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सकारात्मक चिंतन और रचनात्मक व्यवहार

डॉ.चंद्रदत्त शर्मा ‘चंद्रकवि’
रोहतक (हरियाणा)
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जीवन में सकारात्मक चिंतन और रचनात्मक व्यवहार से बड़ी से बड़ी विपरीत परिस्थितियों पर भी काबू पाया जा सकता हैl सकारात्मक चिंतन हमारी दुविधाओं को रूई जैसा हल्का बना देता है। रचनात्मक व्यवहार हमें कभी निष्फल नहीं होने देता। जिसके पास रचनात्मक व्यवहार की तकनीक है,उसे और तकनीक की जरूरत नहीं है।
हम सब चिंतनशील प्राणी हैं,जब कोई घटना होती है या कोई काम करना होता है तो हम कल्पना करते हैंl इस कल्पना को ही अपनी सोच का नाम दे सकते हैं। कुछ लोग इसे चिंतन भी कहते हैं। जब हम दूर तक किसी विषय पर सोचकर निष्कर्ष निकाल लेते हैं,तब मन में प्रसन्नता होती है-जैसे हमें बहुत कुछ मिल गया। इसी प्रसन्नता के आधार पर साहित्यकार मौलिक साहित्य की रचना करते हैं। अब सवाल यह उठता है कि हमने जो कल्पना या चिंतन किया है,वह सकारात्मक है या नकारात्मक है। यानी उसका परिणाम समाज विरोधी है या समाज हितैषी।
एक बार एक बालक था,वह मन में कल्पना करता कि मैं दुनिया से हट कर काम करूंगा। उसके मन में कुछ नया करने का विचार बनता या कल्पना करता,उस कल्पना का विकास होता रहा। कुछ अनोखा कार्य करना चाहता था। मन में जब दबाव बढ़ जाता है,तो वह शरीर से अपने आप कार्य करवा लेता। उसके साथ भी यही हुआ। उसने लोगों के घरों में चोरी करने की योजना बनाई और बड़ी से बड़ी चोरी करने में सफल होता गया,किंतु एक न एक दिन तो चोर को जेल में जाना ही होता है। जब उसे पकड़ा गया उसको बिल्कुल यह नहीं लगा कि उसने कोई गलत काम किया हैl उसने बताया कि वह किस प्रकार से योजना बनाता था,और कैसे निकलना है।
आप अपने मन में जैसा चाहें,वैसा विचार चला सकते हो। यह कल्पनाशीलता या योजना से कार्य करना चिंतन है। जब हम चिंतन करते हैं,तो सकारात्मक सोच कर बहुत बड़ी सफलता पा सकते हैं। जब हम कोई गलत कार्य करने लग जाते हैं,तो हम आदी हो जाते हैं और हमें पता ही नहीं चलता कि हमने गलत किया या ठीक,क्योंकि गलत भी हमें ठीक लगने लग जाता है।
अपनी सोच-अपनी कल्पना को सकारात्मक बनाइए,तभी तो हम असंभव कार्य को भी योजना बना करके पूरा कर सकते हैं। अपने कार्यों को लेकर कल्पना कीजिएl सही निष्कर्ष पर पहुंची यह कल्पना या चिंतन आपको रचनात्मकता यानी कि ऐसा नया तरीका देगी कि आपको निश्चय ही सफलता मिलेगी। आपके लिए लोग हैरान भी होंगे।
कल्पना या चिंतन जब हम शांत भाव से करते हैं,तो निर्णय सही कर पाते हैं। इसी का नाम विवेक है। हमारा विवेक ही हमारी गीता है।
जीवन में संघर्ष की पाठशाला का पहला पाठ है-असंभव कुछ भी नहींl अपने मन की पट्टी पर कभी असंभव शब्द मत लिखिए,वरना आपको हटाना मुश्किल हो जाएगा। एक पश्चात्य कवि की कविता होती थी माय माइंड टू मी द किंग्डम इज,मेरा भी मानना है कि हमारा मन हमारी सफलता का खेत होता है।
कुछ दिन पहले टी.वी. में एक विज्ञापन आता थी पागलपन भी जरूरी है इसका अर्थ यह समझें कि,अपने लक्ष्य को पाने के लिए इतना परिश्रम करें कि लोग आपको पागल समझने लगें। बाद में भी नहीं समझ में आएगा कि,आप पागल नहीं थे।
एक बात और ध्यान से सुनना कि अगर कोई आपको देखकर ईर्ष्या या द्वेष करे,आपको काम करता देखकर दुखी हो तो समझ लेना कि आप सफल हो रहे हैं। यही आपकी उन्नति के पल हैं। आप इतने आगे बढ़ो कि,उन्हें आपको स्वीकार करना पड़े।
