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प्रचंड बहुमत:नए प्रधानमंत्री की दस्तक!

डॉ.वेदप्रताप वैदिक
गुड़गांव (दिल्ली) 
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दिल्ली के चुनाव में भाजपा की हार देश में नयी राजनीति की शुरुआत कर सकती है। २०१३ के गुजरात विधानसभा चुनाव की याद आ रही है। जब उसके चुनाव परिणाम घोषित हो रहे थे तो मुझे टीवी चैनलों ने घेर लिया। पूछने लगे कि,मोदी की ५-१० सीटें कम हो रही हैं,फिर भी आप कह रहे हैं कि गुजरात का यह मुख्यमंत्री अब प्रधानमंत्री के द्वार पर दस्तक देगा। यही बात आज अरविंद केजरीवाल के बारे में कहूं,ऐसा मेरा मन कहता है। आम आदमी पार्टी को पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में ५-६ सीटें कम मिली तो भी उसका प्रचंड बहुमत है। यह प्रचंड बहुमत याने ७० में से ६० सीटों से भी ज्यादा तब है,जब भाजपा और कांग्रेस ने दिल्ली प्रदेश के इस चुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी,अपनी पूरी प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी थी। कांग्रेस और भाजपा के नेताओं ने चुनाव-प्रचार के दौरान अपना स्तर जितना नीचे गिराया,उतना ६५-७० साल में कभी नहीं देखा। अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को दाद दूंगा कि उन्होंने अपना स्तर ऊंचा ही रखा। भाजपा ने प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों से लेकर सैकड़ों विधायकों और सांसदों को झोंक दिया। दिल्ली की जनता के आगे २ रु. किलो आटे तक के लालीपॉप उसने लटकाए,लेकिन दिल्ली के लोग हैं कि फिसले ही नहीं। भाजपा यहीं तक नहीं रुकी। उसने शाहीन बाग को अपना रथ बना लिया। उसने खुद को पाकिस्तान की खूंटी पर लटका लिया। उसने अरविंद केजरीवाल को हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की धुंध में फंसाने की भी कोशिश की,लेकिन गुरु गुड़ रह गए और चेला शक्कर बन गया। कर्म की राजनीति ने धर्म की राजनीति को पछाड़ दिया। अरविंद इस हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण के धुंआकरण से भी बच निकले। अब वे तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बन जाएंगे,लेकिन अगले आम चुनाव में वे चाहें तो अपनी वाराणसी की हार का हिसाब मोदी से चुकता कर सकते हैंl दिल्ली के इस चुनाव को जैसा प्रचार चैनलों और अखबारों में मिला है,वैसा किसी भी प्रादेशिक चुनाव को नहीं मिला है। यह लगभग राष्ट्रीय चुनाव बन गया है। राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस को इस चुनाव ने दरी के नीचे सरका दिया है। अरविंद केजरीवाल के वचन और कर्म में भी अब नौसिखियापन नहीं रहा। एक जिम्मेदार राष्ट्रीय नेता की गंभीरता उनमें दिखाई पड़ने लगी है। वे अपने शुरुआती साथियों को फिर से अपने साथ जोड़ें,राष्ट्रीय मुद्दों पर अधिकारी विद्वानों और विशेषज्ञों का मार्गदर्शन लें और अपनी रचनात्मक छवि बनाए रखें तो वे देश को निराशा और आर्थिक संकट के गर्त में गिरने से बचा सकते हैं। दिल्ली में जो होता है,उसे पूरा देश देखता है।

