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शिशिर की शरारत

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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पालो की चादर ले, कोहरे ओट से,
झाँकती थरथराती आयी शिशिर।

सिहराती कंपकपाती सहलाती है,
हिम छू आती समीर मदिर-मदिर।

बोध को भेदती चेतना को छेड़ती,
सविता की ताप हुई चाँदनी तिमिर।

सृष्टि प्रसुप्त है विहंग भी विलुप्त है,
शीत की शरारत से जगत है अधीर।

विचल है सलिला जमे है निर्झरिणी,
निसर्ग भी शीत भय से हो गए स्थिर।

शरद की शुषमा भी अति से भस्म-सी,
शीत तीर चलाये खाली रह गए तूणीर॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।

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