बबीता प्रजापति ‘वाणी’
झाँसी (उत्तरप्रदेश)
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साँझ में सुर मिलाने लगी है,
चिड़िया भी गीत गाने लगी है
नील अम्बर में छिटकी छटाएं अब,
सिंदूरी रेखाएं बनाने लगी हैं।
दिव्य रथ पे सवार हो समीर,
हृदय में आनन्द बढ़ाने लगी है
गौधूलि बेला श्याम की,
मधुर बाँसुरी बजाने लगी है।
फहराने लगी हैं दिव्य पताकाएं,
देवियाँ धरा पर आने लगीं हैं
सज गए थाल, बज उठे करतल,
मैया आरती गाने लगी है।
चन्द्र भी आने को आतुर,
चित्रा रोहिणी भी आने लगी है।
लो घिरने लगा तम, शनै:-शनै:
शर्बरी निद्रा को बुलाने लगी है॥