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राष्ट्र धर्म चहुँ प्रगति में

डॉ.राम कुमार झा ‘निकुंज’
बेंगलुरु (कर्नाटक)

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मानवता सबसे बड़ा,सभी धर्म का मंत्र।
रहें प्रेम सद्भाव से,जनहित में हो तंत्र॥

रख विचार सद्भाव से,दें मनभाव विनीत।
वाणी हो वश संयमित,अरि मानस भी जीत॥

पुरुषोत्तम ज्ञानी निरत,दर्पण बने समाज।
परहित में तज जानकी,रामराज्य सरताज॥

महापुरुष की जिंदगी,दे जीवन संदेश ।
त्याग,शील,परहित गुणी,प्रीति नीति परिवेश॥

मूढ़ कौन ज्ञानी यहाँ,तौले कौन समाज।
तर्कयुक्त प्रमुदित हृदय,ज्ञानवान् हमराज॥

धीर शील संयम मिलन,धर्म नीति संसार।
पौरुष जो हित कर्म जग,वही कीर्ति आधार॥

मानव जीवन श्रेष्ठ जग,मति विवेक से श्रेष्ठ।
राष्ट्र धर्म चहुँ प्रगति में,तभी मनुज हो ज्येष्ठ॥

समरसता हो देश में,आपस में सहभाग।
दीन धनी समतुल्य बन,मानव धर्म सुहाग॥

नारी का सम्मान जग,मर्यादित अभिव्यक्ति।
धर्म अपर सुख कामना,सोच मनुज हो शक्ति॥

सब शिक्षित पौरुष सबल,तन मन बने नीरोग।
बन भविष्य दर्पण मनुज,धर्म न्याय संयोग॥

दान दीन अस्मित सुखद,जीवन रत उपकार।
किन्तु लोभ मन छल कपट, फैला भ्रष्टाचार॥

महादान सब जन खुशी,धन वैभव सुख-चैन।
नर नारी सब जन सुयश,क्षमादान सुख नैन॥

नेता जनता आज सब,झूठ लूट रत स्वार्थ।
हिंसा दंगा भ्रष्ट रत,भूले पथ धर्मार्थ॥

प्रीति नीति मनमीत बन,करें दान मृदुभाष।
तजे भ्रष्ट पथ चाह को,बने धर्म अभिलाष॥

परिचय-डॉ.राम कुमार झा का साहित्यिक उपनाम ‘निकुंज’ है। १४ जुलाई १९६६ को दरभंगा में जन्मे डॉ. झा का वर्तमान निवास बेंगलुरु (कर्नाटक)में,जबकि स्थाई पता-दिल्ली स्थित एन.सी.आर.(गाज़ियाबाद)है। हिन्दी,संस्कृत,अंग्रेजी,मैथिली,बंगला, नेपाली,असमिया,भोजपुरी एवं डोगरी आदि भाषाओं का ज्ञान रखने वाले श्री झा का संबंध शहर लोनी(गाजि़याबाद उत्तर प्रदेश)से है। शिक्षा एम.ए.(हिन्दी, संस्कृत,इतिहास),बी.एड.,एल.एल.बी., पीएच-डी. और जे.आर.एफ. है। आपका कार्यक्षेत्र-वरिष्ठ अध्यापक (मल्लेश्वरम्,बेंगलूरु) का है। सामाजिक गतिविधि के अंतर्गत आप हिंंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में ५० से अधिक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर सक्रिय हैं। लेखन विधा-मुक्तक,छन्दबद्ध काव्य,कथा,गीत,लेख ,ग़ज़ल और समालोचना है। प्रकाशन में डॉ.झा के खाते में काव्य संग्रह,दोहा मुक्तावली,कराहती संवेदनाएँ(शीघ्र ही)प्रस्तावित हैं,तो संस्कृत में महाभारते अंतर्राष्ट्रीय-सम्बन्धः कूटनीतिश्च(समालोचनात्मक ग्रन्थ) एवं सूक्ति-नवनीतम् भी आने वाली है। विभिन्न अखबारों में भी आपकी रचनाएँ प्रकाशित हैं। विशेष उपलब्धि-साहित्यिक संस्था का व्यवस्थापक सदस्य,मानद कवि से अलंकृत और एक संस्था का पूर्व महासचिव होना है। इनकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी साहित्य का विशेषकर अहिन्दी भाषा भाषियों में लेखन माध्यम से प्रचार-प्रसार सह सेवा करना है। पसंदीदा हिन्दी लेखक-महाप्राण सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ है। प्रेरणा पुंज- वैयाकरण झा(सह कवि स्व.पं. शिवशंकर झा)और डॉ.भगवतीचरण मिश्र है। आपकी विशेषज्ञता दोहा लेखन,मुक्तक काव्य और समालोचन सह रंगकर्मी की है। देश और हिन्दी भाषा के प्रति आपके विचार(दोहा)-
स्वभाषा सम्मान बढ़े,देश-भक्ति अभिमान।
जिसने दी है जिंदगी,बढ़ा शान दूँ जान॥ 
ऋण चुका मैं धन्य बनूँ,जो दी भाषा ज्ञान।
हिन्दी मेरी रूह है,जो भारत पहचान॥

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