परिचय–डाॅ.वेदप्रताप वैदिक की गणना उन राष्ट्रीय अग्रदूतों में होती है,जिन्होंने हिंदी को मौलिक चिंतन की भाषा बनाया और भारतीय भाषाओं को उनका उचित स्थान दिलवाने के लिए सतत संघर्ष और त्याग किया। पत्रकारिता सहित राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति और हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष आदि अनेक क्षेत्रों में एकसाथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले डाॅ.वैदिक का जन्म ३० दिसम्बर १९४४ को इंदौर में हुआ। आप रुसी, फारसी, जर्मन और संस्कृत भाषा के जानकार हैं। अपनी पीएच.डी. के शोध कार्य के दौरान कई विदेशी विश्वविद्यालयों में अध्ययन और शोध किया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त करके आप भारत के ऐसे पहले विद्वान हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति का शोध-ग्रंथ हिन्दी में लिखा है। इस पर उनका निष्कासन हुआ तो डाॅ. राममनोहर लोहिया,मधु लिमये,आचार्य कृपालानी,इंदिरा गांधी,गुरू गोलवलकर,दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी सहित डाॅ. हरिवंशराय बच्चन जैसे कई नामी लोगों ने आपका डटकर समर्थन किया। सभी दलों के समर्थन से तब पहली बार उच्च शोध के लिए भारतीय भाषाओं के द्वार खुले। श्री वैदिक ने अपनी पहली जेल-यात्रा सिर्फ १३ वर्ष की आयु में हिंदी सत्याग्रही के तौर पर १९५७ में पटियाला जेल में की। कई भारतीय और विदेशी प्रधानमंत्रियों के व्यक्तिगत मित्र और अनौपचारिक सलाहकार डॉ.वैदिक लगभग ८० देशों की कूटनीतिक और अकादमिक यात्राएं कर चुके हैं। बड़ी उपलब्धि यह भी है कि १९९९ में संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आप पिछले ६० वर्ष में हजारों लेख लिख और भाषण दे चुके हैं। लगभग १० वर्ष तक समाचार समिति के संस्थापक-संपादक और उसके पहले अखबार के संपादक भी रहे हैं। फिलहाल दिल्ली तथा प्रदेशों और विदेशों के लगभग २०० समाचार पत्रों में भारतीय राजनीति और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर आपके लेख निरन्तर प्रकाशित होते हैं। आपको छात्र-काल में वक्तृत्व के अनेक अखिल भारतीय पुरस्कार मिले हैं तो भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों में विशेष व्याख्यान दिए एवं अनेक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। आपकी प्रमुख पुस्तकें- ‘अफगानिस्तान में सोवियत-अमेरिकी प्रतिस्पर्धा’, ‘अंग्रेजी हटाओ:क्यों और कैसे ?’, ‘हिन्दी पत्रकारिता-विविध आयाम’,‘भारतीय विदेश नीतिः नए दिशा संकेत’,‘एथनिक क्राइसिस इन श्रीलंका:इंडियाज आॅप्शन्स’,‘हिन्दी का संपूर्ण समाचार-पत्र कैसा हो ?’ और ‘वर्तमान भारत’ आदि हैं। आप अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों और सम्मानों से विभूषित हैं,जिसमें विश्व हिन्दी सम्मान (२००३),महात्मा गांधी सम्मान (२००८),दिनकर शिखर सम्मान,पुरुषोत्तम टंडन स्वर्ण पदक, गोविंद वल्लभ पंत पुरस्कार,हिन्दी अकादमी सम्मान सहित लोहिया सम्मान आदि हैं। गतिविधि के तहत डॉ.वैदिक अनेक न्यास, संस्थाओं और संगठनों में सक्रिय हैं तो भारतीय भाषा सम्मेलन एवं भारतीय विदेश नीति परिषद से भी जुड़े हुए हैं। पेशे से आपकी वृत्ति-सम्पादकीय निदेशक (भारतीय भाषाओं का महापोर्टल) तथा लगभग दर्जनभर प्रमुख अखबारों के लिए नियमित स्तंभ-लेखन की है। आपकी शिक्षा बी.ए.,एम.ए. (राजनीति शास्त्र),संस्कृत (सातवलेकर परीक्षा), रूसी और फारसी भाषा है। पिछले ३० वर्षों में अनेक भारतीय एवं विदेशी विश्वविद्यालयों में अन्तरराष्ट्रीय राजनीति एवं पत्रकारिता पर अध्यापन कार्यक्रम चलाते रहे हैं। भारत सरकार की अनेक सलाहकार समितियों के सदस्य,अंतरराष्ट्रीय राजनीति के विशेषज्ञ और हिंदी को विश्व भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने के लिए कृतसंकल्पित डॉ.वैदिक का निवास दिल्ली स्थित गुड़गांव में है।

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