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मैं स्त्री हूँ,पुरुष नहीं बनना

डॉ.शैल चन्द्रा
धमतरी(छत्तीसगढ़)
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मैं स्त्री हूँ
नदी की तरह बहती हूँ,
मुझे सागर नहीं बनना।

मैं महीन रेत की कण,
जो करती नीड़ का निर्माण
मुझे चट्टान नहीं बनना।

मैं हरी-भरी सुन्दर धरती,
जो पालती पूरा विश्व
मुझे शून्य आसमान नहीं बनना।

मैं हूँ सीता,द्रोपदी,अहिल्या
जिनका किया तिरस्कार,
ऐसे राम,पांडव,गौतम…
मुझे नहीं बनना।

मैं वात्सल्य की कलश माँ हूँ,
छलकाती हूँ स्नेह अमृत
मुझे पर्वत-सा कठोर,
पिता नहीं बनना।

मैं स्त्री हूँ,
मैं स्त्री ही रहना चाहती हूँ..
मुझे पुरुष नहीं बनना॥

परिचय-डॉ.शैल चन्द्रा का जन्म १९६६ में ९ अक्टूम्बर को हुआ है। आपका निवास रावण भाठा नगरी(जिला-धमतरी, छतीसगढ़)में है। शिक्षा-एम.ए.,बी.एड., एम.फिल. एवं पी-एच.डी.(हिंदी) है।बड़ी उपलब्धि अब तक ५ किताबें प्रकाशित होना है। विभिन्न कहानी-काव्य संग्रह सहित राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में डॉ.चंद्रा की लघुकथा,कहानी व कविता का निरंतर प्रकाशन हुआ है। सम्मान एवं पुरस्कार में आपको लघु कथा संग्रह ‘विडम्बना’ तथा ‘घर और घोंसला’ के लिए कादम्बरी सम्मान मिला है तो राष्ट्रीय स्तर की लघुकथा प्रतियोगिता में सर्व प्रथम पुरस्कार भी प्राप्त किया है।सम्प्रति से आप प्राचार्य (शासकीय शाला,जिला धमतरी) पद पर कार्यरत हैं।

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