कुल पृष्ठ दर्शन : 576

You are currently viewing राम राज जन-जन का कर्तव्य

राम राज जन-जन का कर्तव्य

डॉ. आशा गुप्ता ‘श्रेया’
जमशेदपुर (झारखण्ड)
*******************************************

राम-राज…

‘सत्य रूप अमर हर कण में बसे प्रभु राम,
आओ हम सब राम से,
सीखें, कैसे होये काम।’
राम-राज की कल्पना ही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, देवी सीता, लक्ष्मण जी, हनुमान जी की अनुपम छवि को हृदय में जागृत करती है, जो सदियों से हमारी पावन भूमि पर एक आदर्श के रूप में विराजमान है। रामायण, रामचरित मानस में वर्णित राम राज को हमारे भारत देश में, इस विश्व में और इस युग में एक सुंदर उत्कृष्ट स्वप्न ही कहा जा सकता है। फिर भी हम रामराज की कल्पना के साथ हमारे देश में इसकी शुरुआत के लिए विश्वास एवं दृढ़ता से प्रयास तो अवश्य कर सकते हैं, क्योंकि हमारी मातृभूमि पर राम राज रहा और आगे भी संभव है।
जब हम इन ग्रंथों का मनन-चिंतन करते हैं, तो यह सबको समझ आता है कि, त्रेता युग में पुरूषोत्तम राजा राम के‌ राज की विशेषता सत्य, त्याग, दया, संयम, सहिष्णुता, नम्रता, प्रेम, स्नेह, समानता और दूरदर्शिता आदि सद्गुणों संग वीरता, सद्भावना और सौहार्द रहा। ‌उस काल में भी नकारात्मक शक्तियाँ रहीं और घटनाएं हुईं, जिनका निवारण प्रेम, संयम, संकल्प, त्याग, विवेक, साहस और शक्ति से ही किया गया। राम राज की स्थापना प्रभु राम के विवेकमय निर्णय संग राम और सीता माता के प्रेम, त्याग , तप‌, विश्वास, परिवार, मंत्री गण, सहयोगी एवं जनता आदि सबकी किसी ना किसी रूप में समर्पित सहयोग से ही रही। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ हमारी विशेष मान्यता है। आवश्यक होने पर हम सब अपनी रक्षा अवश्य करेगें, और विश्व के उत्तम विचारों का आदर-सम्मान करते रहेंगें। ऐसे अनेक सुंदर सिद्धांत हमारी जड़ों में हैं।
समय परिवर्तनशील रहता है। वर्तमान कलयुग में भौतिकता सर्वोपरि है, जिसके लिए छल, प्रपंच, क्रूरता, अपशब्द, विवाद, अतिस्वार्थ भरे कार्यों आदि को ही लोग जीवन के सुख का साधन और उपाय समझते हैं। दूर-दूर तक नकारात्मकता फैली हुई हैं। क्षणिक सुख की कामना या अहंकार आदि हिंसा और दुष्कर्म को जनम देता है। इस कारण नहीं चाहते हुए भी सामाजिक संतुलन डगमगाता रहता है, पर यह भी सत्य है कि, भारत में, विश्व में सत्यता, सहजता, त्याग, स्नेह, सौहार्द, कर्मशीलता, साहस, उच्च बुद्धि विचार आदि भी अनेक रूपों में स्थित है, और यही विशेषताएं एवं विश्वास है, जिसकी विश्व में शांति की पहल के लिए अति आवश्यकता है। कहा जाए तो जो‌ अनेक विकृतियाँ पनप रहीं हैं, उन विचारों को विश्व में रोग जैसे फैलने से रोकना है। तो क्या यह १ दिन, १ वर्ष या कुछ वर्षों में संभव है ! कदापि नहीं…। यह किसी एक व्यक्ति विशेष का कर्तव्य भी नहीं है, बल्कि सभी नागरिकों का है। हमारे देश की संस्कृति उत्कृष्ट है। विश्व में भारत का नाम आदर से लिया जाता है। लोग समझने लगे हैं कि, विश्व में शांति-प्रगति के लिए भारतीय साहित्य संस्कृति-परम्परा एक उत्तम उदाहरण है। और इस आधुनिक प्रगति के काल में हम भारतीय पीछे नहीं हैं। हमारी अपनी विशेषताएं हैं।हमारे पास वो सब कुछ संभव है, जो अनेक देश चाहते या करते हैं। हम देशवासियों का कर्तव्य है कि, हम केवल राम- राज की बातें ही ना करें, बल्कि प्रगतिशीलता के साथ आपस में स्नेह, सौहार्द, सत्यता, सात्विकता, सहिष्णुता, एकता संग परस्पर आदर को बनाएं रखें। कुमतियों को हटाएं, कुरीतियों , कुप्रथाओं को त्यागें और सुंदर संस्कृतियों को संवारें, घर-घर शिक्षा को बढ़ाएं, हम कर्मशील बनें, जन-जन में जागरूकता का संचार हो। हम मंथन करें तथा सही नायकों के विचारों को समझें और सहयोग दें। हम भारत के भविष्य यानी युवा पीढ़ी में सुंदर भावों को जागरूक करें। हम विश्व में उदाहरण बनें। राम राज की स्थापना के लिए यह पहला पग होगा, यही हमारी नींव होगी । तुलसीदास जी कहते हैं ‘जहां सुमति, तहां संपति नाना। जहां कुमति तहॅं विपत्ति निदाना।’ अर्थात जहां सुमति है, वहाँ तरह-तरह के सुख-समृद्धि शांति है। जहाँ कुमति है, वहाँ विपत्तियों का पहाड़ बना रहता है, जिसका निवारण संभव नहीं होता है।

