कमलेश वर्मा ‘कोमल’
अलवर (राजस्थान)
*************************************
रूका हुआ आलम है, रुठी है जिन्दगी,
कैसा है फलसफा बेगानी है बन्दगी
चुपके से आ रही है बेरुखी,
ज़हन में छाई हुई है दीवानगी।
वक्त ने किया इस कदर मायूस,
ये मौसम की हिदायत है
कशिश न हो ज़हन में,
ये तो वक्त की हिमाकत है।
लबो पे हँसी है आँखों में नमी,
हो गई इस कदर बेरुखी है
कर दिया मायूस हमें,
ये कैसी दीवानगी है।
ख्वाबों के हसीं सफ़र में,
कहीं गुम न हो जाए
लम्हा-लम्हा साथ रहकर भी,
कहीं दूर न हो जाए।
जीवन के इस सफर में,
तू ही बता ए जिन्दगी।
मनाएं भी तो कैसे मनाएं,
तू ही बता क्यूं रूठी है जिंदगी॥
परिचय –कमलेश वर्मा लेखन जगत में उपनाम ‘कोमल’ से पहचान रखती हैं। ७ जुलाई १९८१ को दुनिया में आई रामगढ़ (अलवर) वासी कोमल का वर्तमान और स्थाई बसेरा जिला अलवर (राजस्थान) में ही है। आपको हिन्दी, संस्कृत व अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। एम.ए. व बी.एड. तक शिक्षित कमलेश वर्मा ‘कोमल’ का कार्यक्षेत्र व्याख्याता (निजी संस्था) का है। इनकी लेखन विधा-गीत व कविता है। इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिका में प्रकाशित हुई हैं तो ब्लॉग पर भी लेखन जारी है। आपकी लेखनी का उद्देश्य-“कविता के माध्यम से विचार प्रकट करना एवं लोगों को जागरूक करना है।” पसंदीदा हिन्दी लेखक-मुंशी प्रेमचंद, महादेवी वर्मा, एवं जय शंकर प्रसाद हैं तो विशेषज्ञता- पद्य में है। बात की जाए जीवन लक्ष्य की तो भारतीय समाज में सम्मान प्राप्त करना है। देश और हिंदी भाषा के प्रति विचार -“राष्ट्र एक व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास राष्ट्र पर निर्भर करता है। हिंदी हमारी राष्ट्र और मातृत्व भाषा है, जो सरल तरीके से समझी और बोली भी जा सकती है। इसलिए इसे बढ़ाया ही जाना चाहिए।”