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मीठी यादें

ज्ञानवती सक्सैना ‘ज्ञान’
जयपुर (राजस्थान)

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‘पिता का प्रेम, पसीना और हम’ स्पर्धा विशेष…..

पापा मुझे आपकी बहुत याद आती है,
नसीहत-सी बातें बहुत याद आती हैं
वह मीठी-मीठी यादें,कितना भाती हैं,
यादों में आकर यादें,कभी बहुत रूलातीं हैं।

हजारों उलझनों की इकलौती चाबी आप,
हर आँधी-तूफां में महफूज रखते आप
हर मुश्किल घड़ी में ढाल बन जाते आप,
दे हिदायतें जीना सिखाते आप।

साया-सा साथ,रख हिम्मत की बात,
सोते-जगते सारे घर की चिंता करते आप
जमाने के थपेड़े सह-सह कर भी तो,
सुकून देते हमें,बन हर दर्द का मल्हम आप।

खुद धूप में तपते,बचाते धूप से,
सुख-साधन जुटाते खूब से
उंगली पकड़कर बल्ली उछलना,
पापा है मेरे,कहकर फुदकना।

करते ही रहते हम तो शैतानी,
करने नहीं देते कभी वो मनमानी
इधर नहीं आना,उधर नहीं जाना
ऐसा न करना,ऐसा न बोलो

नज़रों में घुड़की,करते रोशन राहें,
हमारी खुशियों की ख़ातिर
करते न्योछावर सब-कुछ,
दिन-रात एक करते,चुपचाप सहते बहुत कुछ।

जिद पूरी करना,मन मेरा रखना,
ठोकर का लगना और झप्पी का देना
वो ख्वाबों की लड़ियाँ,दुआओं की झड़ियाँ,
अंधेरी-सी गलियाँ,रोशन-सा साया।

मन को भींचा,घर को सींचा,
हमें शिखर पर पहुंचा, सब कुछ उलीजा
साथ बीता हर लम्हा,हर पल,
ज्यों-का-त्यों याद आता है पापा।

मेरा उलझना,आपका बिखरना,
मम्मी का आना,सब कुछ सुलटना।
नसीहत-सी बातें बहुत याद आती हैं,
यादों में आकर,यादें बहुत रूलातीं हैं॥

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