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सबको मिले ‘दो जून की रोटी’

प्रो.डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला(मध्यप्रदेश)
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‘दो जून की रोटी’ एक कहावत है, पर ये अवधी भाषा का शब्द है। अवधि भाषा में ‘जून’ का अर्थ होता है ‘वक्त’ यानी ‘समय।’ यानी दोनों समय का भोजन, इसलिए पुराने जमाने में बुजुर्ग सुबह-शाम के भोजन को दो जून की रोटी के साथ संबोधित करते थे। कहते हैं हर किसी के नसीब में दो जून की रोटी नहीं होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि, आज के समय में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि गरीबों को दो जून की रोटी नसीब नहीं होती है।गरीबों को दो जून की रोटी यानी भोजन मिलता रहे, इसके लिए सरकार कई योजनाएँ भी चला रही है। बता दें कि, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना ऐसी योजना है, जो भारत में गरीब लोगों को मुफ्त खाद्यान्न देती है। इस योजना का शुभारंभ चार साल पहले २०२० में कोविड-१९ महामारी के दौरान लोगों की मदद के लिए किया गया था। साल २०१७ में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार-देश में १९ करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें सही तरीके से भोजन नहीं मिल पा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि, करोड़ों लोगों को आज भी भूखे पेट ही सोना पड़ता है। हालांकि, सभी लोगों को दो जून की रोटी नसीब हो सके, इसके लिए केंद्र सरकार ‘कोरोना’ काल से ही मुफ्त में राशन मुहैया करवा रही है, जिसका ८० करोड़ जनता को सीधा फायदा मिल रहा है।वैसे तो, दो जून का मतलब दो समय की रोटी से होता है, लेकिन ये कहावत जून के महीने में ज्यादा उछाल में आ जाती है। इसके पीछे मान्यता है कि, अंग्रेजी कैलेंडर का जून और हिन्दी का ज्येष्ठ का महीना सबसे गर्म माना जाता है। ऐसे में सभी इंसानों को भोजन और पानी की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। शायद यही कारण है कि, जून के महीने में २ जून की रोटी वाली कहावत ज्यादा चलन में आ जाती है। माना जाता है कि, ये कहावत आज से नहीं, बल्कि ६०० साल पहले से चली आ रही है। कई इतिहासकारों ने इसका जिक्र अपनी रचनाओं में भी किया है। इसे प्रेमचंद से लेकर जयशंकर प्रसाद तक ने अपनी कहानियों में शामिल किया है।
दो जून की रोटी को लेकर जो सबसे बड़ा प्रथम चरण होता है, जिसे हमें धन्यवाद देना चाहिए-वो हैं हमारे किसान भाई। किसान भाई दिन-रात एक बीज से पौधा बनने तक सालभर मेहनत करते हैं, तब कहीं जाकर हमें दो जून की रोटी के लिए अनाज मिलता है। दुनियाभर में भोजन की कमी या खाने का खर्चा न उठा पाने को लेकर कुछ आँकड़े जारी किए गए हैं, जिसके अनुसार वैश्विक स्तर पर ४२ फीसदी लोग स्वस्थ आहार का खर्च वहन नहीं कर पाते। यानी ४२ प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें पोषण युक्त आहार नहीं मिल पाता है। ‘यूनिसेफ’ के २०२३ के आँकड़ों की बात करें तो इसके अनुसार वैश्विक स्तर पर १ अरब लड़कियों और महिलाओं को अल्प पोषण का सामना करना पड़ता है। इसलिए, दो जून की रोटी सबको मिलती रहे, यही कामना है।

परिचय–प्रो.(डॉ.)शरद नारायण खरे का वर्तमान बसेरा मंडला(मप्र) में है,जबकि स्थायी निवास ज़िला-अशोक नगर में हैL आपका जन्म १९६१ में २५ सितम्बर को ग्राम प्राणपुर(चन्देरी,ज़िला-अशोक नगर, मप्र)में हुआ हैL एम.ए.(इतिहास,प्रावीण्यताधारी), एल-एल.बी सहित पी-एच.डी.(इतिहास)तक शिक्षित डॉ. खरे शासकीय सेवा (प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष)में हैंL करीब चार दशकों में देश के पांच सौ से अधिक प्रकाशनों व विशेषांकों में दस हज़ार से अधिक रचनाएं प्रकाशित हुई हैंL गद्य-पद्य में कुल १७ कृतियां आपके खाते में हैंL साहित्यिक गतिविधि देखें तो आपकी रचनाओं का रेडियो(३८ बार), भोपाल दूरदर्शन (६ बार)सहित कई टी.वी. चैनल से प्रसारण हुआ है। ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं(विशेषांकों)का सम्पादन कर चुके डॉ. खरे सुपरिचित मंचीय हास्य-व्यंग्य  कवि तथा संयोजक,संचालक के साथ ही शोध निदेशक,विषय विशेषज्ञ और कई महाविद्यालयों में अध्ययन मंडल के सदस्य रहे हैं। आप एम.ए. की पुस्तकों के लेखक के साथ ही १२५ से अधिक कृतियों में प्राक्कथन -भूमिका का लेखन तथा २५० से अधिक कृतियों की समीक्षा का लेखन कर चुके हैंL  राष्ट्रीय शोध संगोष्ठियों में १५० से अधिक शोध पत्रों की प्रस्तुति एवं सम्मेलनों-समारोहों में ३०० से ज्यादा व्याख्यान आदि भी आपके नाम है। सम्मान-अलंकरण-प्रशस्ति पत्र के निमित्त लगभग सभी राज्यों में ६०० से अधिक सारस्वत सम्मान-अवार्ड-अभिनंदन आपकी उपलब्धि है,जिसमें प्रमुख म.प्र. साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार(निबंध-५१० ००)है।