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जी-२० सम्मेलन से नए विश्व की संरचना संभव

ललित गर्ग
दिल्ली
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हिंसा, आतंक एवं युद्ध से संत्रस्त दुनियाभर की नजरें दिल्ली में होने (९-१० सितम्बर) वाले जी-२० देशों के शिखर सम्मेलन पर टिकी हैं। सम्मेलन इसलिए भी खास है कि, भारत ने इस साल जी-२० का अध्यक्ष होते हुए दुनिया को नई दिशाएं एवं आयाम दिए हैं। सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है, जब दुनिया रूस-यूक्रेन युद्ध, चीन-ताइवान की तनातनी और उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षण को लेकर असुरक्षा एवं अशांति की चिंताओं से घिरी हुई है। हालांकि जी-२० सुरक्षा संबंधी मुद्दों का नहीं, आर्थिक मुद्दों का मंच है, लेकिन सुरक्षा, शांति एवं युद्धमिुक्त से होकर ही आर्थिक उन्नति के रास्ते खुलते हैं। सुरक्षा चिंताओं ने दुनिया की अर्थव्यवस्था को जिस तरह प्रभावित कर रखा है, जी-२० देशों के लिए इसे पूरी तरह नजरअंदाज करना संभव नहीं है। जी-२० के सदस्य देशों की संयुक्त रूप से दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में करीब ८५ फीसदी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ७५ फीसदी की भागीदारी है। इस मंच के अध्यक्ष होने के नाते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक उन्नति के लिए शांति का सन्देश दिया है, उनका कहना है कि ‘यह युग युद्ध का नहीं है’ सन्देश फिर दुनिया को देने की जरूरत है। चीन की विस्तारवादी नीतियों पर अंकुश के लिए भी सम्मेलन में निर्णायक रूपरेखा एवं दिशाएं तय होनी चाहिए। जाहिर है, दिल्ली शिखर सम्मेलन में जो भी फैसले किए जाएंगे, पूरी दुनिया के लिए महत्त्वपूर्ण होंगे एवं उसी से नई विश्व संरचना संभव होगी।
समूची दुनिया युद्ध नहीं चाहती, अहिंसा एवं शांति की तेजस्विता ही विश्व जनमत की सबसे बड़ी अपेक्षा है, अब अहिंसा कायरता नहीं है, बल्कि उन्नत एवं आदर्श विश्व संरचना का आधार है। अब एक दौर अहिंसा का चले, उसकी तेजस्विता का चले तो विश्व इतिहास के अगले पृष्ठ सचमुच में स्वर्णिम होंगे, लेकिन इसकी सबसे बड़ी बाधा चीन एवं रूस पर निर्णय एवं निर्णायक रूपरेखा को तैयार करना ही होगा। जब अमरीका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, इटली, जर्मनी, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया जैसे बड़े देशों के राष्ट्राध्यक्ष सम्मेलन में भाग लेने वाले हैं, तो दुनिया की मौजूदा चुनौतियों से निपटने की कोई न कोई दिशा जरूर उभरेगी। इसकी संभावनाएं इसलिए भी बढ़ गई हैं, क्योंकि भारत ने नीदरलैंड्स, मिस्र, स्पेन, नाइजीरिया, संयुक्त अरब अमीरात और बांग्लादेश समेत ९ ऐसे देशों को भी आमंत्रित किया है, जो जी-२० के सदस्य नहीं हैं।
भारत ने सारी वसुधा को अपना परिवार मानते हुए ही अध्यक्षीय दायित्व को संभाला है। आज से एक सदी पूर्व अमरीका के शिकागो में सर्वधर्म सम्मेलन में उपस्थित प्रतिनिधियों को ‘बहिनों और भाइयों’ के रूप में सम्बोधित कर स्वामी विवेकानंद ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भारतीय भावना का ही विचार तो दिया था, जिसे सुनकर सभी प्रतिनिधि आश्चर्यचकित रह गए और इस संबोधन से गदगद होकर बहुत देर तक करतल ध्वनि करते रहे। आज भी मोदी ने उसी ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ मंत्र को जी-२० का उद्घोष एवं शुभंकर बनाकर दुनिया को एक परिवार बनाने की ओर कदम बढ़ाए हैं, लेकिन इन राहों में चीन एवं रूस जैसे महत्वाकांक्षी देश काँटे बो रहे हैं। दरअसल, दुनिया के देशों को यह समझना होगा कि इस वक्त चीन और रूस, दोनों ही अपने हिसाब से दुनिया को संचालित करना चाहते हैं। दोनों की मंशा अपने पड़ोसी देशों की संप्रभुता को नष्ट करने की है, साथ ही इस सरासर अन्यायपूर्ण व अमानवीय कृत्य में वे जी-२० जैसे मंचों का समर्थन भी चाहते हैं। कैसे भुला दिया जाए कि, पुतिन यूक्रेन के खिलाफ बाकायदा युद्ध लड़ रहे हैं, तो चीन ताइवान व भारतीय इलाकों पर लगातार गिद्ध दृष्टि गड़ाए बैठा है ? इसके बावजूद दुनिया में निरंतर सशक्त होते भारत को न तो निरश होना चाहिए, न हार मानकर बैठ जाना चाहिए।
