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हम वीरों की धरती

शशि दीपक कपूर
मुंबई (महाराष्ट्र)
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“ऐ! रावी ले लो!“
“नहीं, रे! नहीं“
“ऐ! व्यास ले लो!“
“नहीं, रे! नहीं“
“नदियाँ पाकिस्तान को अंग्रेज़ों ने ज़बरन दीं, वापिस लो!”
“हिन्दुस्तान की मिट्टी की क़सम,हम शहीद सैनिक हैं,अपने वतन का ज़र्रा-ज़र्रा खींच ले आएँगे वापिस।”
“सही कहा तुमने,अपने देश के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं,बशर्ते सरकारें ठीक से चलें तभी तो…।“
“हाँ,यह सोचने की बात थी,जब हम ज़िंदा थे। अब तो शहीद हैं…,पुरस्कार और पद्म विभूषणों से विभूषित हैं,जय जवान हैं,हमारे नाम से कई राष्ट्रीय स्मारक हैं…हाँ,हाँ,ओह! मैं तो भूल गया,हम अब भी ज़िंदा हैं! ओम् शांति के पाठ के साथ।”
“हमारे बच्चों पर जो आँच आई है,हम ही उन्हें बचा सकते हैं,बेचारे मजबूरी में तिल-तिल कर जी रहे हैं। राजनीति तो गीदड़ भभकियां ही दे सकती है और कुछ नहीं कर सकती है। बिना हाथ-पैर के चलती ये राजनीति केवल समय ही व्यतीत करती है, युद्ध तो हमने लड़े,जीवन हमने खपाया अपना,परिवार हमने खोया,चंद नोटों में हमारे समाज को तौल,सारे कर्म धो लेती है सरकारें। आए दिन मरते हैं हमारे साथी, उनकी सुरक्षा को कफ़न पहना देते हैं पुरस्कार व पद्म विभूषण,और चंद घिसी-पिटी सुविधाएँ…क्या इसके लिए हम राष्ट्र के जवान बहादुर सिपाही कहलाते हैं…नहीं,नहीं,क़तई नहीं…।“
“चलो फिर देर क्यूँ करते हो,चलो सरहद पर मारो दुश्मनों को और जीत लो अपना खोया वर्चस्व।“
और दोनों भिड़ने लगते हैं शत्रुओं से!
गान के पूरे जोश से,पल में ही धरा कम्पन करने लगी।
“ऐ! रावी ले लो!“
“नहीं,रे! नहीं“
“ऐ! व्यास ले लो!“
“नहीं,रे! नहीं“
“पूरा पाकिस्तान ले लो,पूरा जहान ले लो!“
“हम वीरों की धरती है,कण-कण में फैले हमारे रक्त की फुँकार ले लो!”
सच में,आज की परिस्थितियां देखकर लगता है सरकार सत्ता में बैठ मीठे बोल बोलेगी। आए दिन किसी न किसी का घर उजड़ता रहेगा। सरकार प्रतीक्षा करेगी! अंग्रेज़ों की अनुमति की और आधुनिक हथियारों के जंग लगने तक नए हथियार ख़रीदने तक की परम्परा का निर्वाह करेगी। समय धीरे-धीरे विभिन्न समुदायों को भीतर ही भीतर से बलिष्ठ कर देगा। और पुराने समय में खदेड़ कर हासिल की गई भूमि,स्वेच्छा से दी गई भूमि,अंग्रेज़ों द्वारा दी गई विभाजित भूमि और अपने ही देश में जोंक की भाँति भीतरी तैयार हो रही भूमि…किंतु जब भूमि से ज्वाला फट अकस्मात निकल आएगी, तब सब सरकारें किसी न किसी शक्तिशाली की ग़ुलाम हो जाएगी,दास प्रथा का नया शुभारंभ होगा, मगर बुद्धिजीवियों को बुद्धि तब भी न भाएगी।
आवाज फिर भावी देश निर्माण सोच गान करने लगी-
ऐ! रावी ले लो!“
“नहीं,रे! नहीं“
“ऐ! व्यास ले लो!“
“नहीं,रे! नहीं“
“पूरा पाकिस्तान ले लो,पूरा जहान ले लो!“
“हम वीरों की धरती है,कण-कण में फैले हमारे रक्त की फुँकार ले लो!”
हम ही हैं ऋषि-मुनि,
आए हैं धरा पर रूप बदल के,
पिछलग्गू,मियाँ मिठ्ठू मत बनो,
समय की धार-तार देखो
“ऐ! रावी ले लो!“
“नहीं,रे! नहीं“
“ऐ! व्यास ले लो!“
“नहीं,रे! नहीं“
“पूरा पाकिस्तान ले लो,पूरा जहान ले लो!“
मैं घबरा कर उठा और अपनी क़लम से अलख जगाने लगा…।

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