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‘समाजवादी इत्र’ और इत्र का ‘भ्रष्टाचारी समाजवाद’..!

अजय बोकिल
भोपाल(मध्यप्रदेश) 

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उत्तर प्रदेश के कानपुर से राज्य में विधानसभा चु्नाव के पहले ‘भ्रष्टाचार के इत्र’ की जो कहानियां सामने आ रही हैं,वो किसी परी कथा-सी हैं। इक्कीसवीं सदी के विदा होते इक्कीसवें साल में शबाब पर है,वो भ्रष्टाचार है। जो कुछ घट रहा है,वो किसी दिवा स्वप्न के ‘साकार’ होने जैसा है। मसलन महज कुर्ते-पाजामें में रहने,चप्पलें पहनने और स्कूटी पर चलने वाले कारोबारी के घर से १९४.४५ करोड़ रू. नकदी,२३ किलो सोना और ६ करोड़ रू. कीमत का चंदन तेल बरामद हुआ। इतनी नकदी गिनने के लिए ५ दिन तक नोट गिनने की कई मशीनों का लगना,नकदी को रद्दी की माफिक सजा के रखना,और इत्र कारोबार के नाम पर २ जैन कारोबारियों के बीच किसी हिंदी फिल्म-सा रहस्य,रोमांच। मजे की बात यह है कि पुलिस ‘समाजवादी इत्र’ शुरू करने वाले पुष्पराज जैन को तलाश रही थी,उसे भ्रष्टाचार को समाजवादी मानकर इत्र बनाने वाला पीयूष जैन हाथ लग गया। लिहाजा कहानी और दिल थामने वाली हो गई। चिंदी की तलाशी लेने चले थे,कारूं का खजाना हाथ लग गया। अब इस काली कमाई से सियासत की बू भी आने लगी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसके लिए समाजवादी पार्टी को घेरा तो सपा ने इसे भाजपा का दूसरे की राजनीतिक प्रताड़ना करने का काम बताया। इन रसीले किस्सों के बीच यह खबर भी आई कि कर चोरी के आरोप में पीयूष जैन भले अभी सलाखों के पीछे हो,लेकिन मामले को रफा-दफा करने की तैयारी भी हो चुकी है। अभी तो गुप्त धन की तरह मिली नकदी,सोना और कथित सादा जीवन शैली ही गरम मुद्दा है। पीयूष अभी ‍न्यायिक हिरासत में है। वैसे खुद पीयूष को समझ नहीं आ रहा कि जब भ्रष्टाचार इस देश में शिष्टाचार की शक्ल ले चुका है,तो उसे ही गुनहगार क्यों ठहराया जा रहा है।

बेहिसाब पैसों की इस रंजक कथा ने ओमिक्रान के तेजी से फैलते संक्रमण के बीच देश के तमाम लोगों को हैरत में डाला और गुदगुदाया भी। यह भी साबित हुआ कि देश में कुछ खास नहीं बदला है। भ्रष्टाचारी और भ्रष्टाचार का विकास ‘सबका साथ’ लेकर बदस्तूर जारी है। किसी भ्रष्टाचारी का पकड़ा जाना भी एक तरह ‘कार्यक्रम प्रबंधन’ है। किसी भी चुनाव के पहले भ्रष्टाचार की भ्रष्ट फाइलें खोलने के लिए कुंजी तलाशी जाती है। चुनाव खत्म होते ही पर्दाफाश करने वाली एजेंसियां भी पर्दे के पीछे चली जाती हैं। उधर निजाम बदलते ही भ्रष्टाचार के अलिखित नियम भी संशोधित हो जाते हैं। भाव सूची और चौथ वसूली के तरीके बदल जाते हैं। हांडी के चावल की तरह कोई एकाध काली कमाई वाला काल कोठरी में डल जाता है।

पीयूष जैसे लोगों को भी भ्रष्टाचार पर घनाघात के दावों से कोई दिक्कत नहीं थी,अगर गुजरात में करीब ३ महीने पहले जीएसटी ने १ ट्रक न पकड़ा होता। इस ट्रक में ‘शिखर पान मसाला’ माल के साथ करीब २०० फर्जी इनवाइस पकड़ी गई। इसके बाद डीजीजीआई की टीम ने कानपुर में डेरा डाल दिया। पकड़ा गया ट्रक प्रवीण जैन का था। प्रवीण,पीयूष जैन के अंबरीष जैन का बहनोई है। इनके नाम करीब ४० से ज्यादा फर्म हैं। प्रवीण जैन के यहां छापेमारी में पीयूष का सुराग मिला। उसके घर में सजे दबे नोट के बंडलों को देखकर छापामार टीम की आँखें भी फटी रह गई। वह ऐसी अकूत दौलत थी, जिसे हासिल करना तो दूर आँख भर देखने के लिए ‍भी किस्मत चाहिए।

इस दौलतखाने का आगे क्या होगा,इससे भी ज्यादा दिलचस्प बात उसके इस तरह अमीर होने और गरीब की माफिक रहने की विरोधाभासी जीवन शैली की है। फिर इतना पैसा कहां से आया ?

