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राम लला हम आ गए

संजय सिंह ‘चन्दन’
धनबाद (झारखंड )
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राम लला हम आएंगे, मन्दिर वहीं बनाएंगे, 
राम रथ घुमाएंगे, चाहे जेल भी जाएंगे
भारत के हर क्षेत्र में जाकर एक पूजित ईंट हम लाएंगे, 
जन्म भूमि के गर्भ गृह में मन्दिर नया बनाएंगे।

बजरंगी से सेवक बनकर कार सेवा में जाएंगे, 
लाठी-गोली खाएंगे, परिंदा वहीं उड़ाएंगे
कोरी कल्पना करने, कुचलने वाले देखते ही रह जाएंगे, 
हम राम भक्त की लाखों टोलियाँ दुनिया में फैलाएंगे। 

विश्व हिन्दू की परिकल्पना ले, हिंदू विश्व दिखाएंगे, 
याचना नहीं अब रण की मंशा घर-घर में जगाएंगे
मुगल काल के आक्रांताओं का नामों-निशां मिटाएंगे, 
नया सवेरा, नई ज्योति से भारत अखंड बनाएंगे।

सर्वोच्च न्यायालय से न्याय जीत यह, पुण्य भूमि हम पाएँ हैं, 
राम लला की खातिर भैया, कितने प्राण गंवाए हैं
जिस भगवन की महिमा से सब मानव जीवन पाए हैं,
पुरुषोत्तम श्री राम! स्वयं मानव हाथों से बंदी गृह ही पाए हैं।

देख दशा मानव-मानवता की अब राम लला मुस्काए हैं, 
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचंद्र जी अब कैद से बाहर आए हैं
राम लला हम आ रहे हैं, क्यों दर्शन को तरसा रहे हैं ?
अवध किले के भव्य मन्दिर- मंडप में दुनिया से सब आ रहे हैं।

राम लला के दिव्य दर्शन को दुनिया वाले बौरा रहे हैं, 
महिमा श्रीराम की जानकर, चरण पूजने भीड़ में सब मंडरा रहे हैं
चारों धाम से उपर बढ़कर श्री राम की महिमा गा रहे हैं, 
चलो अयोध्या धाम चलें, वैभवशाली युग में ‘श्री राम’ स्वयं पधार रहे हैं।

राम लला हम आ गए, मन्दिर खूब सजा गए, 
आसन पर बैठा गए, कृपा धन तेरा पा गए
प्राणी सद्भावना, धर्म की स्थापना, विश्व कल्याण सिखा गए, 
५०० वर्ष की लंबित खुशियाँ, इस पीढ़ी हमें तार गए॥

परिचय-सिंदरी (धनबाद, झारखंड) में १४ दिसम्बर १९६४ को जन्मे संजय सिंह का वर्तमान बसेरा सबलपुर (धनबाद) और स्थाई बक्सर (बिहार) में है। लेखन में ‘चन्दन’ नाम से पहचान रखने वाले संजय सिंह को भोजपुरी, संस्कृत, हिन्दी, खोरठा, बांग्ला, बनारसी सहित अंग्रेजी भाषा का भी ज्ञान है। इनकी शिक्षा-बीएससी, एमबीए (पावर प्रबंधन), डिप्लोमा (इलेक्ट्रिकल) व नेशनल अप्रेंटिसशिप (इंस्ट्रूमेंटेशन डिसिप्लिन) है। अवकाश प्राप्त (महाप्रबंधक) होकर आप सामाजिक कार्यकर्ता, रक्तदाता हैं तो साहित्यिक गतिविधि में भी सक्रियता से राष्ट्रीय संस्थापक-सामाजिक साहित्यिक जागरुकता मंच मुंबई (पंजी.), संस्थापक-संरक्षक-तानराज संगीत विद्यापीठ (नोएडा) एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता के.सी.एन. क्लब (मुंबई) सहित अन्य संस्थाओं से बतौर पदाधिकारी जुड़ें हैं, साथ ही पत्रकारिता का वर्षों का अनुभव है। आपकी लेखन विधा-गीत, कविता, कहानी, लघु कथा व लेख है। बहुत-सी रचनाएँ पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हैं, साथ ही रचनाएँ ४ साझा संग्रह में हैं। ‘स्वर संग्राम’ (५१ कविताएँ) पुस्तक भी प्रकाशित है। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार में आपको
महात्मा बुद्ध सम्मान-२०२३, शब्द श्री सम्मान-२०२३, पर्यावरण रक्षक सम्मान-२०२३, श्रेष्ठ कवि सम्मान-२० २३ सहित अन्य सम्मान हैं तो विशेष उपलब्धि-राष्ट्रीय कवि सम्मेलन में कई बार उपस्थिति, देश के नामचीन स्मृति शेष कवियों (मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र आदि) के जन्म स्थान जाकर उनकी पांडुलिपि अंश प्राप्त करना है। श्री सिंह की लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा का उत्थान, राष्ट्रीय विचारों को जगाना, हिन्दी भाषा, राष्ट्र भाषा के साथ वास्तविक राजभाषा का दर्जा पाए, गरीबों की वेदना, संवेदना और अन्याय व भ्रष्टाचार पर प्रहार है। मुंशी प्रेमचंद, अटल बिहारी वाजपेयी, जयशंकर प्रसाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर, किशन चंदर और पं. दीनदयाल उपाध्याय को पसंदीदा हिन्दी लेखक मानने वाले संजय सिंह ‘चंदन’ के लिए प्रेरणापुंज- पूज्य पिता जी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गॉंधी, भगत सिंह, लोकनायक जय प्रकाश, बाला साहेब ठाकरे और डॉ. हेडगेवार हैं। आपकी विशेषज्ञता-साहित्य (काव्य), मंच संचालन और वक्ता की है। जीवन लक्ष्य-ईमानदारी, राष्ट्र भक्ति, अन्याय पर हर स्तर से प्रहार है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार-“अपने ही देश में पराई है हिन्दी, अंग्रेजी से अंतिम लड़ाई है हिन्दी, अंग्रेजी ने तलवे दबाई है हिन्दी, मेरे ही दिल की अंगड़ाई है हिन्दी।”