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फिर चमन है मुस्कुराया

कवि योगेन्द्र पांडेय
देवरिया (उत्तरप्रदेश)
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गीत भौंरा गुनगुनाया,
साथ में बसन्त आया
हो गए हैं दिन बहुत,
पिय की मिलती न सुध
चित पे क्यों दुःख है छाया,
फिर चमन है मुस्कुराया…।

बादलों की ओट से,
बिजलियों की चोट से
दर्द को सहता हुआ,
आह को भरता हुआ
देख मौसम खिलखिलाया,
फिर चमन है मुस्कुराया…।

प्रात: की किरणें सुनहरी,
शांत बैठी है दोपहरी
लालिमा छाई छितिज पर,
खिल उठा है पंछी का घर
अब निशा का वक्त आया,
फिर चमन है मुस्कुराया…।

रात्रि का घनघोर पहरा,
है कहाँ पे सूर्य ठहरा
ढूंढता है जिसको जीवन,
है छुपा किस ओर ये मन
जुगनुओं ने रास्ता दिखाया,
फिर चमन है मुस्कुराया…।

शांत क्यों है आज रजनी,
ढूंढती किसको है अवनी
कौन है जो आ रहा है,
गीत सुंदर गा रहा है।
सुख अपने साथ लाया,
फिर चमन है मुस्कुराया…॥

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