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शाम हुई…

सच्चिदानंद किरण
भागलपुर (बिहार)
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शाम हुई सुबह की,
उद्यांचल से तपती हुई
सूर्योदय के पराक्रम में,
सहजता से प्रयन्त प्रयासों के
उद्त प्रभावों से,
समेटते हुए कार्य सम्पादन से।

शाम हुई, कुछ कहने लगी,
उन क्षणिक प्रलापों में
गोधूलि की संतृप्त परछाई में,
आहिस्ता से उलझाई-अलसाई आती
गहरी रात्रि की अंधियारी गलियारी में,
वही एक दीप सचमुच जले
अराजकता अनैतिकता को आलोकित कर।

शाम हुई बोझिल,
थकान भरी दिनचर्चा की
अगुवाई में,
क्या से क्या हुआ ?
प्रश्नभरी निगाहों में,
खुशियों ने दस्तक दी
ठीक आपके पीठ पीछे आ के,
सच्चाई की ओर मुँह मोड़ के‌।

शाम हुई,
चंदा ने ली अंगड़ाई
रात को रिझाने आलिंगन हो,
पिया की बाँहों में चुपचाप
सुगबुगाने लगे सारे वो अरमान-आशिकी की गोद,
फिर क्या बात ?
जीवन पुलकित हुआ,
‘एक गहरी सोच’ गंभीरता से
इसी ख्व़ाहिश में।

फिर वही सुबह, शाम हुई,
युग स्मृति में आईना
टूट जाने तक
कोई बिम्ब-प्रतिबिम्ब नहीं,
वक्त ने छोड़ा नहीं
साथ वो तो अस्थिर है।
शाश्वत है अविचल-अविरल,
आप रहें या ना रहें निश्चयंता में॥

परिचय- सच्चिदानंद साह का साहित्यिक नाम ‘सच्चिदानंद किरण’ है। जन्म ६ फरवरी १९५९ को ग्राम-पैन (भागलपुर) में हुआ है। बिहार वासी श्री साह ने इंटरमीडिएट की शिक्षा प्राप्त की है। आपके साहित्यिक खाते में प्रकाशित पुस्तकों में ‘पंछी आकाश के’, ‘रवि की छवि’ व ‘चंद्रमुखी’ (कविता संग्रह) है। सम्मान में रेलवे मालदा मंडल से राजभाषा से २ सम्मान, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ (२०१८) से ‘कवि शिरोमणि’, २०१९ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ प्रादेशिक शाखा मुंबई से ‘साहित्य रत्न’, २०२० में अंतर्राष्ट्रीय तथागत सृजन सम्मान सहित हिंदी भाषा साहित्य परिषद खगड़िया कैलाश झा किंकर स्मृति सम्मान, तुलसी साहित्य अकादमी (भोपाल) से तुलसी सम्मान, २०२१ में गोरक्ष शक्तिधाम सेवार्थ फाउंडेशन (उज्जैन) से ‘काव्य भूषण’ आदि सम्मान मिले हैं। उपलब्धि देखें तो चित्रकारी करते हैं। आप विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ केंद्रीय कार्यकारिणी समिति के सदस्य होने के साथ ही तुलसी साहित्य अकादमी के जिलाध्यक्ष एवं कई साहित्यिक मंच से सक्रियता से जुड़े हुए हैं।