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समाज न होता तो…

ममता तिवारी ‘ममता’
जांजगीर-चाम्पा(छत्तीसगढ़)
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आओ हम समझें इसे, इसका करो लिहाज।
जो न होता समाज तो, क्या ही होता आज॥
क्या ही होता आज, हमें यह मनुज बनाते।
करना न कभी एतराज, यह है तब हम लजाते॥
समझो न इसे खाज, सिमट बंधन में जाओ।
करता यही इलाज़, इसे हम समझें आओ॥

पशु-पक्षी भी तो सदा, रहते एक समाज।
हम तो मानव जात हैं, हमें क्यों लगता खाज॥
हमें क्यों लगता खाज, आज इसी बदौलत है।
छोड़ आधुनिक साज, हमारी यह दौलत है॥
सुख-दु:ख में मिल साथ, सभी के रहना साक्षी।
मनुज निभाना फर्ज, नहीं बनना पशु-पक्षी॥

होता न यदि समाज तो, उत्श्रृंखल व्यभिचार,
करती जनता निम्नतर, पशुवत सब व्यवहार॥
पशुवत सब व्यवहार, आचरण निकृष्ट करते।
दंड से अधिक लोग, समाज न्याय से डरते॥
करता नहिं अपराध, मान चिंता कर सोता।
जन होता बरबाद, समाज यदि नहीं होता॥

कहते जो मतलब नहीं, तरता नहीं प्रवाह,
छलता निज को जन वही, करे नहीं निरवाह॥
करे नहीं निरवाह, मान समाज को बैरी।
समय करा परवाह, बताए‌ तू एरी- गैरी॥
इसलिए मान सलाह, समाज धार जो बहते।
होती उसकी वाह, बड़े-बुजुर्ग हैं कहते॥

परिचय–ममता तिवारी का जन्म १अक्टूबर १९६८ को हुआ है। वर्तमान में आप छत्तीसगढ़ स्थित बी.डी. महन्त उपनगर (जिला जांजगीर-चाम्पा)में निवासरत हैं। हिन्दी भाषा का ज्ञान रखने वाली श्रीमती तिवारी एम.ए. तक शिक्षित होकर समाज में जिलाध्यक्ष हैं। इनकी लेखन विधा-काव्य(कविता ,छंद,ग़ज़ल) है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हैं। पुरस्कार की बात की जाए तो प्रांतीय समाज सम्मेलन में सम्मान,ऑनलाइन स्पर्धाओं में प्रशस्ति-पत्र आदि हासिल किए हैं। ममता तिवारी की लेखनी का उद्देश्य अपने समय का सदुपयोग और लेखन शौक को पूरा करना है।