डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी
जबलपुर (मध्यप्रदेश)
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माँ तू कितनी भोली-भाली,
माँ तू कितनी सीधी-सादी
चरणों में अर्पित करता हूँ,
हासिल की है वो आजादी।
आज नाचती धरा गगन है,
धरती पर जश्न ही जश्न है
पर माँ तुमसे कुछ कहना है,
मन को हल्का भी करना है।
मन आज कुछ बोल रहा है,
घाव दिलों के खोल रहा है
यूँ ही नहीं पायी आजादी,
लगा दी थी जान की बाजी।
कितने बच्चे-बूढ़े कट गए,
खेत लहू से जैसे भर गए
सबने ही सब-कुछ छोड़ा,
अपनों से अपना मुँह मोड़ा।
आँखों के सपनों को तोड़ा,
सिर्फ मृत्यु से नाता जोड़ा
आज आजादी का दिन है,
गांधी की खादी का दिन है।
माँ तुम हमको ये बतलाना,
सही बताना कुछ न छुपाना
क्या करता कोई हमें स्मरण,
कष्ट त्याग असमय मरण।
किये अपने प्राण समर्पित,
करता कोई फूल है अर्पित ?
क्या हमें सबने भुला दिया,
मिट्टी के नीचे सुला दिया।
नहीं थे ऐसे भाग्य हमारे,
हम भी देखते आज नजारे
कैसे फहराता है तिरंगा,
कैसे नृत्य कर रही है गंगा।
कैसे हिमालय मुस्काता है,
गीत राष्ट्र के वो गाता है
कैसे लेता है देश अंगड़ाई,
कैसे झूम रही है तरुणाई।
कैसे चहक रहे हैं बच्चे,
लग रहे सब कितने अच्छे
ये पाती सबको पढ़वाना
आजादी का मूल्य बताना।
ये सच है हम आज नहीं हैं,
इन जश्नों में साथ नहीं हैं।
जब तक हिंदुस्तान रहेगा,
हम गुमनामों का नाम रहेगा॥
परिचय– डॉ. अनिल कुमार बाजपेयी ने एम.एस-सी. सहित डी.एस-सी. एवं पी-एच.डी. की उपाधि हासिल की है। आपकी जन्म तारीख २५ अक्टूबर १९५८ है। अनेक वैज्ञानिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित डॉ. बाजपेयी का स्थाई बसेरा जबलपुर (मप्र) में बसेरा है। आपको हिंदी और अंग्रेजी भाषा का ज्ञान है। इनका कार्यक्षेत्र-शासकीय विज्ञान महाविद्यालय (जबलपुर) में नौकरी (प्राध्यापक) है। इनकी लेखन विधा-काव्य और आलेख है।