलिए भी जरूरी है,क्योंकि वो देश का भविष्य हैं।

दुर्भाग्य यह है कि,देश में कोरोना संक्रमितों का आँकड़ा प्रतिदिन ५ लाख को छूने जा रहा है,लेकिन राजनेता राजनीति से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में उन्हें सत्ता सिंहासन पर बैठाने वाला बेबस आम आदमी क्या करे,किससे गुहार करे ?

एक और अवांछित स्थिति कोरोना योद्दाओं के बीच टकराव की बन रही है। इसे तुरंत रोका जाना चाहिए। दिल्ली एम्स के निदेशक ने एक अहम बयान देकर देश को चेताया कि,लोग कोरोना मामले में बिला वजह सीटी स्कैन न कराएं, क्योंकि इससे कैंसर का खतरा है। यह सही है कि कोविड-१९ के कारण फेफड़ों में संक्रमण के डर के चलते भारी तादाद में सीटी स्कैन कराए जा रहे हैं। निदेशक के बयान के दूसरे ही दिन इंडियन रेडियोलॉजिकल एंड इमेजिंग एसोसिएशन (इरिया) ने बयान जारी कर कहा कि सीटी स्कैन के बारे में निदेशक का बयान गलत है। एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि सीटी स्कैन से न केवल संक्रमण की गंभीरता का पता चल पाता है,बल्कि इससे आगे के लिए कोविड प्रबन्धन की प्रभावी योजना बनाने में भी काफी मदद मिलती है। इस तरह का अवैज्ञानिक और गैर-जिम्मेदाराना बयान देना लोगों के बीच भ्रम की स्थिति को और बढ़ाने का ही काम करेगा और इससे कोरोना के खिलाफ चल रही लड़ाई को भी नुकसान पहुंचेगा। हो सकता है कि इस विवाद के पीछे व्यावसायिक हित भी जुड़े हों,लेकिन एक आम आदमी के नाते हमारे लिए शीर्ष चिकित्सकों में ऐसे विवाद और ज्यादा भ्रम व भय पैदा करते हैं। कोई भी सार्व‍जनिक बयान देने के पहले क्या ये बड़े लोग आपस में बात नहीं कर सकते ? ऐसी ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति कोरोना से लड़ रहे मैदानी अमले में भी दिख रही है। मप्र के इंदौर जिले में प्रशासन की सख्‍ती के बाद २ वरिष्ठ चिकित्सकों ने नौकरी से ही इस्तीफा दे दिया। कुछ और जगहों पर भी प्रशासन और चिकित्सा अमले में टकराव हो रहा है। इसमें गलती किसी की भी हो,इतना तय है कि,महामारी का इलाज इनको ही करना है,अफसरों को नहीं। इससे व्यवस्था सुधरेगी या और रसातल को चली जाएगी ? इस पर सरकार को बहुत ही गंभीरता से सोचना चाहिए और ऐसी घटनाओं को सूझ-बूझ के साथ सुलझाना चाहिए,क्योंकि जब कोरोना की दूसरी लहर में योद्धाओं में ही फूट पड़ रही है तो तीसरी का मुकाबला हम क्या खाकर करेंगे ?

तमाम सरकारी दावों के बाद भी हकीकत यह है कि कोरोना युद्ध में ऊपर से नीचे तक अपेक्षित तालमेल कहीं नहीं हैं। कहीं राज्यों की मर्जी चल रही है तो कहीं केन्द्र अपने हिसाब से फैसले कर रहा है। राज्यों की राजधानियों में अपने हिसाब से योजना बन रही है,तो जिलों में कलेक्टर अपने‍ हिसाब से कोरोना की गाड़ी हांक रहे हैं। इसी के साथ अपने-अपने हिसाब से ‘आपदा में अवसर’ भी भुनाए जा रहे हैं। इसी दूसरी लहर में सबसे बड़ा खतरा कोरोना के गांवों में फैल जाने का है। इन सब बातों का अर्थ यह नहीं है कि कहीं कुछ हो ही नहीं रहा। युद्ध जारी है,लेकिन जिस संजीदगी और ठोस योजना के साथ होता‍ दिखना चाहिए,वैसा नजर नहीं आ रहा। पहली लहर के कमजोर होने को हमने अपनी ‘जीत’ मानकर पीठ भी थपथपा ली। गोया कोरोना भी कोई ‘राजनीतिक शत्रु’ था,जिसे हमने चित कर दिया,लेकिन कोरोना जैसे विषाणु ऐसी आत्ममुग्धता में नहीं जीते। कोरोना मनुष्य की हर घेराबंदी को तोड़ने पर आमादा है। हम उसकी एक काट खोजते हैं तो वह दूसरा रूप धर लेता है। जाहिर है कि,कोरोना से लड़ाई लंबी और अनथक है। इसे जीतने के भाव से और एकजुट होकर ही लड़ना होगा।

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