वैसे कहावत है कि पैसा बोलता है। अक्सर लोग थोड़ा-सा भी पैसा मिलने पर अपनी जिंदगी को ज्यादा से ज्यादा सुविधाजनक बनाने में जुट जाते हैं। पैसे की लाली सूरत पर चस्पां होने लगती है,लेकिन कुछ शातिर लोग पैसे का मुँह भी बंद कर देते हैं। पीयूष ने भी कुछ ऐसा ही किया। बाहर खुद को एक आम निम्न मध्यम वर्गीय इंसान के रूप में दिखाता रहा,भीतर कोठों में नोट अनाज की माफिक भरे थे। उस पर कानूनी कार्रवाई क्या होगी,होगी भी या नहीं या फिर यह चुनावी बुलबुला है,जो लेन-देन के बाद फूट जाएगा,इन सवालों से हटकर एक आम इंसान के दिमाग से सोचें तो सवाल उठता है कि पीयूष अगर इस दौलत का उपभोग नहीं करता था तो कमाता किसलिए था ? अगर इतना कमाता था तो अपनी कमाई को २ नम्बर में ही क्यों रखना चाहता था,उसे ‘१ नम्बर’ से इतना डर क्यों लगता था ?,क्योंकि उसके साथ तो एक कौड़ी भी नहीं जानी है। इस मामले में कुछ और हैरत भरी जानकारियां हैं,मसलन वो भुगतान सोने के ‍बिस्किट के रूप में लेता था। इस ‘गुप्त धन’ की खबर जमाने को न लग जाए, इसलिए बार-बार चौकीदार बदलता था। वह शायद मानता था कि गरीबी का मास्क बेईमानी दौलत के संक्रमण को रोक सकता है।

शक यह भी है कि,नकदी कोठार असल में भ्रष्ट राजनेताओं,अफसरों और दूसरे कारोबारियों के २ नंबर के पैसे से भरे हैं,जिनमें भाजपाई भी शामिल हैं। पीयूष तो केवल एक मोहरा है। शायद यही कारण है कि छापे के बाद अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा ने ‘अपने ही आदमी’ पर छापा पड़वा दिया। यह सवाल भी मौजूं है कि नोटबंदी के ५ साल बाद भी बेहिसाबी नकदी इस तरह घरों के तहखाने में ‘सुरक्षित’ रह सकती है तो फिर काले धन के ‘बुरे दिन’ आने के दावों की हकीकत क्या है ?

हालांकि,प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक चुनावी रैली में ‘समाजवादी इत्र’ की आड़ में सपा पर सियासी हमले किए। उन्होंने कहा कि साल २०१७ से पहले उप्र में (सपा के राज में) भ्रष्टाचार का जो इत्र छिड़का गया था,वो बाहर आ गया है,लेकिन प्रधानमंत्री यह भूल गए कि इत्र के रूप में भ्रष्टाचार इस मुल्क में ‘समाजवादी ‘हो गया है। ईमानदारी केवल उसी कोने में ठिठुर रही है,जहां बेईमानी को पैर पसारने का मौका नहीं मिला।

कहावत यह भी है कि इश्क,मुश्क और करप्शन छुपाए नहीं छुपते,लेकिन लीपा-पोती का टीका भी इन्हीं के लिए बना है। राजनीतिक शोशेबाजी के बीच इस पीयूष कथा का अंत क्या होगा,इसमें लोगों की रूचि कम ही है। खास बात यह है कि देश में ‘पीयूषों’ की तादाद लगातार बढ़ रही है। सरकार यह श्रेय भले ले ले कि वो ऐसे पीयूषों के चेहरे बेनकाब कर रही है,लेकिन लोग वही समझ रहे हैं कि,भ्रष्टाचार अब व्यावहारिक समाजवाद की तरह है और इस ‘इत्र’ की बदबू को भी महकास की माफिक झेलना हम सबकी मजबूरी है।

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