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सोच सको तो सोचो

अवधेश कुमार ‘अवध’
मेघालय
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गिलगित,बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओ,
वरना जबरन ले लेंगे मत रोओ-मत चिल्लाओ।
खून सने कातिल कुत्तों से जनता नहीं डरेगी,
दे दो,वरना तेरी छाती पर ये पाँव धरेगी।
तेरी-मेरी जनता कहने की ना कर नादानी,
याद करो आका जिन्ना की बातें पुन: पुरानी।
देश बाँटकर जाते-जाते उसने यही कहा था-
“पाक नहीं चल पाया तो भारत में इसे मिलाओ।”
गिलगित,बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओll

बार-बार हम माफ किये थे तुम्हें समझकर भाई,
कुत्ते की दुम-सा तुम ऐंठे बात समझ ना आई।
जिस मजहब का ढोल पीटकर तुम आतंक मचाते,
तुमसे ज्यादा भारत में रहते रहकर इठलाते।
कान खोलकर सुनो पाक नापाक नदारद होगा,
नफरत फैलाने वालों ने कब कितना सुख भोगा!
जिन्ना से आगे बढ़कर कुछ सही दिशा में सोचो-
मानव को मानव बम अब तो हरगिज नहीं बनाओ।
गिलगित,बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओll

वह सत्ता का भूखा था,भूखे थे कुछ अपने भी,
चकनानूर किए थे मिलकर भारत के सपने भी।
हम विकास की राह चले तुम चले कुराह कसाई,
सही पड़ोसी बन पाये ना रह पाये तुम भाई।
दुनिया में चहुँओर बज रहा है भारत का डंका,
रामराज की ओर चले हम,तुम रावण की लंका।
अलग-थलग पड़ कर दुनिया में आतंकी कहलाये-
सोच सको तो सोचो अथवा भारत में मिल जाओ।
गिलगित,बाल्तिस्तान हमारा है हमको लौटाओll

परिचय-अवधेश कुमार विक्रम शाह का साहित्यिक नाम ‘अवध’ है। आपका स्थाई पता मैढ़ी,चन्दौली(उत्तर प्रदेश) है, परंतु कार्यक्षेत्र की वजह से गुवाहाटी (असम)में हैं। जन्मतिथि पन्द्रह जनवरी सन् उन्नीस सौ चौहत्तर है। आपके आदर्श -संत कबीर,दिनकर व निराला हैं। स्नातकोत्तर (हिन्दी व अर्थशास्त्र),बी. एड.,बी.टेक (सिविल),पत्रकारिता व विद्युत में डिप्लोमा की शिक्षा प्राप्त श्री शाह का मेघालय में व्यवसाय (सिविल अभियंता)है। रचनात्मकता की दृष्टि से ऑल इंडिया रेडियो पर काव्य पाठ व परिचर्चा का प्रसारण,दूरदर्शन वाराणसी पर काव्य पाठ,दूरदर्शन गुवाहाटी पर साक्षात्कार-काव्यपाठ आपके खाते में उपलब्धि है। आप कई साहित्यिक संस्थाओं के सदस्य,प्रभारी और अध्यक्ष के साथ ही सामाजिक मीडिया में समूहों के संचालक भी हैं। संपादन में साहित्य धरोहर,सावन के झूले एवं कुंज निनाद आदि में आपका योगदान है। आपने समीक्षा(श्रद्धार्घ,अमर्त्य,दीपिका एक कशिश आदि) की है तो साक्षात्कार( श्रीमती वाणी बरठाकुर ‘विभा’ एवं सुश्री शैल श्लेषा द्वारा)भी दिए हैं। शोध परक लेख लिखे हैं तो साझा संग्रह(कवियों की मधुशाला,नूर ए ग़ज़ल,सखी साहित्य आदि) भी आए हैं। अभी एक संग्रह प्रकाशनाधीन है। लेखनी के लिए आपको विभिन्न साहित्य संस्थानों द्वारा सम्मानित-पुरस्कृत किया गया है। इसी कड़ी में विविध पत्र-पत्रिकाओं में अनवरत प्रकाशन जारी है। अवधेश जी की सृजन विधा-गद्य व काव्य की समस्त प्रचलित विधाएं हैं। आपकी लेखनी का उद्देश्य-हिन्दी भाषा एवं साहित्य के प्रति जनमानस में अनुराग व सम्मान जगाना तथा पूर्वोत्तर व दक्षिण भारत में हिन्दी को सम्पर्क भाषा से जनभाषा बनाना है। 

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