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राम मंदिर:आस्था या राजनीति

राधा गोयल
नई दिल्ली
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इस देश की आत्मा में राम बसे हैं। हर भारतीय के मन में राम बसे हैं। रामराज्य जैसा युग ना कभी आया और ना ही शायद कभी आएगा, जहाँ एक भाई ने राज्य मिलते- मिलते माँ के कहने पर हँसते-हँसते वनवास स्वीकार किया। जिस पुत्र के कारण कैकेयी ने राज्य माँगा था, उस पुत्र ने भी मिलते हुए राज्य को पैरों से ठुकरा दिया। अपने भाई की चरण पादुका से १४ वर्ष तक राज्य का संचालन किया। एक बार भी उनके मन में यह इच्छा नहीं आई कि, राज्य पर मेरा अधिकार है। मैं उसका राजा हूँ। अन्य भाइयों ने अयोध्या में रहते हुए भी वनवासी की तरह जीवन बिताया। लक्ष्मण तो श्री राम के साथ ही वन चले गए थे। भरत ने नंदीग्राम में निवास कर लिया था। शत्रुघ्न जी नंदीग्राम के बाहर भरत जी के रक्षक बने रहते थे। एक तरह से चारों भाइयों ने वनवास भोगा। महलों के सुखों का त्याग कर दिया, कंदमूल-फल खाकर वनवासी तपस्वी जैसा जीवन बिताया। सीता जी तो श्री राम के साथ चली गईं थीं, लेकिन बाकी भाइयों की पत्नियों ने भी कम दु:ख नहीं सहे।

जहाँ राज्य के लिए भाई… भाई के खून का प्यासा हो जाता है, भाई…भाई का खून कर देता है, राज्य के लिए सब रिश्ते नातों को ताक पर रख देता है, वहाँ रामायण एक आदर्श रिश्ते-नातों को बतलाती है।
राम मंदिर सबकी आस्था से जुड़ा हुआ है। ५०० वर्षों से लोग प्रतीक्षा कर रहे थे कि, कब उनके प्रभु श्री राम का मंदिर बनेगा। कब प्रभु श्री राम उसी जगह विराजित होंगे, जहाँ उनका जन्म हुआ था और सभी ने देखा कि जिस दिन प्राण-प्रतिष्ठा हुई, उस दिन अयोध्या में जनसैलाब उमड़ पड़ा। भारत में ही नहीं, विदेश में बसे भारतीयों ने भी उस दिन दीपावली मनाई थी। प्रतिष्ठा के समय लोग भाव-विभोर होकर खुशी के आँसू बहा रहे थे। आस्था का ऐसा दृश्य शायद ही कभी किसी ने देखा होगा। सारी अयोध्या राममय हो गई थी, पर कुछ लोगों को इसमें भी राजनीति की बू आती है। जिनको इसमें बू आती है, उनसे मेरा कहना है कि, यह मामला तो वर्षों से न्यायालय में लंबित था, तो अभी तक इसका समाधान क्यों नहीं निकाला था ? अब जिस सरकार ने समाधान निकाला, बरसों की प्रतीक्षा खत्म हुई, राम मंदिर बना, और बना भी लोगों की आस्था के बलबूते;क्योंकि इसमें सरकार का एक धेला नहीं लगा। सब-कुछ जनता के पैसों से बना है तो भी कुछ अज्ञानी लोगों ने इसे राजनीति का विषय बना दिया है। उनका कहना है कि, चुनाव जीतने के लिए राम मंदिर का मुद्दा उछाला गया है। राम मंदिर का मुद्दा तो बहुत सालों से उछाला जा रहा है। कितने लोग इस मंदिर के लिए कुर्बान हो गए। कार सेवकों पर लाठियाँ बरसाई गईं। गोधरा ट्रेन कांड हुआ, जिसमें कारसेवकों से भरी पूरी बोगी ही जलाकर खाक कर दी गई। जो आज राम मंदिर को राजनीति का विषय बता रहे हैं, तब उनके मुँह से संवेदना का एक स्वर नहीं फूटा। किसी ने उन्हें मना तो नहीं किया था कि, वे वहाँ राम मंदिर ना बनाएँ, जहाँ उनके आराध्य श्री राम का जन्म हुआ था। उल्टा ऐसे लोगों ने हर बार अड़ंगे लगाए। अदालत में वकील भी ऐसे खड़े किए, जो राम मंदिर के विरोध में थे और जिनके पास कोई साक्ष्य नहीं थे कि वास्तव में उस जगह कभी राम का जन्म हुआ था। भला हो स्वामी रामभद्राचार्य जी का, जिन्होंने अदालत को ऐसे-ऐसे साक्ष्य उपलब्ध कराए, जिनसे यह साबित हुआ कि राम का जन्म वहीं हुआ था, जहाँ मन्दिर विध्वंस करके मस्जिद बनाई गई।

आखिर वह दिन आया कि, भव्य राम मन्दिर का निर्माण हो चुका है एवं अभी और विस्तार के लिए काम हो रहा है। आज जिन लोगों को इसमें राजनीति नजर आ रही है, वो इसलिए, क्योंकि उनको डर है कि जीत आस्था की होगी।