भारत को अपनी परम्परा से मिली ऊर्जा से दुनिया में शांति, सुख एवं समृद्धि की कामना एवं प्रयत्न करते रहना है। इतिहास साक्षी है कि, सभी प्राणियों के सुख-शांति की कामना करने वाले हमारे पूर्वजों ने कहीं भी राजनीतिक सत्ता की प्राप्ति का लक्ष्य रखकर आक्रमण नहीं किया, किसी देश पर अतिक्रमण नहीं किया, किसी देश की सीमाओं पर कब्जा नहीं किया । यदि कहीं संघर्ष की स्थिति आई तो लक्ष्य रहा सज्जनों का परित्राण और दुष्टों का विनाश। इसके अतिरिक्त जहां कहीं वे गए, वहाँ सद्व्यवहार और ज्ञान के बल पर उन्होंने भाईचारे और भारतीय संस्कृति की पताका ही लहराई, न कि सत्ता के मद में किसी पर आक्रमण किया।
दुनिया के प्रति भारत की अपनी स्वतंत्र नीति है और उसी के अनुरूप आचरण जारी रहना चाहिए। ध्यान रहे, हमारी प्रगति के प्रति प्रतिकूल नजरिया रखने वाले देशों की चलती, तो भारत में कभी जी-२० का आयोजन नहीं होता और न अध्यक्षता मिलती। भारत ने जो पाया है, अपने प्रयासों से पाया है और आगे भी उसे अपने पुरुषार्थ से ही सफलताएं हासिल होंगी।
आज भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों में गिरावट के लिए अकेले चीनी राष्ट्रपति जिम्मेदार हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि जोड़ने-जुड़ने के शिखर मंच पर चीन की ओर से तोड़ने-टूटने की बातें नहीं होंगी। निश्चित ही भारत के प्रयासों से अफ्रीकी संघ भी जी-२० से जुड़ा, जबकि पहले इस मंच पर अफ्रीका के लोगों की आवाज नहीं थी। निश्चित ही यह सम्मेलन अनूठा एवं विलक्षण होगा।
भारत के लिए यह सम्मेलन सदस्य देशों के साथ रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म करने के आधार तलाशने के प्रयास तेज करने का अच्छा मौका है। रूसी राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन के साथ युद्ध की वजह से आने में असमर्थ हैं। इसके पीछे उनकी कोई गहरी कूटनीति नहीं है। बावजूद इसके देखने वाले रूस-चीन के शीर्ष नेताओं की जी-२० को गंभीरता से न लेने एवं उनकी बेरूखी का कोई तो मतलब निकालेंगे। ऐसा इसलिए भी होगा, क्योंकि जी-२० में शांतिप्रिय पश्चिमी देशों का वर्चस्व हैै। इसके अलावा, शांति के पक्षधर और पंचशील की बुनियाद रखने वाले युद्ध विरोधी भारत के पास इसकी अध्यक्षता है, जिसे लेकर शुरू से चीन असहज है। उसकी असहजता का कारण उसकी विस्तारवादी गतिविधियों एवं कूटनीति पर पानी फिरना है। भारत के विरोध में वह अलग-थलग है। कूटनीति के जानकार मानते हैं कि, शी जिनपिंग ने अपने देश का नया नक्शा ऐसे समय में यूँ ही नहीं जारी कराया था। चीन के नए नक्शे में कई देशों की सीमाओं का उल्लंघन है। चीन ने केवल भारत के अरुणाचल समेत कुछ इलाकों को ही अपने नए नक्शे में नहीं दिखाया है, बल्कि मलेशिया, फिलीपींस, विएतनाम को भी नक्शे में दिखाया है। भारत ने इस पर अपना ऐतराज जाहिर किया है। सत्य तो यह है कि, भारतीय संस्कृति एवं राजनीति की सुदीर्घ यात्रा में विश्व-कल्याण और मानव-कल्याण की भावना सदैव सक्रिय रही है। इस संस्कृति के अंतर्गत उपलब्ध संपूर्ण वाङ्मय में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ की भावना अंतःसलिला सरिता के समान सदा प्रवहमान रही है। इसमें व्यक्ति की अपेक्षा समष्टि को, देश के साथ संपूर्ण विश्व को प्रधानता दी गई है। जी-२० सम्मेलन में विश्व-परिवार की भावना को ही बल दिया जाएगा।