संपति का वास्तविक अर्थ है-प्रेम, स्नेह, धन, पैसा, उत्तम स्वास्थ्य, सुविचार, शिक्षा संग प्रगति की ओर बढ़ते कदम। ऐसे लगातार प्रयासों से ही सही अर्थों में राम राज को लाया जा सकता है। राम राज में सुमति और शुभता सबके लिए हो, यही उद्देश्य रहे। तो आइए इस हम सब मिलकर प्रभु राम का स्वागत करें, संकल्प करें और हृदय से प्रार्थना करें कि, वे तिमिर को हरें, हमारा मार्ग आलोकित करें।

परिचय- डॉ.आशा गुप्ता का लेखन में उपनाम-श्रेया है। आपकी जन्म तिथि २४ जून तथा जन्म स्थान-अहमदनगर (महाराष्ट्र)है। पितृ स्थान वाशिंदा-वाराणसी(उत्तर प्रदेश) है। वर्तमान में आप जमशेदपुर (झारखण्ड) में निवासरत हैं। डॉ.आशा की शिक्षा-एमबीबीएस,डीजीओ सहित डी फैमिली मेडिसिन एवं एफआईपीएस है। सम्प्रति से आप स्त्री रोग विशेषज्ञ होकर जमशेदपुर के अस्पताल में कार्यरत हैं। चिकित्सकीय पेशे के जरिए सामाजिक सेवा तो लेखनी द्वारा साहित्यिक सेवा में सक्रिय हैं। आप हिंदी,अंग्रेजी व भोजपुरी में भी काव्य,लघुकथा,स्वास्थ्य संबंधी लेख,संस्मरण लिखती हैं तो कथक नृत्य के अलावा संगीत में भी रुचि है। हिंदी,भोजपुरी और अंग्रेजी भाषा की अनुभवी डॉ.गुप्ता का काव्य संकलन-‘आशा की किरण’ और ‘आशा का आकाश’ प्रकाशित हो चुका है। ऐसे ही विभिन्न काव्य संकलनों और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में भी लेख-कविताओं का लगातार प्रकाशन हुआ है। आप भारत-अमेरिका में कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्बद्ध होकर पदाधिकारी तथा कई चिकित्सा संस्थानों की व्यावसायिक सदस्य भी हैं। ब्लॉग पर भी अपने भाव व्यक्त करने वाली श्रेया को प्रथम अप्रवासी सम्मलेन(मॉरीशस)में मॉरीशस के प्रधानमंत्री द्वारा सम्मान,भाषाई सौहार्द सम्मान (बर्मिंघम),साहित्य गौरव व हिंदी गौरव सम्मान(न्यूयार्क) सहित विद्योत्मा सम्मान(अ.भा. कवियित्री सम्मेलन)तथा ‘कविरत्न’ उपाधि (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ) प्रमुख रुप से प्राप्त हैं। मॉरीशस ब्रॉड कॉरपोरेशन द्वारा आपकी रचना का प्रसारण किया गया है। विभिन्न मंचों पर काव्य पाठ में भी आप सक्रिय हैं। लेखन के उद्देश्य पर आपका मानना है कि-मातृभाषा हिंदी हृदय में वास करती है,इसलिए लोगों से जुड़ने-समझने के लिए हिंदी उत्तम माध्यम है। बालपन से ही प्रसिद्ध कवि-कवियित्रियों- साहित्यकारों को देखने-सुनने का सौभाग्य मिला तो समझा कि शब्दों में बहुत ही शक्ति होती है। अपनी भावनाओं व सोच को शब्दों में पिरोकर आत्मिक सुख तो पाना है ही,पर हमारी मातृभाषा व संस्कृति से विदेशी भी आकर्षित होते हैं,इसलिए मातृभाषा की गरिमा देश-विदेश में सुगंध फैलाए,यह कामना भी है