जितने ज्यादा आपको परेशान करने वाले होंगे,आप उतनी ही ज्यादा उन्नति करेंगे,क्योंकि वो आपको हताश करेंगे,आपका अहित करेंगे, आप को गिराने की कोशिश करेंगे,उतना ही आप बहुत सावधान होकर और भी मेहनत से आगे बढ़ोगे,और मन बना लोगे कि मैं तुम्हें यह करके ही दिखाऊंगा। अगर लोगों के लिए असाधारण बनना है तो असंभव सपना देखो और पूरा करने का भी बड़ा प्रयास करो।
अगर आप सफल होना चाहते हैं,तो पहले अपनी सोच को बदलिए। अगर आप विजेता बनना चाहते हैं,तो एक विजेता की तरह सोचना शुरू कीजिए। पाश्चात्य विद्वान वेली जोली का एक उदाहरण देखिए- एक पहाड़ी पर बाज का घोंसला था। तेज हवा चली,तो घोंसले से अंडा नीचे घाटी में लुढ़क कर आ गया। वहां मुर्गियों का बाड़ा था। अंडा वहां तक पहुंच गया। एक मुर्गी ने देखा,उसे बड़ा अजीब तो लगा लेकिन उसने मन बना लिया कि मैं इसके ऊपर बैठूंगीl इसे नन्हा मुर्गा बनाऊंगी। जब यह चूजा अंडे से बाहर आया तो लंबी चोंच और बड़े पंख थे। मुर्गी माँ को थोड़ा अजीब लगा,और उसने कहा-कोई बात नहीं,मैं तुम्हें अपना लूंगी। अब उस बच्चे की भी माहौल के अनुसार विचारधारा वैसी ही थी। वह सोचता कि मैं कब दीवार पर चढ़कर बांग दूंगा। एक दिन वह बाहर घूम रहा था,तभी आकाश मार्ग से उसने एक बाज को देखा। वह बाज भी उसे देखकर नीचे आ गया। उसने छोटे से पक्षी से पूछा,-“तुम कौन हो ?”
छोटे पक्षी ने उससे पूछा,-“तुम कौन हो,इतनी ऊंचाई पर कैसे उड़ लेते हो ?”
बाज बोला कि-“पहले बताओ कि तुम कौन हो ?”
छोटे पक्षी ने कहा-“मैं तो मुर्गा हूँ l”
बाज ने कहा,-“नहीं,तुम मेरी तरह दिखते होl तेरे पंख भी लंबे और मजबूत हैं। तुम बाज हो।”
उसने कहा,-“नहीं मैं तो मुर्गा हूँ”,लेकिन बाज बार-बार समझाता रहा और उसे विश्वास दिलाता रहा कि तुम उड़ सकते हो।
“अरे जरा पंख फड़-फड़ाकर देखो।” जैसे-जैसे वह पंख फड़फड़ाता रहा, अंततः आकाश में उड़ने में सफल हो गया।
इसलिए,विद्यार्थियों! आप भी मुर्गे नहीं हो। शक्तिशाली बाज के समान हो। भले ही आपको सामान्य परिवेश मिला है,किंतु तुम मत भूलो कि इस महान भारत भूमि की उपज हो,जहां चंद्रगुप्त ने काबुल कंधार तक राज्य किया था। चाणक्य जैसे बुद्धिमान हुए। स्वामी दयानंद,विवेकानंद,श्रीराम,कृष्ण,बुद्ध,नानक,राणा,शिवाजी,लक्ष्मीबाई भगत सिंह,नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मिट्टी में जन्मे होl उनके वंशज हो,इसलिए कभी कमजोर हो ही नहीं सकते।
सकारात्मक चिंतन के दौरान अपने सपने बुन सकते हैं,क्योंकि बसंत में ही पत्ते व फूल खिलते हैं।
अतः,सपने बुनने के लिए एक कागज पर लिख लें कि,मुझे यह बनना है,कब तक बनना है। कार्य की योजना बनाएं,कैसे कार्य करना है ? आशावादी बनें,खुद पर विश्वास रखेंl दिन-रात अपने सपने के बारे में चिंतन करें। काम करते समय भी अपने सपने को याद रखें, देखना आपका सपना अपना बन जाएगा।
बाधाएं चाहे पहाड़ जैसी क्यों ना लगे,लेकिन पहाड़ों पर भी तो हरियाली होती है। अगर सूर्य के चारों ओर बादल मंडरा जाए तो क्या वह चमकना छोड़ देता है। कुछ पल के बाद बादल खुद करके चले जाएंगे। ऐसे ही जीवन में आने वाली समस्याएं हम जो देखते हैं,वही सोचते हैं और जो सोचते हैं वही बनते हैं।
एक बार मेरे मित्र ने कहा कि,मेरे पास एक चेहरा देखकर भविष्य बताने वाली मैना है,आप आईए,देखिए।
मैं वहां गया मैंने पूछा,-“दिखाओ दिखाओ भाई! वह मैना।”
उसने कहा-“कौन-सी मैंना ?”
