कुल पृष्ठ दर्शन : 38

You are currently viewing सच्चाई के साथ दास्तां प्रस्तुत करती है यशोधरा भटनागर

सच्चाई के साथ दास्तां प्रस्तुत करती है यशोधरा भटनागर

पटना (बिहार)।

आज की कहानियाँ कपोल कल्पित नहीं, बल्कि यथार्थ की जमीन पर खड़ी अपनी दास्तान प्रस्तुत कर रही होती है, वह भी पुख्ता सच्चाई के साथ। यह बात भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वावधान में आभासी माध्यम से आयोजित कथा सम्मेलन में अध्यक्ष भगवती प्रसाद द्विवेदी ने कही।सम्मेलन की मुख्य अतिथि यशोधरा भटनागर ने कहा कि, कहानी गद्य लेखन की एक सशक्त विधा है। आदर्शवाद, यथार्थवाद प्रगतिवाद, मनोविश्लेषणवाद, आँचलिकता आदि के दौर से गुजरते हुए कहानी ने सुदीर्घ यात्रा में अनेक उपलब्धियाँ अर्जित की हैं। अमृता प्रीतम जी का एक वाक्य हमेशा मेरे जहन में रहता है-कहानी लिखने वाला बड़ा नहीं होता, बड़ा वह है जिसने कहानी अपने जिस्म पर झेली है।
आपने अपनी ‘यूनिफॉर्म’ कहानी का पाठ किया। उनकी कहानियों पर टिप्पणी करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने कहा कि, ढेर सारे पन्नों में हम अपनी कहानी को अभिव्यक्त करें, इससे बेहतर है कम पन्नों में हम, व्यक्ति, परिवार और समाज को सार्थक संदेश दे जाएँ। इसमें कोई संदेह नहीं है कि, आने वाला समय, लंबी-लंबी कहानियों का नहीं, बल्कि इसी तरह की छोटी-छोटी कहानियों के लिए संभावित है, जैसी कि आज श्री द्विवेदी ने अपनी कहानी ‘तमाशबीन’ और यशोधरा भटनागर ने ‘यूनिफॉर्म’, ‘कृष्ण कृष्णा’ और ‘कुंज’ के माध्यम से प्रस्तुत किया है। ‘तमाशबीन’ समाज के कुत्सित चेहरे को उघाड़ कर रख देती है।

आपने नलिनी श्रीवास्तव की कहानी ‘वह पंद्रह दिन’, डॉ. अनुज प्रभात की कहानी ‘तज्जो’ एवं रश्मि ‘लहर’ की कहानी ‘शिरीष’ आदि पर भी टिप्पणी व्यक्त की।