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यह दुनिया रंग-रंगीली

संजय गुप्ता  ‘देवेश’ 
उदयपुर(राजस्थान)

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यह दुनिया रंग-बिरंगी है,
यह दुनिया तो सतरंगी है
भांति-भांति के रंग बिखरे,
यह दुनिया रंग-रंगीली है।

रंग हार का रंग जीत का,
रंग विरह का रंग प्रीत का
नित-नित नये-नये रंग हैं,
कभी अकेले कभी संग हैं।
कब रंग दे कब बेरंग कर दे,
यह दुनिया छैल-छबीली है।
यह दुनिया रंग-रंगीली है…॥

इसके रंग में जो रंग जाये,
उसको ही ये दुनिया भाये
दुनिया देती रंग जीवन में,
सपने रंगीले हरेक मन में।
कब किसका रंग उड़ जाये,
ये चंचल माया फुर्तीली है।
यह दुनिया रंग-रंगीली है…॥

कोई भक्ति रंग जोड़ गया,
कोई मुक्ति रंग छोड़ गया
सभी करें रंगों का लालच,
काले स्याह रंगों के याचक।
अच्छे-बुरे रंगों का है घेरा,
यह रंग-बिरंगी नशीली है।
यह दुनिया रंग-रंगीली है…॥

यह दुनिया तो फिरंगी है,
यह दुनिया रंग-बिरंगी है॥

परिचय–संजय गुप्ता साहित्यिक दुनिया में उपनाम ‘देवेश’ से जाने जाते हैं। जन्म तारीख ३० जनवरी १९६३ और जन्म स्थान-उदयपुर(राजस्थान)है। वर्तमान में उदयपुर में ही स्थाई निवास है। अभियांत्रिकी में स्नातक श्री गुप्ता का कार्यक्षेत्र ताँबा संस्थान रहा (सेवानिवृत्त)है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप समाज के कार्यों में हिस्सा लेने के साथ ही गैर शासकीय संगठन से भी जुड़े हैं। लेखन विधा-कविता,मुक्तक एवं कहानी है। देवेश की रचनाओं का प्रकाशन संस्थान की पत्रिका में हुआ है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-जिंदगी के ५५ सालों के अनुभवों को लेखन के माध्यम से हिंदी भाषा में बौद्धिक लोगों हेतु प्रस्तुत करना है। आपके लिए प्रेरणा पुंज-तुलसीदास,कालिदास,प्रेमचंद और गुलजार हैं। समसामयिक विषयों पर कविता से विश्लेषण में आपकी विशेषज्ञता है। ऐसे ही भाषा ज्ञानहिंदी तथा आंगल का है। इनकी रुचि-पठन एवं लेखन में है।

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