मैंने कहा कि आपने बोला था,मुझे आप दिखाओ,तो उसने कहा,मेरे सामने बैठी है। यानी मेरी तरफ इशारा किया। मुझे थोड़ा गुस्सा आया और ताज्जुब भी हुआ। मैंने पूछा,-“मैं कैसे ?”
उसने कहा है,आप जब भी बात करते हो ? उसकी आँखों में नहीं देखते,न ही चेहरे को पढ़ते हो।” देखो दोस्त,आप आने वाले व्यक्ति का भविष्य बता सकते हो। इसके मन में क्या चल रहा है ? इसकी आँखों में क्या है ? यह क्या चाहता है ? इससे आप बहुत-सी समस्याओं से बच सकते हैं। चेहरा भाव की तख्ती होता है और आँखें आत्मा का दर्पण। दूसरा सामने वाले को देखकर आप आत्मविश्वास से बात करने से भी उसके उसके एक दो शब्दों से भी आप उसके मंतव्य को जान सकते हैं। इससे आप कभी धोखा नहीं खाओगे और उसकी अवस्था अनुसार ही अपना व्यवहार बदल लोगे।
यथा रचनात्मक व्यवहार का एक छोटा-सा दृष्टांत पेश है-एक बार लेस ब्राउन व्यापारी अपनी बैठक में जा रहा था। जैसे ही वह ऑफिस से निकला तो उसके पास एक लड़का आया-“साहब,आपके जूते गंदे हैं पालिश करवा लीजिए।”
उसने कहा,-“नहीं मुझे जल्दी हैl” जैसे-जैसे वह ऑफिस के पास गया, ऐसे ही कई पॉलिश करने वाले मिले। सबको एक ही जवाब,लेकिन जैसे ही वह ऑफिस के नजदीक पहुंचा,उसी मंजिल पर उतरा सामने की दुकान एक लड़का आया और कहा,-“मैं जानता हूँ,आपको देर हो रही है। आज मेरा जन्मदिन है और मैंने खुद से वादा किया है कि मैं यहां से गुजरने वाले सौवें आदमी की जूता पालिश मुफ्त में करूंगा। अगर आप मौका दें तो मैं आपके जूते चमका सकता हूँ,और अपना वायदा पूरा कर लूं।” यह सुनकर लेस ब्राउन बैठ गयाl उस लड़के ने जूता पालिश में बहुत मेहनत की,बहुत पसीना बहा दिया और फिर जूतों को वापस कर दिया। तब लेस ब्राउन ने पूछा कि-“अगर मैं पैसे में जूतों को पॉलिश करवाता तो कितना लेते।”
लड़के ने जवाब दिया,-” सर ५ डालर।” लेस ब्राउन ने उसको १० डालर दे दिए।
जैसे ही लेस ब्राउन वहां से निकला,तो लड़के ने फिर से गिनना शुरू कर दिया ९६,९७,९८,९९,१००l इस प्रकार यह था रचनात्मक व्यवहार। कुशल सकारात्मक चिंतन वह है जो परिश्रम में सफलता दिला सकता है।
एक बार दो चूहे थे,पक्के दोस्त। एक बार तूफान आया,दोनों उड़कर एक हलवाई की दुकान में जा गिरे। संयोग से गर्म हुआ दूध ठंडा हो चुका था,उस पर कुछ मलाई भी आ गई थी। एक सकारात्मक चिंतन वाला चूहा था और दूसरा नकारात्मक चिंतन वाला। एक आशावादी,तो दूसरा निराशावादी चूहा था। निराशावादी ने सोचा कि अब तो मृत्यु निश्चित है,कोशिश बेकार है,क्योंकि जो पतीला था,बहुत गहरा था। इसलिए उसने हाथ-पैर मारने बंद कर दिए। दूसरा सकारात्मक चिंतन वाला था। उसको लगा कोई बात नहीं,अगर मरना भी पड़े,कोशिश तो करूंगा। हो सकता है कोई आ जाए जो उसको बाहर निकाल दे। उसने हाथ-पैर मारने शुरू कर दिए। इसलिए वह डूबा नहीं। रात में दूध दही में बदल गया,और उछल-कूद करने से दही मक्खन में बदल गया। मक्खन में परिवर्तित हुआ तो चूहा बाहर आ गया। यह था सकारात्मक चिंतन का परिणाम।
