डॉ.चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’
रोहतक (हरियाणा)
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जाने कितनी शहादत ने बोए घाटी में बीज,
सत्तर साल से खून से सींच पत्थर गए पसीज
फिर से लाली आई है भारत माँ के चेहरे पर,
फिर से लगी मणि ज्यों भारत दूल्हे के सेहरे पर।
कितनी विधवाओं को मानो सिंदूर मिला है,
पुत्रहीन माताओं की गोद शिशु फूल खिला है
जैसे कटे हुए सिर,शेरनी को पुनः शीश मिला है,
घनी काली रात को चाँदनी का मिला सिला है।
कब से माँ का वसन तिरंगा जलाया जाता था,
नन्हीं-सी पंखुड़ियों में बारूद भराया जाता था
खत्म हुआ नारकीय खेल अब एक कारा का,
ध्वंस हुआ नर लीलती दारुणी धारदार धारा का।
घायल पंछी-सी घाटी को नए पर मिल गए,
दनुजाकर दुष्ट आतंक के पैर अब हिल गए
अब न लहू बहेगा बर्फ में मिल-मिलकर,
केसर की क्यारी महकाएगी देश खिलकर।
साकार हुआ वह सपना,कभी जो कल्पना था,
रूठा हुआ था प्यारा सदा से जो अपना था
अमन की चमन घाटी में न कहीं खंजर होगा,
होगा तो बस विश्व का स्वर्ग यहां मंजर होगा।
लहू के एक-एक कतरे से हरी हुई है फसल,
पत्थरों में पसीने से सींचा दिन-रात अटल
शहादत की फसल अन्ततः लहलाने लगी,
घाटी से सुखद सुहानी समीर अब आने लगी॥
परिचय–डॉ.चंद्रदत्त शर्मा का साहित्यिक नाम `चंद्रकवि` हैl जन्मतारीख २२ अप्रैल १९७३ हैl आपकी शिक्षा-एम.फिल. तथा पी.एच.डी.(हिंदी) हैl इनका व्यवसाय यानी कार्य क्षेत्र हिंदी प्राध्यापक का हैl स्थाई पता-गांव ब्राह्मणवास जिला रोहतक (हरियाणा) हैl डॉ.शर्मा की रचनाएं यू-ट्यूब पर भी हैं तो १० पुस्तक प्रकाशन आपके नाम हैl कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित हुई हैंl आप रोहतक सहित अन्य में भी करीब २० साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैंl इनको २३ प्रमुख पुरस्कार मिले हैं,जिसमें प्रज्ञा सम्मान,श्रीराम कृष्ण कला संगम, साहित्य सोम,सहित्य मित्र,सहित्यश्री,समाज सारथी राष्ट्रीय स्तर सम्मान और लघुकथा अनुसन्धान पुरस्कार आदि हैl आप ९ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हो चुके हैं। हिसार दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण हो चुका है तो आपने ६० साहित्यकारों को सम्मानित भी किया है। इसके अलावा १० बार रक्तदान कर चुके हैं।