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संवेदनात्मक बुनावट में पाठक को साथ लेकर चलने वाली कहानियाँ

इंदौर।

कहानियों की संवेदनात्मक बुनावट पाठक को साथ लेकर चलती है। इन कहानियों से लगता है कि सम्बन्ध के रिक्त हो जाने के बाद ही आत्मीय क्षण महसूस होते हैं। कथाकार चैतन्य त्रिवेदी ने ‘जलेस’ मासिक रचना पाठ-६७ में इस बात को रेखांकित किया। रविवार को देवी अहिल्या केन्द्रीय पुस्तकालय में जनवादी लेखक संघ कॆ मासिक रचना पाठ में प्रकाश कान्त ने अपनी दो कहानियों शहर की आख़री चिड़िया और सूखी नदी के स्पर्श का पाठ किया। वरिष्ठ कथाकार प्रकाश कान्त की कहानियों पर बात करने कॆ क्रम में कहानियों पर चर्चा करते हुए आनन्द व्यास,देवेन्द्र रिणवा और विभा दुबे ने इन्हें मानवीय रिश्तों और संवेदनाओं की मार्मिक कथाओं के रूप में रेखांकित किया।
वरिष्ठ कवि प्रदीप कान्त ने कहा कि ये छोटे शहर,मध्यमवर्गीय और पारिवारिक संवेदना की कहानियाँ हैं। नन्दाकिनी व प्रदीप नवीन ने इन कहानियों को ह्रदयस्पर्शी कहानियों के रूप में रेखांकित किया। वरिष्ठ व्यंग्यकार जवाहर चौधरी ने इनकी काव्यात्मक को रेखांकित करते हुए कहा कि ये संवेदनात्मक भाषा की बुनावट की कथाएँ हैं।
कथाकार रविन्द्र व्यास ने कहा कि इन कहानियों में किरदार और सूत्रधार दोनों की आवाज़ें साफ-साफ सुनाई देती हैं। और भी कहानियों का उदाहरण लेते हुए उन्होंने कहा कि ये रूठी हुई रुलाई की कहानियाँ हैं,जिनमें कथाकार का कलात्मक संयम झलकता है। वरिष्ठ कथाकार प्रभु जोशी ने चर्चा करते हुए कहा कि प्रकाश कान्त रागात्मकता में जीने वाले और उसको जीने वाले कथाकार हैं। उन्होंने प्रकाश कान्त को मालवा के एक बड़े कथाकार के रूप में रेखांकित किया।
संचालन रजनी रमण शर्मा ने किया। आभार देवेंद्र रिणवा ने माना। कार्यक्रम में सूरत में अग्निकांड में मृत बच्चों को श्रद्धांजलि भी अर्पित की गई।

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