प्राय: कई बार हम अपनी किस्मत को कोसने लग जाते हैं। इसका एक नुकसान यह होता है कि,हम खुद को दूसरों से हीन समझने लग जाते हैं और इस बीच सुअवसर भी हाथ से निकल जाता है।
आशावादी बनें,क्योंकि आशा तो जीवन को दी गई एक शरण है। जैसे एक छोटी-सी प्रकाश की किरण बहुत बड़े अंधेरे को चीरने में सक्षम होती है,वैसे ही आशा भी मन में गहरे से बैठी हुई निराशा-हताशा,हीन भावना के घने अंधकार को चीरने में सफल होती है।
एक बात और मन में आपने कुछ बनने का जो सपना देखा है,उसे पूरा होने से पहले किसी को मत बताइए,क्योंकि या तो आप दूसरों के द्वारा मजाक बना दिए जाओगे,या वे किसी अन्य रूप में आपके सामने बाधा बनकर आएंगे। अपनी योजना को आप जितना गोपनीय रखेंगे,उतना ही मन पर बल पड़ेगा और आप मन-वचन-कर्म से उसे पूरा करने में लग जाएंगे।
आपने कोल्हू के बैल की कहावत तो सुनी होगी। यानी दिन-रात परिश्रम करने वाला,किंतु इस कोल्हू के बैल की आँखों पर एक पट्टी लगी होती थी कि देख ना सके। कोल्हू का बैल तो बन सकते हैं,पर आँखों पर पट्टी मत रखिए,क्योंकि आपको केवल परिश्रम ही नहीं करना,देखते भी रहना है कि आपके सामने जो बाधा आई है उसको चिंतन करके कैसे पार करना है,क्योंकि आप ठहरे चिंतनशील प्राणी!
आपने गांव में भैंस देखी होंगी,और रखते भी होंगे। आप तालाब पर भैंस को पानी के लिए ले जा सकते हैं,लेकिन जरूरी तो नहीं कि वह आपकी इच्छा अनुसार पानी भी पियेl उसकी मर्जी है पानी पिए या ना पिये। ऐसे ही गुरुओं का कार्य है आपको सच्ची सही राह दिखाना। यह तो आप पर निर्भर करता है कि आप ज्ञान को ग्रहण करें या न करें। अच्छा रास्ता अपनाएं या ना अपनाएं। यह आपकी समझ पर है, आपके विवेक पर है,आपकी इच्छा शक्ति पर है।

परिचय–डॉ.चंद्रदत्त शर्मा का साहित्यिक नाम `चंद्रकवि` हैl जन्मतारीख २२ अप्रैल १९७३ हैl आपकी शिक्षा-एम.फिल. तथा पी.एच.डी.(हिंदी) हैl इनका व्यवसाय यानी कार्य क्षेत्र हिंदी प्राध्यापक का हैl स्थाई पता-गांव ब्राह्मणवास जिला रोहतक (हरियाणा) हैl डॉ.शर्मा की रचनाएं यू-ट्यूब पर भी हैं तो १० पुस्तक प्रकाशन आपके नाम हैl कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचना प्रकाशित हुई हैंl आप रोहतक सहित अन्य में भी करीब २० साहित्यिक मंचों से जुड़े हुए हैंl इनको २३ प्रमुख पुरस्कार मिले हैं,जिसमें प्रज्ञा सम्मान,श्रीराम कृष्ण कला संगम, साहित्य सोम,सहित्य मित्र,सहित्यश्री,समाज सारथी राष्ट्रीय स्तर सम्मान और लघुकथा अनुसन्धान पुरस्कार आदि हैl आप ९ अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में शामिल हो चुके हैं। हिसार दूरदर्शन पर रचनाओं का प्रसारण हो चुका है तो आपने ६० साहित्यकारों को सम्मानित भी किया है। इसके अलावा १० बार रक्तदान कर चुके हैं।

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