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मालदीवःभारत के लिए गहन चिंता

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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भारतीयों को यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि हमारे पड़ौसी देश मालदीव में आजकल एक जबर्दस्त अभियान चल रहा है,जिसका नाम है- ‘भारत भगाओ अभियान!’ भारत-विरोधी अभियान कभी-कभी नेपाल और श्रीलंका में भी चलते रहे हैं लेकिन इस तरह के जहरीले अभियान की बात किसी पड़ौसी देश में पहली बार सुनने में आई है। इसका कारण क्या है,यह जानने के लिए मालदीव की अंदरुनी राजनीति को ज़रा खंगालना होगा। यह अभियान चला रहे हैं पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन, जो लगभग डेढ़ माह पहले ही जेल से छूटे हैं। उन्हें रिश्वतखोरी और सरकारी लूट-पाट के अपराध में सजा हुई थी। उन्होंने सत्तारुढ़ मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के खिलाफ जन-अभियान छेड़ दिया है। यह अभियान इसलिए भारत-विरोधी बन गया है कि ‘माडेपा’ के २ नेताओं राष्ट्रपति मोहम्मद सालेह और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद को कट्टर भारत-समर्थक माना जाता है। यामीन को अपना गुस्सा नशीद और सालेह पर उतारना है तो उन्हें भारत को ही मालदीव का दुश्मन घोषित करना जरुरी है। यामीन का यह अभियान इतनी रफ्तार पकड़ता जा रहा है कि सत्तारुढ़ ‘माडेपा’ अब संसद से ऐसा कानून पारित करवाना चाह रही है,जिसके तहत उन लोगों को ६ माह की जेल और २० हजार रु. जुर्माना भरना पड़ेगा,जो मालदीव पर यह आरोप लगाएंगे कि वह किसी विदेशी राष्ट्र के नियंत्रण में चला गया है। इसे वह राष्ट्रीय अपमान कहकर संबोधित कर रहे हैं। यह कानून आसानी से पारित हो सकता है,क्योंकि संसद में सत्तारुढ़ दल के पास प्रचंड बहुमत है। यामीन की प्रोग्रेसिव पार्टी में कोई दम नहीं है कि वह सत्तारुढ़ पार्टी को संसद में नीचा दिखा सके,लेकिन मालदीव की जनता में उसकी लोकप्रियता बढ़ती चली जा रही है। उसका पहला कारण तो यही है कि सत्तारुढ़ ‘माडेपा’ में अंदरुनी खींचतान चरमोत्कर्ष पर है। राष्ट्रपति सालेह और संसद-अध्यक्ष नशीद में चिक-चिक की खबरें रोज़ जनता को हैरत में डाल रही हैं। नशीद वास्तव में खुद जनाधारवाले नेता हैं। वे संविधान में परिवर्तन करके अपने लिए प्रधानमंत्री का पद पैदा करना चाहते हैं। सालेह और नशीद के मतभेद अन्य कई मुद्दों पर भी खुले-आम सबके सामने आ रहे हैं। इसका कुप्रभाव प्रशासन पर हो रहा है। सरकार पर से जनता का विश्वास घटता जा रहा है। दूसरा, मंहगाई और कोरोना बीमारी ने मालदीव की अर्थ-व्यवस्था को लगभग चौपट कर दिया है। तीसरा, यद्यपि भारत पूरी मदद कर रहा है,लेकिन यामीन-राज में चीन ने जिस तरह से अपनी तिजोरियां खोलकर मालदीवी नेताओं की जेबें भर दी थीं और उन्हें अपनी जेब में डाल लिया था,वैसा नहीं होने के कारण वर्तमान नेतृत्व काफी सांसत में है। चौथा, सालेह-नशीद सरकार पर उसके विरोधी यह आरोप भी जड़ रहे हैं कि उसने भारत से सामरिक सहयोग करने के बहाने मालदीव की संप्रभुता को भारत के हाथ गिरवी रख दिया है। मालदीव में सक्रिय भारतीय नागरिकों को आजकल कई नई मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। भारतीय राजदूतावास पर हमले की आशंकाएं भी बढ़ गई हैं। यह असंभव नहीं कि मालदीव में तख्ता-पलट की कोई फौजी कारवाई भी हो जाए। भारत के लिए यह गहन चिंता का विषय है।

परिचय– डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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