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मानव जीवन न व्यर्थ गंवाना साथी

शंकरलाल जांगिड़ ‘शंकर दादाजी’
रावतसर(राजस्थान) 
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मानव जीवन आज मिला है,
इसे न व्यर्थ गंवाना साथी।
जीवन दीप कर्म है बाती,
उजियारा बिखराना साथी॥

जीवन पाकर भूल न जाना,
करना प्यार सभी अपनों को
पूर्ण हमेशा करना तुमको,
सबके मन चाहे सपनों को।
महत्वपूर्ण है कर्म यही,
अपना धर्म निभाना साथी॥
जीवन दीप कर्म…

आयेंगी बाधायें कितनी,
लेकिन टूट नहीं तुम जाना
तोड़ मुश्किलों की जंजीरें,
जीवन पथ पर बढ़ते जाना।
बरसेंगे बहु तीर व्यंग्य के,
पर तुम मत घबराना साथी॥
जीवन दीप कर्म…

कभी किसी को ठेस न पहुंचे,
ऐसे कर्म कभी मत करना
होता हो अन्याय कहीं यदि,
पीछे पाँव कभी मत धरना।
करना है प्रतिकार तुम्हें तब,
भूल कहीं मत जाना साथी॥
जीवन दीप कर्म…

सरल हृदय बनकर है रहना,
सच्चाई के साथ विचरना
निर्बल का तुम साथ निभाकर,
परहित सारा जीवन करना।
जीवन का उद्देश्य पूर्ण कर,
परम धाम पथ पाना साथी॥
जीवन दीप कर्म…

भवसागर में जीवन नैया,
वो ही पालनहार खिवैया
जाना पार बहुत ही मुश्किल,
याद करो बस नाग नथैया।
जीवन क्या है ?आना-जाना,
बस इतना समझाना साथी॥
जीवन दीप कर्म…

मानव जीवन आज मिला है,
इसे न व्यर्थ गंवाना साथी।
जीवन दीप कर्म है बाती,
उजियारा बिखराना साथी॥

परिचय-शंकरलाल जांगिड़ का लेखन क्षेत्र में उपनाम-शंकर दादाजी है। आपकी जन्मतिथि-२६ फरवरी १९४३ एवं जन्म स्थान-फतेहपुर शेखावटी (सीकर,राजस्थान) है। वर्तमान में रावतसर (जिला हनुमानगढ़)में बसेरा है,जो स्थाई पता है। आपकी शिक्षा सिद्धांत सरोज,सिद्धांत रत्न,संस्कृत प्रवेशिका(जिसमें १० वीं का पाठ्यक्रम था)है। शंकर दादाजी की २ किताबों में १०-१५ रचनाएँ छपी हैं। इनका कार्यक्षेत्र कलकत्ता में नौकरी थी,अब सेवानिवृत्त हैं। श्री जांगिड़ की लेखन विधा कविता, गीत, ग़ज़ल,छंद,दोहे आदि है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-लेखन का शौक है

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