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मृग-तृष्णा

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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रेगिस्तान में तप्ती रेत
की ऊष्म हवाएँ,
बह रही मृग-तृष्णा की भांति
जीवन-पथ के उस ओर,
जहां मृग तृप्त हो जाती
प्यास बुझा के।

बियाबान‌ मरूभूमि के
ऊहां‌-टोंह में ऊँट की,
सवारी ही एक है
एक आदमी के अस्तित्व के,
रखरखाव में समृद्ध सफल
संकट स्पर्धा से सन्निधि,
संगोष्ठी बना के।

जलांकण की अवशेष
छित्त‌-वित्त‌ होती,
सुगम‌ हमराही के संस्मरण
कथित कथा के परिवेश में,
आत्म सम्मान से
प्रेरणा स्रोत प्रतीक चिन्ह,
संग अभिव्यक्त सृजन
समृद्ध जगा के।

आंतिक‌ कालांतर से समाविष्ट होती,
जीवन की सभी कलाकृतियाँ
कलाकार की,
संयोजित‌ प्रतिभा की
कसौटी पर सीधी सचेष्ठता,
की परियोजना से कार्य
संपादित हो
एकलव्य लक्ष्य की ओर।
साधना को,
योगांत्रिक करके॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।

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